नज़रिया: सीरिया वालों की लाचारी और मुस्लिम दुनियां की उदासीनता

इस समय पूरी दुनियां में मुस्लिम बुरे हालात से दो चार हैं मगर सीरिया की तबाही व बर्बादी मुसलमानों को खून के आंसू रुला रही है। पिछले 7 साल से बुरी यूद्ध से जूझ रहा सीरिया में इन दिनों बेहद दर्दनाक हालात से दोचार है।

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पिछले दिनों 24 घंटे के अंदर सीरियाई शहर गोता में जिस अंधाधुंध ख़ून का प्रदर्शन किया गया उसने पूरी इंसानियत को हिलाकर रख दिया। चिंता की बात यह है कि महज़ राजनीतिक बरतरी को प्राप्त करने के लिए बहुत से लोग और पार्टियाँ इस हद तक गिर चुकी हैं कि मासूमों, बेगुनाहों और बेक़सूर पुरुष व महिलाओं का खून बहा रही हैं।

विश्व समुदाय मुस्लिम दुनियां के प्रति दोहरे रवैये का शिकार है, जबकि संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संस्था भी महज़ ज़ुबानी निंदा तक सीमित रहते हैं और हालात में कोई बदलाव नहीं आती। हाल के सालों में अरबी व इस्लामी देशों में बहारे अरब के नाम पर जो क्रांति उजागर हुआ था, हकीकत में वह नाकाम रहा और ऐसा लगता है कि अगर यह क्रांति सरकार के खिलाफ जनता के गम व गुस्से की अभिव्यक्ति था, मगर इसे व्यवस्थित प्रभावित बनाने की कोई कोशिश नहीं की गई और बहुत से असामाजिक तत्व भी इस करांति के दामन में शरणार्थी हो गए जिसकी वजह से वह सारे देश नये सिरे से संकट के दलदल में फंस गए।