ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने गुरुवार को ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं’ के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा कि इस निर्णय से यह साफ हो गया है कि अयोध्या मामले की सुनवाई आस्था की बुनियाद पर बिल्कुल नहीं होगी।
बोर्ड कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य मौलाना रशीद ने कहा कि अदालत के फैसले का हम सब सम्मान करते हैं। हालांकि हम चाहते थे कि इस्माइल फारूकी वाले मामले को संवैधानिक पीठ के सामने रखा जाए, ताकि मसला हमेशा के लिए हल हो जाए।
It would have been better if this issue was referred to Constitutional bench. Also, I have an apprehension that the enemies of secularism in this country will use this judgment to realize their ideological objectives: Asaduddin Owaisi on Ayodhya matter (Ismail Faruqui case) pic.twitter.com/1iWetCIBce
— ANI (@ANI) September 27, 2018
उन्होंने कहा ‘लेकिन आज के फैसले से दो बेहद सकारात्मक बातें निकलकर आई हैं। पहला, यह कि अयोध्या मामले की सुनवाई कतई तौर पर आस्था की बुनियाद पर नहीं होगी, बल्कि केवल स्वामित्व के विवाद के तौर पर होगी। दूसरा, इस्माइल फारूकी की अदालत का जो भी नजरिया था, उसका कोई भी असर अयोध्या मामले पर नहीं पड़ेगा।
मौलाना ने कहा कि अब 29 अक्तूबर से अयोध्या मामले की सुनवाई का एलान किया गया है, उससे उम्मीद जगी है कि मामले की अंतिम सुनवाई जल्द से जल्द हो जाएगी.उन्होंने एक सवाल पर कहा कि इस मामले में जहां तक मजहबी नजरिए का सवाल है तो मस्जिद का बुनियादी मकसद ही नमाज अदा करने का होता है. मस्जिद का होना जरूरी है. यह बात कुरान, हदीस और इस्लामी कानून से पूरी तरह साबित है।
‘जितने भी प्रमाण और जिरह-बहस हैं अदालत के सामने रखे जाए’
मौलाना ने कहा कि उच्चतम न्यायालय सर्वोच्च अदालत है और अयोध्या मामले की सुनवाई के मामले में उसे आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखना मुनासिब नहीं होगा।
हम सबकी ख्वाहिश है कि इस मामले में जितनी भी बातें, जितने भी प्रमाण और जिरह-बहस हैं, वे पूरे इत्मीनान और सुकून से अदालत के सामने रखा जाए और उसके बाद ही न्यायालय कोई फैसला दे। इसे चुनाव से जोड़कर बिल्कुल भी ना देखा जाए।
मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय ने ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं’ के बारे में शीर्ष अदालत के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से आज इनकार कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने 2-1 के बहुमत के फैसले में कहा कि दीवानी वाद का फैसला सबूतों के आधार पर होना चाहिए और पहले आये फैसले की यहां कोई प्रासंगिकता नहीं है।