मिसाल : जब ज़हीर आलम के साथ उसके दोस्त अभिषेक ने पढ़ी ईद की नमाज़…

ईद का दिन था तो सुबह से ही घर में हंगामा हो रखा था । इरफ़ान और अब्बा सुबह 6 बजे ही नमाज़ के लिए दिल्ली की जामा मस्जिद चल गए थे । मैं और अम्मा सिंवई और खाना बनाने में जुटे थे । लगभग साढे आठ बजे इरफान और अब्बा नमाज़ पढ़ के आ चुके थे ।

मेड बर्तन धो रही थी और अब्बा पेपर पढ़ने लगे । इसी बीच मेरी नज़र बिस्तर पर पड़े मोबाइल फोन पर पड़ी, ये मोबाइल हमारे घर में से किसी का भी नहीं था । फिर मैंने मेड से पूछा उसने भी मना कर दिया । हम सोचने लगी दूसरी वाली मेड का होगा लेकिन वो फोन उसका भी नहीं था । हम हैरान परेशान कि ये किसका फोन है जो हमारे घर में आ गया ।

इरफान से पूछ ही रही थी कि फोन बजा उस पर लिखा आ रहा है था डैडी जी कॉलिंग । मैंने फोन उठा तो वहां से एक अंकल बोले कि आप कहां से बोल रही हैं मैंने कहा नोएडा से । उन्होंने बताया कि फोन उनके बेटे का है । इरफान अंकल से बात कर ही रहे थे कि मैंने अब्बा से पूछा कि फोन आपको मिला था क्या ।

अब्बा ने कहाकि फोन तो हमारे बैग में मिला था, मुझे लगा इरफान का फोन है तो रखा रहने दिया । हमको माजरा समझने में बहुत देर नहीं लगी । दरअसल किसी ने फोन चुराकर अब्बा के बैग में डाल दिया था और फिर शायद वो फोन बैग से निकाल नहीं पाया ।

इरफान ने अंकल को अपना नंबर और पता दिया उन्होंने अपने बेटे के दोस्त को फोन कर बताया कि यहा से फोन ले ले । लेकिन असल कहानी अब शुरु होती है । वो कहानी जो मुझे आज बहुत सुकून से भर गई ।

चोरी के मोबाइल फोन से शुरु हुआ किस्सा एक ऐसे मोड़ पर पहुंने वाला था कि जिस ईद पर देश में बढ़ती मुस्लमानों के प्रति हिंसा से उदास से वही ईद मुझे सुकून दे गई । तमाम निराशाओं के बीच जो शख़्स फोन लेने घर आया उससे मिलकर लगा कि हिंदुस्तान को कोई कुछ नहीं कर सकता है ।

दो घंटे बाद हमारे घर पर दो लोग आए उनमें से एक का नाम था ज़हीर आलम और दूसरा उसे साथ था अभिषेक विश्वकर्मा (सफेद कुर्ता में अभिषेक)। दोनों कुर्ता पजामा पहने हुए थे बिल्कुल ईद की नमाज़ पढ़कर आए हों जैसे । उन्होंने बताया कि फोन अभिषेक का है इरफान ने फोन अनलॉक करने को कहा अभिषेक ने फौरन उसे खोल दिया ।

ईद का दिन था तो हमने उन्हें दही वड़े खिलाए और बातचीत की तो जो अभिषेक ने बताया वो मेरी आंखों में चमक ले आया । लखनऊ का रहने वाला अभिषेक अपने बचपन के दोस्त ज़हीर के साथ नमाज़ पढ़ने के लिए जामा मस्जिद गया था । वहीं उसका फोन चोरी हो गया । मैंने दो बार पूछा कि आप नमाज़ पढ़ने गए थे तो बोला हां ये मेरा बचपन का दोस्त है इसके साथ ही ईद मनाने आया था ।

अभिषेक जब जाने लगा तो मैंने उन दोनों लोगों की तस्वीर ले ली ताकि मैं लोगों को बता पाऊ कि तुम कितनी भी नफ़रत घोल लो यही तो असली भारत की तस्वीर है जहां अभिषेक और ज़हीर एक साथ हैं ।

कुछ लोग जो सिर्फ़ मुसलमान की नाम और पहचान से नफरत कर रहे है उनके लिए अभिषेक और ज़हीर तमाचा हैं। मेरे लिए ज़िंदगी की ये सबसे बेहतरीन ईद में से एक थी जो तमाम उम्र याद रहेगी और याद रहेगी अभिषेक और ज़हीर की दोस्ती । अल्लाह ऐसी दोस्ती सलामत रखें ,नींव हैं हमारे मुल्क़ की, यही उम्मीद हैं नफ़रतों के बीच मोहब्बत की ।

निदा रहमान