हार्दिक पटेल पर एक के बाद एक आरोप लगाने वाले मुकेश पटेल क्या बीजेपी के करीबी है?

बीजेपी की तरफ से हार्दिक पटेल पर आरोप लगाने वालों में एक प्रमुख नाम है सूरत के हीरा और रियल एस्टेट व्यापारी मुकेश पटेल का। मुकेश पटेल पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेहद करीबी हैं।

पाटीदारों के प्रभावशाली नेता और युवा शक्ति के प्रतीक के तौर पर उभरे हार्दिक पटेल पर बीजेपी जितने भी हमले कर रही है, उतना ही उनके समर्थकों की संख्या और उत्साह बढ़ता जा रहा है। बीजेपी की तरफ से हार्दिक पटेल पर आरोप लगाने वालों में एक प्रमुख नाम है सूरत के हीरा और रियल एस्टेट व्यापारी मुकेश पटेल का।

हालांकि मुकेश पटेल बीजेपी में किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेहद करीबी हैं। हार्दिक के समर्थकों का मानना है कि मुकेश पटेल पाटीदार अमानत आंदोलन समिति (पास) के खिलाफ दुष्प्रचार के लिए सीधे मोदी और शाह द्वारा नियुक्त किए गए हैं।

न्यूज पोर्टल ‘नवजीवन’ ने जब पाटीदार अमानत आंदोलन समिति के नेताओं और हार्दिक पटेल के इन आरोपों की तफ्तीश की तो यह बात सामने आई कि वाकई मुकेश पटेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेहद करीब हैं।

मुकेश पटेल बीजेपी विधायक और भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हर्ष सांघवी के भी बहुत करीबी हैं। सूरत के मजुरा विधानसभा से चुनाव लड़ने वाले हर्ष सिंघवी जैन समुदाय से हैं और हीरे उद्योग में दमदार हस्ती माने जाते हैं।

वह सूरत में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खास माने जाते हैं। पड़ताल के दौरान यह पाया गया कि मुकेश पटेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर इजराइल की राजधानी तेल अवीव में भी फोटो खिंचवा रखे हैं।

पीएम मोदी को गुलदस्ता भेंट करते हुए व्यापारी मुकेश पटेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजराइल यात्रा के दौरान 5 जुलाई 2017 को तेल अवीव में वहां बसे भारतीयों द्वारा एक बड़ा जमावड़ा आयोजित किया गया था। उसके कर्ताधर्ताओं में मुकेश पटेल और हर्ष सांघवी की अहम भूमिका थी। हर्ष सांघवी की बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ भी बहुत तस्वीरें हैं।

पीएम मोदी के साथ मुकेश पटेल इन तस्वीरों से साफ है कि मुकेश पटेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खासे करीब हैं। लिहाजा उनके क्रियाकलाप भी किसी न किसी रूप में मोदी और अमित शाह से जुड़े होंगे। ऐसे में कई सवाल उठते हैं:

1) जब हार्दिक पटेल को गुजरात सरकार ने तमाम आरोप लगा कर जेल में डाला था, तो मुकेश पटेल उनसे लगातार मिलने जाते थे। ऐसा वह किसके कहने पर कर रहे थे?

2) ऐसा उनका खुद का दावा है कि वह हार्दिक और गुजरात सरकार के बीच माध्यम का काम कर रहे थे। ऐसा वह क्यों कर रहे थे और किसके कहने से?

3) क्या वह हार्दिक का इसलिए समर्थन कर रहे थे, ताकि आंनदीपटेल को गुजरात की मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए ? इस बारे में हार्दिक पटेल ने सीधे-सीधे आरोप भी लगाया था कि अमित शाह के कहने पर मुकेश पटेल और महेश सवानी ने पाटीदार आंदोलन का समर्थन किया था, ताकि आनंदीबेन पटेल को हटाया जा सके और हुआ भी ऐसा ही।

पाटीदार आंदोलन की वजह से आनंदीबेन को जाना पड़ा और अमित शाह के विश्ववसनीय (और अपनी जाति के) विजय रूपानी मुख्यमंत्री बनाए गए।

4) सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर मुकेश पटेल ने हार्दिक के आंदोलन को मदद की और उसके रिश्तेदारों को लाखों रूपये की मदद की, तो उसे किस मकसद से रिकॉर्ड किया। आखिर क्यों अपने घर के सीसीटीवी कैमरा में उसे कैद किया। क्या मुकेश पटेल के दिमाग में पैसे की मदद करते समय इसे आगे ब्लैकमेल करने के लिए इस्तेमाल करने की योजना थी ?

5) अगर मुकेश पटेल हार्दिक की मदद पटेल समुदाय का होने की वजह से कर रहे थे, जैसा उनका दावा है, तो बाद में वह उसे ब्लैकमेल करने क्यों आ गए?

6) हार्दिक की मदद करके उसे फंसाने के लिए क्या मुकेश पटेल को बीजेपी ने इस्तेमाल किया ?इस तरह के तमाम सवालों के जवाब बीजेपी कभी नहीं देगी।

लेकिन पाटीदार युवकों के दिमाग में यह साफ है कि सारा खेल क्या है। इसलिए पिछले साल से मुकेश पटेल द्वारा हार्दिक पटेल पर पैसा लेने और मानसिक रूप से असंतुलित होने का आरोप लगाने और सेक्स सीडी के आने के बावजूद हार्दिक की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।

सूरत में पहली बार हार्दिक पटेल ने 3 नवंबर की अपनी विशाल जनसभा में अपने चिर-परिचित चुटीले अंदाज में साफ कहा था कि यह रैली और सभा नहीं करने के लिए बीजेपी की तरफ से मुकेश पटेल और विमल पटेल ने मुझे पांच करोड़ रुपये का ऑफर किया था।

हालांकि मुकेश पटेल ने इस आरोप का खंडन किया।सूरत से लेकर 11 दिसंबर को अहमदाबाद में हुई रैलियों और रोड-शो में हजारों की भीड़ इस बात की गवाही देती है कि वह पटेलों के एक असरदार नेता बहुत कम उम्र में बन गए है।

गुजरात में 14 फीसदी पटेल वोट हैं और वे उत्तर गुजरात, सौराष्ट्र, सेंट्रल गुजरात और दक्षिण गुजरात हर जगह मौजूद हैं और विधानसभा की 182 सीटों में से 70 सीटों में निर्णायक हैं। लिहाजा बीजेपी की परेशानी तो समझी ही जा सकती है।

सौजन्य- नवजीवन, भाषा सिंह की रिपोर्ट