मुसलमानों को कब्रिस्तान की ज़मीन मिल सके, इसलिए 1400 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकले अनिल सिन्हा

देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ क्रांति लाने वाले अन्ना हजारे के गांव रालीगन सिद्धी के पड़ोस से अब एक नई आवाज उठी है।

सांप्रदायिक सद्भाव और समान अधिकार की मांग को लेकर महाराष्ट्र के उलहास नगर का एक गैर मुस्लिम सड़कों पर निकल पड़ा है, जिसने मुसलमानों को कब्रिस्तान के लिए जमीन दिलाने के लिए अपनी आवाज बुलंद की है।

महाराष्ट्र और केंद्र में भाजपा सरकार की नींद उड़ाने के लिए 52 साल के अनिल सिन्हा अखलाक़ शेख के साथ दिल्ली तक पैदल यात्रा कर रहे हैं।

चिलचिलाती धूप में 1400 किलोमीटर की पैदल यात्रा करना, सुनने में जितना कठिन लगता है, हकीक़त में उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल काम है।

लेकिन पैर में छाले और सूजन के बावजूद महाराष्ट्र के उलहास नगर से शुरू हुई यह यात्रा आधे से ज़्यादा सफ़र पूरा करते हुए अब ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के शहर अजमेर पहुंच चुकी है।

प्रधानमंत्री मोदी से मिलने की आस में दो दोस्त अपना सारा दुख भूल चुके हैं। 52 साल के अनिल सिन्हा अपने बचपन के दोस्त अख़लाक़ शेख के साथ एक मकसद को लेकर ज़िन्दगी का सपने बड़ा सपना पूरा करने के लिए ज़द्दोज़हद कर रहे हैं।

सपना है कि किसी भी तरह उनकी तहसील उलहास नगर के मुसलमानों को मरने के बाद दफनाने के लिए दो गज़ ज़मीन मयस्सर हो जाए। सुनने में तो यह बात बड़ी अजीब लग सकती है लेकिन आज़ाद भारत में शायद पाँच लाख की आबादी वाला उलहास नगर इकलौता ऐसा शहर होगा, जहां मुसलमानों को अपनों को दफनाने के लिए कब्रिस्तान नहीं है।

इलाके के मुस्लिम समाज के लोग उलहास नगर पालिका की सीमा पार कर दूसरी तहसील में जाकर अपनों को सुपुर्दे खाक करते हैं।

ऐसा नहीं है कि समाज ने सरकार प्रशासन से इसके लिए मांग न की हो, लेकिन आज तक उनकी मांग पूरी नहीं हो सकी। हालात इस कदर खराब हैं कि अपने शहर से दूर जहां पुरुषों को दफन करने जाते हैं, कब्र खोदते समय जमीन के नीचे से पहले ही दफन किया गया शव बाहर निकल आता है।

तमाम कोशिशों के बाद आखिरकार उनके दो दोस्तों ने अब पीएम मोदी से मुलाकात कर अपने शहर में कब्रिस्तान के लिए भूमि आवंटित करने की मांग को लेकर 14 मार्च से पैदल यात्रा शुरू की है।

बता दें कि दोनों दोस्तों ने इसके लिए किसी राजनीतिक दल का साथ नहीं लिया और न ही किसी संस्था या समूह से कोई मदद। उनका अब तक का सफर भी काफी मुश्किल रहा, कहीं दूर तक पीने का पानी नहीं मिला, तो कभी सख्त गर्मी के कारण अस्पताल तक में भर्ती तक होना पड़ा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

राम रहीम का उदाहरण बने दोनों दोस्त अभी कुछ दिनों से अजमेर में हैं। पैरों में छाले पड़ जाने के कारण थोड़ा आराम कर रहे हैं। दोनों ने ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के दरबार दुआ भी मांगी है कि सरकार उल्लास नगर में डेढ़ से दो लाख की संख्या में रह रहे मुसलमानों की पीड़ा को समझते हुए न्याय करे।