हैदराबाद की एक इस्लामिक संस्था जामिया निजामिया के मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन एक फतवा जारी किया है। फतवे में कहा गया है कि मुस्लिम झींगा, केकड़ा और चिंराट ना खाएं। इन्हें खाना इस्लाम में हराम है। बता दें की ये संस्था करीब 142 साल पुरानी है। यह डीम्म यूनिवर्सिटी के अंतर्गत भी आती है। ऐसे में संस्था द्वारा फतवा जारी करने से मुफ्ती मोहम्मद विवादों के घेरे में आ गए हैं।
झींगा खाने को लेकर जामिया निजामिया के मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन का फतवा विवादों में घिर गया है. फतवे के खिलाफ कई मुफ्ती खुलकर सामने आ गए हैं. जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के मुफ्ती मोहम्मद अबरार ने झींगे को हराम बताने वाले फतवे का कड़ा विरोध किया है.
वही मुफ्ती मोहम्मद अबरार ने कहा, ‘झींगे के अंदर खून नहीं होता. यह मछली प्रजाति की तरह है और इसे खाने में कोई हर्ज नहीं है.’ उलेमा-ए-देवबंद भी झींगा खाने को हराम नहीं मानता. झींगा खाने के खिलाफ दिए गए फतवे का मुस्लिम छात्रों ने भी विरोध किया है. हैदराबाद में मौजूद एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले मोहम्मद आमिर का कहना है, ‘खाने पीने पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए और इस तरह का फतवा स्वीकार नहीं किया जा सकता.’
लेकिन जामिया निजामिया के प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन फतवे पर कायम है. उन्होंने फतवा दिया है कि मुसलमानों के लिए झींगा घृणित है और इस्लाम उसे खाने की इजाजत नहीं देता. जामिया निजामिया 142 साल पुराना दक्षिण भारत का एक अहम मदरसा है. मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन के फतवे के मुताबिक झींगा मछली नहीं है, इसलिए वो मकरुह तहरीम है. मकरुह तहरीम का मतलब ऐसी चीज जिसे किसी भी हाल में खाया नहीं जाना चाहिए.