AMU के माइनॉरिटी स्टैट्स को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दवाब की जरुरत

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस का मुद्दा न सिर्फ देश के मुसलमानों के लिए जरूरी है बल्कि पूरी दुनिया के अलपसंख्यकों के लिए जरूरी है। यह महज एक यूनिवर्सिटी की लड़ाई नहीं है यह लड़ाई है अल्पसंखयकों के हक़ की जोकि मोदी सरकार की सत्ता में हिंदुत्व के पाँव तले कुचले जा रहे हैं।

देश की सरकार हिंदुत्व का नार बुलंद कर उन सभी आवाज़ों को दबाना चाहती है जो अपने हक़ों के लिए उठ रही हैं। यह कहना है रियाद में एक कार्यक्रम में बतौर चीफ गेस्ट शामिल हुए प्रोफेसर जावेद मुसर्रत का।

प्रोफेसर मुसर्रत जोकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड बॉयज एसोसिएशन (अमूओबा) की तरफ से रखे एक प्रोग्राम “एएमयूस माइनॉरिटी करैक्टर द कॉन्स्टिट्यूशनल राइट्स” में बातचीत कर रहे थे ने कहा कि यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी स्टेटस एक बहुत ही गम्भीर और संवेदनशील मामला है। पिछले सरकार जहाँ इस स्टेटस के हक़ में काम कर रही थी वहीँ मौजूदा सरकार इसके बिलकुल उल्ट खड़ी है।

कोई भी लड़ाई चाहे वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की हो चाहे जामिआ मिल्लिआ इस्लामिआ की हो या जेएनयू की सभी लोगों को मिलकर यूनिवर्सिटियों के हक़ों के लिए साथ मिलकर लड़ना होगा।