जानिए, डील अॉफ सेंचुरी क्यों फलस्तीन के खिलाफ़ है?

इक़बाल रज़ा, कोलकाता। ‘Deal Of The Century’ का आरम्भिक बिंदु (Starting Point) ही फिलिस्तीन के खिलाफ है जो एक-राज्य (Single-State) पर आधारित है। यह योजना फिलिस्तीनियों के हक़ में नहीं बल्कि इन्हें वित्तीय लालच देकर फंसाने की कोशिश है।

नए दौर की बातचीत में शामिल होने का मतलब इज़राइल और ट्रम्प प्रशासन द्वारा बुने गए जाल में खुद को फंसाने के सामान है। लेबनान की अख़बार Al-Akhbar के अनुसार, सऊदी अरब फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास को योजना मानने के एवज में $10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पेशकश की है जबकि महमूद अब्बास द्वारा जारी बयान में कहा गया की फ़िलिस्तीनी डील ऑफ़ द सेन्चरी को कभी नहीं स्वीकार करेंगे क्योंकि अमेरिका हमेशा फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ रहा है।

फिलिस्तीनियों को नए प्रस्ताव में ऐसे किसी भी आधार को स्वीकार नहीं करना चाहिए जो दशकों पुरानी समझ से विकसित हुई शांति स्थापना के प्रयासों के विरुद्ध हो। फिलिस्तीनियों को संभवत: ‘Deal Of The Century’ के नाम पर पिछली तमाम वार्ताओं के आधार से दूर करने की कोशिश की जा रही है, नया विकल्प इजरायल को ग्रेटर इज़राइल का सपना पूरा करने वाला ज़्यादा है।

ट्रम्प प्रशासन के अधिकारी भी इस बात की पुष्टि से इंकार कर रहे हैं कि अमेरिका दो-राज्य समर्थक है और वाशिंगटन समाचार रिपोर्टों के अनुसार योजना स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का प्रस्ताव नहीं करेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के दामाद, जारेड कुश्नर के वक्तव्यों से भी ज़ाहिर होता है कि यह आर्थिक लाभ के साथ सीमित स्वायत्तता जिसमें इजरायल तथा इसके कब्जे वाले क्षेत्र में सामान अधिकार देने जैसा प्रस्ताव है।

अब तक इजरायल-फिलिस्तीनी वार्ता का आधार ओस्लो समझौता (Oslo Agreement) तथा 1993 के सिद्धांतों की घोषणा पर आधारित रहा है जो स्वतंत्र फिलीस्तीनी शासित प्राधिकरण की बात करता है। बाद में इसका सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यरूशलम को किनारे कर दिया गया और ट्रम्प द्वारा यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देकर लगभग समाप्त ही कर दिया है जो फिलिस्तीनियों को किसी कीमत पर स्वीकार नहीं है।

फिलिस्तीनियों और हमास को भी एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के निर्माण पर जोर देना चाहिए जिसमें सभी लोग समान हों। फिलिस्तीन को अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ मौजूदा समझौतों के आधार पर अपने स्वयं के तर्कपूर्ण वैकल्पिक शांति प्रस्ताव का मसौदा पेश करना चाहिए जो फिलिस्तीनियों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों 242 और 338 और विशेष रूप से 1397 (2002) जो फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण से सम्बंधित है – को आधार बनाकर ही आगे बढ़ना चाहिए जो दो-राज्य समाधान के आधार पर हो, जिसमें ईसाई, मुस्लिम और यहूदी सब समान हों तभी व्यापक समर्थन आकर्षित हो सकता है, जिसमें अमेरिकी यहूदी भी हैं जो इजरायल की चरमपंथी सरकारी नीतियों से असहमत रहे हैं।

“Deal Of The Century” फिलिस्तीनियों के हक़ में नहीं :
“”Deal Of The Century” फिलिस्तीनियों के हक़ में नहीं बल्कि इन्हें वित्तीय लालच देकर फंसाने की कोशिश है। नए दौर की बातचीत में भाग लेने का मतलब इज़राइल और ट्रम्प प्रशासन द्वारा बुने गए जाल में खुद को फंसाने के सामान है।

फिलिस्तीनियों को नए प्रस्ताव में ऐसे किसी भी आधार को स्वीकार नहीं करना चाहिए जो दशकों पुरानी समझ से विकसित हुई शांति स्थापना के प्रयासों के विरुद्ध हो। फिलिस्तीनियों को संभवत: पीस प्लान के नाम पर पिछली तमाम वार्ताओं के आधार से दूर करने की कोशिश की जा रही है, नया विकल्प इजरायल को ग्रेटर इज़राइल का सपना पूरा करने वाला ज़्यादा है।

ट्रम्प प्रशासन के अधिकारी भी इस बात की पुष्टि से इंकार कर रहे हैं कि अमेरिका दो-राज्य समर्थक है और वाशिंगटन समाचार रिपोर्टों के अनुसार ट्रम्प योजना स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का प्रस्ताव नहीं करेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के दामाद, जारेड कुश्नर के वक्तव्यों से भी ज़ाहिर होता है कि यह आर्थिक लाभ के साथ सीमित स्वायत्तता देने जैसा प्रस्ताव हो सकता है।

अब तक इजरायल-फिलिस्तीनी वार्ता का आधार ओस्लो समझौता (Oslo Agreement) तथा 1993 के सिद्धांतों की घोषणा पर आधारित रहा है जो स्वतंत्र फिलीस्तीनी शासित प्राधिकरण की बात करता है।

बाद में इसका सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यरूशलम को किनारे कर दिया गया और ट्रम्प द्वारा यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देकर लगभग समाप्त ही कर दिया है जो फिलिस्तीनियों को किसी कीमत पर स्वीकार नहीं है।

उन्हें अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ मौजूदा समझौतों के आधार पर अपने स्वयं के शांति प्रस्ताव का मसौदा पेश करना चाहिए जो फिलिस्तीनियों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों 242 और 338 और विशेष रूप से 1397 (2002) जो फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण से सम्बंधित है – इसपर जोर देना चाहिए।

फिलिस्तीनी नेतृत्व को फिलिस्तीनियों, अरब जगत और वैश्विक संस्थानों को अपनी रणनीति समझानी चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों तक अपनी आवाज़ पहुंचानी चाहिए कि वे संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के नियमों का पालन कर रहे हैं।

फिलिस्तीनियों के लिए एकमात्र विकल्प मौजूदा समझौतों को आधार बनाकर ही नई वार्ता के लिए आगे बढ़ना ठीक रहेगा अन्यथा वे इनके जाल में फंसकर भारी नुकसान उठाने को मज़बूर होंगें।

लेखक: इक़बाल रज़ा