अज़ीम हाशिम प्रेमजी एक भारतीय उद्योगपति, निवेशक और भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी विप्रो के अध्यक्ष हैं। वे भारत के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक हैं और सन 1999 से लेकर सन 2005 तक भारत के सबसे धनि व्यक्ति भी थे। वे एक लोकोपकारी इंसान हैं और अपने धन का आधे से ज्यादा हिस्सा दान में देने का निश्चय किया है। एशियावीक ने उन्हें दुनिया के टॉप 20 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया और टाइम मैग्जीन ने दो बार उन्हें दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया है।
विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी ने दानशीलता और परोपकारिता का एक और बड़ा उदाहरण पेश करते हुए सबका दिल जीत लिया है। पिछले दिनों उन्होंने विप्रो के अपने लगभग 34 फीसदी शेयर यानी करीब 52,750 करोड़ रुपए अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को दान करने की घोषणा कर दी। इतना ही नहीं, प्रेमजी ने विप्रो के 67 फीसदी शेयर से होने वाली आमदनी भी चैरिटेबल फाउंडेशन को दान करने की प्रतिबद्धता जताई है। कंपनी में प्रेमजी के परिवार और कंपनियों की हिस्सेदारी 74.30 फीसदी है। अजीम प्रेमजी देश के उन चंद धनवानों में से हैं, जो अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाजसेवा के लिए देते रहे हैं।
अब तक उन्होंने कुल 145,000 करोड़ रुपए (21 अरब डॉलर) दान कर दिए हैं। प्रेमजी का कहना है कि अमीर होना उन्हें रोमांचित नहीं करता। उनका मानना है कि जिन्हें धन रखने का विशेषाधिकार प्राप्त है, उन्हें उन लोगों की दुनिया को बेहतर बनाना चाहिए जिन्हें कम विशेषाधिकार प्राप्त है। अपने इस आदर्श को जमीन पर उतारने के लिए उन्होंने 2001 में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की। यह एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसका लक्ष्य है गुणवत्तायुक्त सार्वभौमिक शिक्षा जो एक न्यायसंगत, निष्पक्ष, मानवीय और संवहनीय समाज की स्थापना में मददगार हो। यह फाउंडेशन भारत के लगभग 13 लाख सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए काम करता है। यह संगठन वर्तमान में कर्नाटक, उत्तराखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पांडिचेरी, आंध्र प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश की सरकारों के साथ मिलकर कार्य कर रहा है। सन 2010 में, अजीम प्रेमजी ने देश में स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए लगभग 2 अरब डॉलर दान करने का वचन दिया। भारत में यह अपनी तरह का सबसे बड़ा दान है। कर्नाटक विधान सभा के अधिनियम के तहत अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय भी स्थापित किया गया।
लेकिन दुर्भाग्य से भारत के अन्य पूंजीपतियों में यह भावना कम है। आर्थिक सलाहकार फर्म ‘बेन ऐंड कंपनी’ की भारत में परोपकारिता पर जारी नई रिपोर्ट बहुत उत्साहजनक तस्वीर नहीं पेश करती। रिपोर्ट के मुताबिक, निजी चैरिटी फंडिंग में बेहद अमीर लोगों की हिस्सेदारी महज 55 फीसदी ही है और उसमें भी अकेले प्रेमजी का अंशदान 80 फीसदी है। अगर प्रेमजी द्वारा दी गई राशि को छोड़ दिया जाए तो धनिक भारतीयों के दान में वित्त वर्ष 2013-14 से लेकर 2017-18 के दौरान 4 फीसदी की गिरावट ही आई है।
गौरतलब है कि गत पांच वर्षों में बेहद अमीर भारतीयों की संख्या 12 फीसदी बढ़ी है और वर्ष 2022 तक उनकी संख्या और संपत्ति के दोगुना होने का अनुमान है। हमारे समाज में जो असमानता है, उसे सिर्फ आर्थिक वृद्धि की नीति के जरिए पाटना संभव नहीं है। इसमें निजी योगदान का बड़ा महत्व है। अनेक देशों में इससे असाधारण परिणाम आए हैं। अजीम प्रेमजी से प्रेरणा लेकर अन्य उद्योगपतियों को भी सामाजिक विकास के क्षेत्र में अपना योगदान देना चाहिए। उनके योगदान से देश में असंतोष कम होगा और एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण होगा, जिसका लाभ उन्हें भी मिलेगा।
पुरस्कार और सम्मान
सन 2000 में मणिपाल अकादमी ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया सन
सन 2005 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया
2006 में ‘राष्ट्रीय औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान, मुंबई, द्वारा उन्हें लक्ष्य बिज़नेस विजनरी से सम्मानित किया गया
2009 में उन्हें कनेक्टिकट स्थित मिडलटाउन के वेस्लेयान विश्वविद्यलाय द्वारा उनके उत्कृष्ट लोकोपकारी कार्यों के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया
सन 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया
सन 2013 में उन्हें ‘इकनोमिक टाइम्स अचीवमेंट अवार्ड’ दिया गया
सन 2015 में मैसोर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया