बेटी…तुम्हे इंसान नही गाय या हिरण होना था, तो आपको इंसाफ मिल सकता था: रवीश कुमार

दुष्कर्म, रेप, बलत्कार, हैवानियत, शैतानियत, बेशर्मी और हत्या,निर्ममता बच्ची के साथ नही बल्कि समाज के साथ साथ पूरे हिन्दुस्तान के साथ हुई लेकिन बावज़ूद इसके धर्मनिर्पेक्षता आँखों पर पट्टी बांध कर सो गया है, क्योंकि ये घटना मस्जिद में नही किसी ग़ैर मुस्लिम बेटी के साथ नही मंदिर में हुई है और मक़तूल मुस्लिम है!

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बेटी.. तुम्हे इंसान नही गाय या हिरण होना था तो आपको इंसाफ मिल सकता था लेकिन अब इंसाफ की उम्मीद करें भी तो करे किससे?क्योंकि यहाँ के ठेकेदार ही क़ातिलों के समर्थन में तिरंगा हाथ में लेकर क़ातिलों को छोड़ने की मांग को लेकर सड़को पर उतर रहे हैं।

आपको बता दे कि इस मासूम को पहले अगवा करके मंदिर लाया गया और 8 दिन तक वहशियों और दरिंदो ने बच्ची को बंधक बनाकर 8 दिन तक मंदिर में ही भगवान की मूर्ति के सामने बारी बारी से अपनी हवस का शिकार बनाया और उसके बाद इसकी हत्या करके फेंक दी गई।

अगर आशिफ़ा की जगह हम सब की बहन बेटी भतीजी की तस्वीर होती तो क्या हम तब क़ातिल का समर्थन करते?एक मिनट शांति से सोचों आपको वक़्त दिया और जवाब दे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,”,,,,,,,,,,,,,,,,”

जवाब ये ही होगा कि हम क़ातिल को फांसी की मांग करते, हम क़ातिल को सज़ा दिलाते, तो फ़िर ग़ैर मुस्लिम लोग आशिफ़ा के क़ातिलों को फांसी हो कि मांग क्यों नही कर रहे है?क्यों आशिफ़ा के लिए कैंडल मार्च नही निकाला जा रहा है?क्या इसलिए क़ातिलों को फांसी की मांग नही कर रहे क्योंकि क़ातिल हिन्दू है?क्या इसलिए इंसाफ हो की मांग नही कर रहे हैं क्योंकि पीड़िता आशिफ़ा मुस्लिम है?

पहली बात तो ये की क़ातिल और मक़तूल का कोई धर्म नही होता है, और बात 2 ये है कि मक़तूल का धर्म इंसाफ और क़ातिल का धर्म सज़ा होता है।

(एनडीटीवी पत्रकार रवीश कुमार की वाल से)