पाकिस्तान- भारतीय पर्यवेक्षक एसवाई कुरैशी ने कहा मतदान के समय किसी बड़े घपले की कोई जानकारी नहीं

इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ ने 116 सीटें जीती हैं, लेकिन अभी भी वो बहुमत से 20 सीटें पीछे हैं. नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग(नवाज़) 64 सीट जीतकर दूसरे नंबर पर रही जबकि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) केवल 43 सीट ही जीत पाई.

पाकिस्तानी संसद में कुल 342 सीटें होती हैं. इनमें से 272 जनरल सीटें हैं, 60 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और 10 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए.

25 जुलाई को 270 सीटों के लिए चुनाव हुए थे.

लेकिन विपक्षी पार्टियों ने चुनाव में कथित धांधली के आरोप लगाते हुए चुनावी नतीजों को मानने से इनकार कर दिया है.

अख़बार जंग के अनुसार धार्मिक पार्टियों के समूह मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमल (एमएमए) ने शुक्रवार को सभी विपक्षी पार्टियों की बैठक बुलाई थी जिसके बाद फ़ैसला लिया गया है कि नतीजों का बहिष्कार किया जाएगा, दोबारा चुनाव की मांग करते हुए सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ा जाएगा.

हालांकि पीपीपी ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया था.

बैठक के बाद एमएमए के प्रमुख मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, ”चुनाव आयोग के नतीजे जनता का मैंडेट नहीं बल्कि जनता के मैंडेट पर डाका डाला गया है.”

उन्होंने कहा कि इस बैठक में निर्वाचित लोगों से शपथ नहीं लेने की अपील की गई है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि धांधली से जीतकर आए लोगों को सदन में घुसने नहीं देंगे.

लेकिन मुस्लिम लीग (नवाज़) के प्रमुख शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि इस बारे में कोई भी फ़ैसला पार्टी फ़ोरम में लिया जाएगा.

अख़बार एक्सप्रेस के मुताबिक़ पीपीपी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि वो चुनावी नतीजों को नहीं मानते हैं, लेकिन संसद का बहिष्कार करना ठीक नहीं है. उन्होंने इस मौक़े पर कहा कि चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने में नाकाम रहा है इसलिए चुनाव आयुक्त को इस्तीफ़ा देना चाहिए.

लेकिन यूरोपीय यूनियन और कॉमनवेल्थ देशों के चुनावी पर्यवेक्षकों ने कहा है कि चुनाव में किसी बड़े पैमाने पर धांधली के कोई सबूत नहीं मिले हैं.

अख़बार दुनिया के अनुसार, ”भारतीय पर्यवेक्षक एसवाई कुरैशी का भी कहना है कि मतदान के समय किसी बड़े घपले की कोई जानकारी नहीं हैं, अलबत्ता वोटों की गिनती के दौरान कुछ कमियां थीं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ इस वजह से हुई थीं कि चुनाव आयोग के कर्मचारी पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं थे.”