मैं निष्पक्ष नहीं.. पत्रकार का काम होता है विपक्ष होना.. निष्पक्ष होना नहीं- अभिसार शर्मा

देख रहा हूं सभी चैनल्स पर विपक्ष की मोदी सरकार को ताजा चुनौती पर कवरेज ….कोई खयाली पुलाव कह रहा है, कोई मुंगेरीलाल के हसीन सपने, कोई ये भी कि ये सब चल नहीं पाएगा. यानि के पहले ही सबने अपना निर्णय दे दिया है. और ये काम हम भला क्यों करने लगे? चुनौती कितनी गम्भीर है, कितनी हल्की जरूर डिबेट हो. मगर ये कह देना कि बकवास है …चल नहीं पाएगा?

खैर एक जमाना था जब ये कहा जाता था कि मीडिया सरकार का विपक्ष है और कहीं न कहीं एक अलिखित साझेदारी होती थी. मै ये तो नहीं कहता कि पत्रकार विपक्ष का प्रवक्ता बन जाए, मगर कम से कम, सरकार के या बीजेपी के प्रवक्ता तो न बनें. यानि के मोदी सरकार को न सिर्फ सरकार का सुख प्राप्त है, बल्कि विपक्ष का भी.

हाल मे एक दीदी और भईया से मुलाकात हुई … दीदी ने कहा …अभिसार आपकी आंखों मे मोदीजी के लिए जहर क्यों है? खुद ये बताना भूल गईं कि उनके रोम रोम से मोदीजी के लिए भक्ति रस टपक रहा था. क्यो न हो? पति देव बीजेपी की सरकार मे मुलाजिम हैं.

भईया ने कहा ..अभिसार तुमको न्यूट्रल होना चाहिए ..किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए . हां, भाईसाहब की राजनीतिक मह्त्वाकांक्षाओं मे उनका साथ दिया होता तो मुझसे महान कोई पत्रकार नहीं होता इनके लिए.

सवाल ये नहीं. जब मैंने सलमान खुर्शीद की बखिया प्रेस कांफ्रेंस मे उधेड़ी थी …जब क्यों वाहवाही की गई? जब अन्ना आंदोलन का साथ दिया, तब क्यों नहीं निष्पक्षता का पाठ पढ़ाया लोगों ने? जब रामदेव पर रामलीला मैदान मे हमला किया था दिल्ली पुलीस ने और जब मैने अपने शो से लालू प्रसाद यादव को सवाल का जवाब न देने पर बाहर निकाल दिया था, तब क्यों नहीं बताया था मुझे बीजेपी का दलाल?

मगर मोदीजी से सवाल करों , तो क्या दीदी , क्या भईया ..क्या दोस्त पत्रकार …सबको मिर्ची लगती है. क्यों भई? मोदीजी लिखवा कर लाए थे क्या ऊपर से कि उनकी आलोचना कोई नहीं करेगा? कौनसी दैवीय शक्ति हासिल है उनको ?

दलितों के साथ ,मुसलमानों के साथ, युवाओं के साथ अगर कोई ज्यादती होती है ..कोई अन्याय होता है …तो क्यो न मैे सवाल करूं?

क्यो न सवाल करूं मोदीजी की सुविधाजनक खामोशी पर? फिर कहते हो देश को पहली बार बोलने वाला पीएम मिला है. अरे , अपनी शर्तों पर बोलने वाला पीएम मिला है. समझे ना? फर्क होता है.

शिक्षा का, मीडिया का, संस्थाओं का सत्यानाश कबतक होता देखते रहें भई. किस भारत का निर्माण हो रहा है. बताईये?

मै आज ये साफ कर देना चाहता हूं कि मै न्यूट्रल या निष्पक्ष नहीं हूं. जो पत्रकारिता 20 साल मे नहीं बदली मैने, मोदीजी के लिए नहीं बदलूंगा. सत्ता को डंके की चोट पर कटघरे मे खड़ा करना पत्रकारिता है. यहीं सीखा है. यहीं करते रहेंगे. क्योंकि मैं मानता हूंं सरकारी दमन के खिलाफ पत्रकार रक्षा की पहली पंक्ति है (First line of defence) .

वो नहीं बदलने वाला ..क्योंकि ये वो सरकार है जो आपकी आवाज खामोश करने मे विश्वास करती है ….मेरे दोस्त जानते हैं मैं क्या कह रहा हूं ….