नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) में अपना नाम शामिल करने की डेडलाइन खत्म होने में अब केवल दो हफ्तों का समय बचा है। असम के कामरुप जिले के मजोरटॉप गांव के रहने वाले 48 साल के हनीफ अली एनआरसी में अपना नाम शामिल करवाने में असफल रहे हैं।
उनका नाम 30 जुलाई को प्रकाशित हुई लिस्ट से हटा दिया गया था। पिछला महीना उन्होंने अपने असली दादा को ढूंढने में बिताया।
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#NRCAssam: Only 7 lakh claims filed so far, deadline for objections ends December 15https://t.co/6ZDE2GZO6q #Assam pic.twitter.com/ddCdjcglLH
— FinancialXpress (@FinancialXpress) December 4, 2018
एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट में 2.8 करोड़ लोगों को सूचीबद्ध किया गया था। जिसमें 40 लाख आवेदनकर्ताओं के नाम नहीं थे। उच्चतम न्यायालय ने इसके लिए 15 दिसंबर की तारीख तय की हुई है।
लोगों के पास अपने दावे करने और आपत्तियां दर्ज करवाने के लिए अब आखिरी दिन बचे हुए हैं। अभी तक केवल 7 लाख दावे आए हैं जिसकी वजह से उन लोगों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है जिनका नाम लिस्ट से हटा हुआ है।
आपत्तियों के अंतर्गत लोग एनआरसी से अपना नाम हटाने को लेकर आपत्ति कर सकते हैं। हनीफ अली के दो बेटे गुवाहाटी में टेलर का काम करते हैं। उन्होंने अपने दादा मोकरुम अली की विरासत के पैतृक डाटा का इस्तेमाल करते हुए एनआरसी में दावा किया था। उन्हें यह मालूम था कि गोलपाड़ा जिले से 1951 की एनआरसी लिस्ट मे उनके दादा का शामिल नाम था।
मगर परिवार के इतिहास के सत्यापन के दौरान एनआरसी अधिकारियों को पता चला कि मोकरुम अली जिसका नाम हनीफ अली ने लिखा है वह उसी नाम का कोई दूसरा शख्स है। इस वजह से हनीफ अली और उनके 20 सदस्यों वाले परिवार को सूची से हटा दिया गया।
इसके बाद अली ने अपने पिता रुस्तम अली के नाम से दावा किया, जिनका नाम 1966 की मतदाता सूची में शामिल था लेकिन इसे भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद रद्द कर दिया गया।
न्यायालय का कहना है कि दावों और आपत्तियों की मानक संचालन प्रक्रिया में कोई शख्स अलग विरासत का जिक्र नहीं कर सकता है। उसे उसी विरासत के आधार पर दावा करना होगा जो उसने शुरुआती प्रक्रिया मे दिया था।
इसी वजह से हनीफ अपने पूर्वजों को गोलपाड़ा जिले में ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘मैं तियापाड़ा की यात्रा पर गया, जो मोजोरटॉप से 120 किलोमीटर दूर है।
हफ्तों बाद मुझे पता चला कि मेरे दादा 62 तियापाड़ा में नहीं रहते थे जैसा कि एनआरसी के कागजों में लिखा हुआ है बल्कि वह 63 तियापाड़ा में रहते थे। अब मुझे अपने असल दादा का नाम 1951 की एनआरसी सूची और 1954 की मतदाता सूची में मिल गया है। इसमें समय लगा। अब हम जल्द दावा करेंगे।’
गुवाहाटी बेस्ड कार्यकर्ता एबी खांडेकर, एक ऐसी संस्था के अध्यक्ष हैं जो नागरिकता आधारित मामलों पर काम करते हैं। उन्होंने इस पैतृक विरासत प्रक्रिया की आलोचना की।
23 नवंबर को प्रेस रिलीज जारी करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने स्वीकार किया कि एनआरसी पर दायर किए गए दावों की संख्या अब तक बहुत असंतोषजनक रही है।
साभार- ‘अमर उजाला’