शक्तिशाली देशों के झूठ की अहमियत कमजोर देशों के सच से अधिक होती है

शक्तिशाली देशों के झूठ की अहमियत कमजोर देशों के सच से अधिक होती है। लोग शक्तिशाली देशों के झूठ को सच मन लेते हैं मगर कमजोर देशों के सच को सच मानने के लिए तैयार नहीं होते। अमेरिका ने यह झूठ कहा था कि इराक के पास सावर्जनिक तबाही के हथियार हैं मगर विश्व समुदाय ने उसे सच माना मगर इराक यह सच बार बार कह कर भी नहीं मनवा सका कि उसके पास सार्वजनिक तबाही के हथियार नहीं हैं।

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सीरिया के हवाले से भी सच और झूठ का खेल पिछले कई सालों से जारी है। वह नष्ट हो चूका है मगर खेल अभी समाप्त नहीं हुआ। सीरिया में शांति बहाल करने की बातें पिछले कई सालों से की जा रही हैं मगर शांति बहाल करने की गंभीर संघर्ष कभी नहीं की गई।

सीरिया को शांतिपूर्ण बनाने के प्रति शक्तिशाली देश अगर वाकई गंभीर होते, उन्हें सीरिया की तबाही का एहसास अगर होता, अगर सीरियाई के दुःख दर्द के एहसास से वह दुखी होते तो सीरिया में हथियार सप्लाई नहीं करते। उन समूहों के सामने एसी शर्तें नहीं रखते जिन्हें मानना उसके लिए आसान न हो। शक्तिशाली देशों ने सीरिया और सीरियाई के हितों का ख्याल नहीं किया। उन्हें ख्याल हमेशा अपने हित का रहा। वह सीरिया के हालात के लिए अपने समर्थक समूहों को बेक़सूर और विरोधी समूहों को दोषी ठहराते रहे।