जन्मदिन विशेष: प्रसिध्द इतिहासकार ‘प्रोफेसर रामशरण शर्मा’ जिन्होंने समाज की हक़ीक़त से रुबरु कराया

भारत के प्रसिद्ध इतिहासकारों मे से एक-प्रोफेसर रामशरण शर्मा प्रसिद्ध इतिहासकार और शिक्षाविद थे। वे समाज को हकीकत से रु-ब-रु कराने वाले, अन्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भारतीय इतिहासकारों में से एक थे। राम शरण शर्मा ‘भारतीय इतिहास’ को वंशवादी कथाओं से मुक्त कर सामाजिक और आर्थिक इतिहास लेखन की प्रक्रिया की शुरुआत करने वालों में गिने जाते थे।

वर्ष 1970 के दशक में ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ के इतिहास विभाग के डीन के रूप में प्रोफेसर आर. एस. शर्मा के कार्यकाल के दौरान विभाग का व्यापक विस्तार किया गया था। विभाग में अधिकांश पदों की रचना का श्रेय भी प्रोफेसर शर्मा के प्रयासों को ही दिया जाता है।

राम शरण शर्मा का जन्म 26 नवम्बर, 1919 ई. को बिहार (ब्रिटिश भारत) के बेगुसराय ज़िले के बरौनी फ्लैग गाँव के एक निर्धन परिवार में हुआ था। यह इलाका समृद्ध खेती के साथ-साथ ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ के नेतृत्व में सामंतवाद विरोधी संघर्ष के लिए भी जाना जाता था। इसे लोग “बिहार का लेनिनग्राद” कहते थे।

इनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। राम शरण शर्मा के दादा और पिता बरौनी ड्योडी वाले के यहाँ चाकरी करते थे। इनके पिता को अपनी रोजी-रोटी के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। पिता ने बड़ी मुश्किल से अपने पुत्र की मैट्रिक तक की शिक्षा की व्यवस्था की थी।

राम शरण शर्मा प्रारम्भ से ही मेधावी छात्र रहे थे और अपनी बुद्धिमत्ता से वे लगातार छात्रवृत्ति प्राप्त करते रहे। यहाँ तक कि अपनी शिक्षा में सहयोग के लिए उन्होंने निजी ट्यूशन भी पढ़ाई। उन्होंने 1937 में अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और ‘पटना कॉलेज’ में दाखिला लिया।

यहाँ उन्होंने इंटरमीडिएट से लेकर स्नातकोत्तर कक्षाओं में छ: वर्षों तक अध्ययन किया और वर्ष 1943 में इतिहास में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। राम शरण शर्मा ने पीएचडी की उपाधि ‘लंदन विश्वविद्यालय’ के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज’ से प्रोफेसर आर्थर लेवेलिन बैशम के अधीन पूर्ण की थी।

पटना विश्वविद्यालय’ में पढ़ाते हुए राम शरण शर्मा ने अपनी पहली किताब ‘विश्व साहित्य की भूमिका’ हिन्दी में लिखी। एक नयी दृष्टि के बावजूद यह पुस्तक छात्रोपयोगी ही अधिक थी। वास्तविक याति और इतिहासकार के रूप में मान्यता उन्हें तब मिली, जब वे सन 1954-1956 के दौरान अध्ययन अवकाश लेकर लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज़’ में गये और लंदन विश्वविद्यालय से ही 1956 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

इतिहास के जाने-माने लेखक राम शरण शर्मा ने पंद्रह भाषाओं में सौ से भी अधिक किताबें लिखीं। उनकी लिखी गयी प्राचीन इतिहास की किताबें देश की उच्च शिक्षा में काफ़ी अहमियत रखती हैं।

प्राचीन इतिहास से जोड़कर हर सम-सामयिक घटनाओं को जोड़कर देखने में शर्मा जी को महारथ हासिल थी। रामशरण शर्मा के द्वारा लिखी गयी पुस्तक “प्राचीन भारत के इतिहास” को पढ़कर छात्र ‘संघ लोक सेवा आयोग’ जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।

राम शरण शर्मा ऐसे पहले भारतीय इतिहासकार थे, जिन्होंने पुरातात्विक अनुसंधानों से प्राप्त साक्ष्यों को अपने लेखन का आधार बनाया और वैदिक और अन्य प्राचीन ग्रंथों और भाषा विज्ञान की स्थापनाओं से उसे यथा संभव संपुष्ट करने की कोशिश की। सन 1969 में उन्हें नेहरू फेलोशिप मिली थी।

‘पटना विश्वविद्यालय’ के इतिहास विभाग के प्रमुख बनने के बाद राम शरण शर्मा ने 1970 के दशक में ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ के इतिहास विभाग के डीन के रूप काम किया। वे 1972 से 1977 तक ‘भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद’ के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे थे।

राम शरण शर्मा ने ‘टोरंटो विश्वविद्यालय’ में भी अध्यापन कार्य किया। वे ‘लंदन विश्वविद्यालय’ के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़’ में एक सीनियर फेलो, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नेशनल फेलो और 1975 में ‘इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस’ के अध्यक्ष भी रह चुके थे।

उनकी कुछ रचनायें-
‘आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता’
‘भारतीय सामंतवाद’
‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’
‘प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं संस्थाएँ
‘भारत के प्राचीन नगरों का इतिहास’
‘आर्यों की खोज’
‘प्रारंभिक मध्यकालीन भारतीय समाज: सामंतीकरण का एक अध्ययन’
‘कम्युनल हिस्ट्री एंड रामा’ज अयोध्या’
‘विश्व इतिहास की भूमिका’1951-52
‘सम इकानामिकल एस्पेक्ट्स ऑफ़ द कास्ट सिस्टम इन एंशिएंट इंडिया’ 1951
‘रोल ऑफ़ प्रोपर्टी एंड कास्ट इन द ओरिजिन ऑफ़ द स्टेट इन एंशिएंट इंडिया’ 1951-52
‘शुद्राज इन एनसिएंट इंडिया एवं आस्पेक्ट्स ऑफ़ आइडियाज़ एंड इंस्टिट्यूशन इन एंशिएंट इंडिया’ 1958
‘आस्पेक्ट्स ऑफ़ पोलिटिकल आइडियाज एंड इंस्टीच्यूशन इन एंशिएंट इंडिया’ 1959
‘इंडियन फयूडलीजम’ 1965
‘रोल ऑफ़ आयरन इन ओरिजिन ऑफ़ बुद्धिज्म’ 1968
‘प्राचीन भारत के पक्ष में’ 1978
‘मेटेरियल कल्चर एंड सोशल फार्मेशन इन एंशिएंट इंडिया’ 1983
‘पर्सपेक्टिव्स इन सोशल एंड इकोनौमिकल हिस्ट्री ऑफ़ अर्ली इंडिया’ 1983
‘अर्बन डीके इन इंडिया-300 एडी से 1000 एडी’ 1987
‘सांप्रदायिक इतिहास और राम की अयोध्या’ 1990-91
‘राष्ट्र के नाम इतिहासकारों की रपट’ 1991
‘लूकिंग फॉर द आर्यन्स’ 1995
‘एप्लायड साइंसेस एंड टेक्नोलाजी’ 1996
‘एडवेंट ऑफ़ द आर्यन्स इन इंडिया’ 1999
‘अर्ली मेडीएवल इंडियन सोसाइटी:ए स्टडी इन फ्यूडलाईजेशन’ 2001
सभार: महेंद्र विष्ट के फेसबुक वाल से