अगर उन बच्चों के मां-बाप मुझे गुनहगार नहीं मानते तो नहीं चाहिए कोई माफ़ी: डॉ कफील

मैं बैरक के कोने में बैठा रहता। वहीं सोचता, वहीं सो जाता, कभी खाना खाता कभी नहीं। कई दिन युहीं गुजर जाते, नहाने की हिम्मत नहीं हो पाती थी क्योंकि सबके साथ नहाना पड़ता था। शाम 6 बजते ही हम अंदर कर दिए जाते तो सुबह 6 बजे ताला खुलता।

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गिनती होती, कैदियों की कतार में अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए होस्पिटल में मरीजों का इंतज़ार याद आता और वह रात जब मरते बच्चों की सांसों के लिए में रातभर यहाँ से वहां दौड़ता और उपर वाले से दुआ मांगता रहा। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में पिछले साल ऑक्सीजन की कमी से लगभग 70 बच्चों की मौत के मामले में डॉक्टर कफील खान एक कठघरे में आ गए। सितंबर 2017 से अप्रैल 2018 तक का समय जेल में काटा। हाल ही में रिहा हुए कफील के लिए 8 महीने एक आजमाइश से कम नहीं थे।

कठिन हालातों में मरीजों की जान बचाने का फैसला पल भर में लेने वाला यह डॉक्टर जेल के अंदर रोजाना के कामों को लेकर भी आगे रहता। खून, रेप, देशद्रोही आरोपियों के बीच इस इंतज़ार के खत्म होने के इंतजार में जिसकी कोई अवधि नहीं थी।