जवाहर लाल नेहरू की शादी का उर्दू दावतनामा

यूँ तो फारसी और उर्दू प्राचीन भारत में शिक्षित वर्ग की शान और उनकी ज्ञान और कौशल की रहनुमाई करती थी, लेकिन बीसवीं सदी की शुरूआत से या इसके कुछ पहले से उर्दू को धीरे धीरे भुला दिया जाने लगा। उर्दू को सबसे ज्यादा नुकसान इस बात से हुआ कि उसका रिश्ता अल्पसंख्यक वर्ग से जोड़ दिया गया।

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लेकिन तथ्य तो यह है कि उर्दू हमेशा से ही हिंदुस्तान की ज़बान रही है, न कि मुसलमान की ज़बान। उनका सबसे बेहतरीन नमूना और जीता जगता सबूत जवाहरलाल नेहरू की शादी का वह कार्ड और दावतनामा है जो उर्दू में प्रकाशित हुआ था। गौरतलब है कि इस कार्ड में तारीख, सन और वक़्त भी उर्दू में लिखा गया है।

जवाहरलाल नेहरू और कमला कोली की शादी से संबंधित तीन दावतनामे, जो एक दस्तावेज़ की हैसियत रखते हैं। यह आपके सामने है और इसमें तहरीर किया गया उर्दू पढ़कर उर्दू वालों को अंदाज़ा होगा कि आज मुस्लिम समाज में छपे उर्दू के शादी कार्ड की ज़बान में उतनी मिठास नहीं होगी, जितनी कि जवाहरलाल नेहरु की शादी कार्ड में मिलती है। पहला दावतनामा जो पंडित जवाहरलाल नेहरु के पिता पंडित मोतीलाल नेहरु की ओर से छपा था वह यह है: