योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद जैसी संभावित थी, वैसी ही प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कट्टर भाजपाई खुश और उत्साह से भरे हुए हैं। उदार भाजपाइयों के कंधे थोड़े झुके हैं। देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब में भरोसा रखने वाले लोग निराश हैं। प्रदेश के मुसलमान आम तौर पर आशंकित या संदेह से भरे हुए हैं।
इस राजनीतिक घटनाक्रम पर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई। जबतक भाजपा देश और राज्यों में बहुमत के थोड़ा आगे-पीछे हिलडुल रही थी, उसे उसे वाजपेयी या राजनाथ सिंह के तौर पर अपनी थोड़ी उदार छवि प्रोजेक्ट करने की मजबूरी थी। केंद्र और उसके बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत के बाद आत्मविश्वास से भरी भाजपा ने अपना वह मुखौटा उतार फेका है। अब उसे नाटक करने की ज़रुरत नहीं रही। भाजपा मूलतः वैसी ही है जैसे योगी आदित्यनाथ हैं।
उत्तर प्रदेश के बहुसंख्यक लोगों को देश की सियासत का यही चेहरा पसंद है तो हमारे पास अब इसे थोड़े भय, थोड़ी आशंका और थोड़ी उम्मीद के साथ देखने के अलावा क्या रास्ता है ? जिस तरह सोशल मीडिया पर कुछ लोगों द्वारा नई सरकार के प्रति गाली-गलौज और अभद्र शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है, वह अमान्य है।
आप मोदी सरकार की तरह उत्तर प्रदेश सरकार को जितनी गालियां देंगे, उनकी प्रतिक्रिया में सरकार का समर्थन भी उसी अनुपात में बढ़ेगा। हाल के वर्षों में भाजपा की बढ़ी ताक़त के पीछे उसके अंधभक्तों से ज्यादा बड़ी भूमिका उसके अंध और अभद्र विरोधियों की रही है।
अंधविरोधियों की निरंतर बढ़ती गालियों और व्यक्तिगत, अशालीन टिपण्णियों की वज़ह से अपने तीन साल के कार्यकाल में अपने चुनाव घोषणा-पत्र का एक भी वादा पूरा नहीं करने के बावज़ूद नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ताक़त घटने के बज़ाय लगातार बढ़ी है।
आश्वस्त रहें, यह वक़्त भी बदलेगा। जैसे भ्रष्ट और वंशवादी कांग्रेस का पतन हुआ, देश की सियासत का यह भगवा चेहरा भी हमेशा नहीं रहने वाला। फिलहाल यह मुश्किल ज़रूर दिख रहा है। भाजपा को अपदस्थ करने के लिए अगले कुछ सालों में बंटे हुए विपक्ष को भी अपना परिवारवादी, अवसरवादी और भ्रष्ट चेहरा बदलना होगा। जनमत को ही ऐसा दबाव बनाना होगा कि तमाम जनवादी, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष दल एक झंडे के नीचे इकठ्ठा होने के लिए मजबूर हो जायं। जबतक ऐसा नहीं हो जाता, तबतक क्यों न हम सब थोड़ा रचनात्मक रूख अपना कर देखें ? सही कामों में सरकार का साथ दें और उसके गलत और जनविरोधी क़दमों के विरोध में बोलें, लिखें और जनमत तैयार करते चलें।
- ध्रुव गुप्त