कितना जानते हैं हम जंग-ए-आज़ादी के योद्धा मौलाना हसरत मोहानी को…

मौलाना हसरत मुहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 को हुआ था, उर्दू के बड़े शाइरों में शुमार किये जाने वाले हसरत को भारत की आज़ादी के आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान के लिए भी याद किया जाता है। भगत सिंह ने जिस “इंक़लाब ज़िन्दाबाद” नारे को मशहूर किया था उस नारे को जन्म देने वाले हसरत ही थे।

उत्तर प्रदेश के मोहान (शहर उन्नाव) में जन्मे हसरत मोहानी का असली नाम सैय्यद फ़ज़ल उल हसन था। बहुत मेहनती स्टूडेंट थे

तस्लीम लखनवी और नसीम दहलवी की शागिर्दी उन्हें अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ही में मिल गयी जहां उन्होंने शाइरी में महारत हासिल कर ली। उनकी शाइरी आज के ज़माने में भी बहुत मशहूर और मा’रूफ़ है। कुल्लियात-ए-हसरत मोहानी में उनका सारा ही कलाम मिल जाता है। उनकी ग़ज़ल ‘चुपके चुपके रात चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है, हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है’ आम-ओ-ख़ास सभी लोगों के दिलों में समायी हुई है।

मौलाना हसरत मोहानी-बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर
मौलाना हसरत मोहानी-बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर

उन्होंने शाइरी के लिए जैसा इंक़लाबी काम किया, कुछ वैसा ही इंक़लाब उन्होंने सियासत में भी लाने की कोशिश की, हिन्दुस्तान की आज़ादी के सबसे मशहूर नारों में से एक ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा मोहानी की ही देन है,ये नारा 1921 में उन्होंने दिया जिसे बाद में शहीद भगत सिंह ने मशहूर किया। वो भारत कम्युनिस्ट पार्टी के फाउंडर-मेंबर भी थे।

हसरत मोहानी
हसरत मोहानी

13 मई 1951 को लखनऊ में उनकी मौत हुई थी।