मुसलमानों से पीएम मोदी का मिठा बोल: कल्याणकारी कार्यवाही से ही उनका दिल पसीजे गा- डॉ ज़फर महमूद

जॉर्डन के राजा की भारत-यात्रा के अवसर पर नयी दिल्ली के प्रतिष्ठित विज्ञान भवन में एक हज़ार से भी अधिक भारतीय मुस्लिमों की उपस्थिति में प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भाषण में उनकी पूर्व-कथित नीति से कुछ परिवर्तन की उम्मीद चमकी है।

मोदी ने स्वीकार किया कि भारत की धरती पर कई धर्म फले फूले हैं जिस कारण “हर कण में दिव्य प्रकाश” की भावना तथा भारत के शांति व प्रेम के संदेश की गूँज पूरे विश्व में फैली है। पीएम ने बेहद रुचि से दिल्ली की सूफी पृष्ठभूमि व राजधानी के नाम के उर्दू मूल को याद किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक व सांस्कृतिक विविधता ही भारत के खुलेपन का आधार है और साँझी विरासत ही भारत के राष्ट्रीय गौरव की जननी है।

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मोदी ने रंग-बिरंगी होली, आगामी गुड फ्राइडे और बुद्ध जयंती के अलावा आने वाले रमज़ान के महीने को बराबर में रखा और कहा कि ईद-उल-फित्र का पर्व हमें “बलिदान व पारस्परिक भव्यता” सिखाता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय लोकतंत्र हमारी प्राचीन बहुलता का एक अनुष्ठान है।

अम्मान इस्लामिक डेक्लेरेशन और जॉर्डन के राजकुमार ग़ाज़ी बिन मोहम्मद की पुस्तक “अ थिंकिंग पर्सन्स गाइड टु इस्लाम” की प्रशंसा करते हुए श्री मोदी ने उम्मीद जतायी कि भारतीय मुस्लिम युवा के एक हाथ में पवित्र क़ुरान हो जिससे उसे उच्च-कोटि की नैतिकता की शिक्षा मिले व दूसरे हाथ में कम्प्यूटर हो जिससे उसे आधुनिक विज्ञान और विकास द्वारा सशक्तीकरण मिले।

विज्ञान भवन में प्रयुक्त श्री मोदी के विचारों की ख़ुशबू और उनकी भाषा की मिठास भारतीय मुस्लिम इंद्रियों को चेतना-शून्य करके सुकून तो पहुँचाती हैं लेकिन फिर तुरंत ही वह समुदाय क्षणिक निद्रा से जाग कर अपने वर्तमान को अतीत के साथ जोड़ कर भविष्य की कल्पना करने में लग जाता है।

श्री मोदी के 1 मार्च 2018 का भाषण कानों में संगीत-जैसा लगता है, क्योंकि यह उनके अतीत के बयानों से बहुत ही भिन्न था, जिसमें उन्होंने शमशानों को कब्रिस्तानों के विरुद्ध खड़ा कर दिया था, और उससे भी पहले, बार-बार आक्रामक रूप से, सभी भारतीय मुस्लिमों को “मियाँ मुशर्रफ” जैसी सख़्त व अपमानजनक पदवी के तहत सम्बोधित किया था।

प्रधान मंत्री का पद धारण करने के बाद संसद में पहले सम्बोधन में श्री मोदी ने मुसलमानों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति को लेकर सहानुभूति व्यक्त की थी। उस के कुछ समय बाद, एक विदेशी समाचार प्रस्तुतकर्ता को जवाब देते हुए उन्होंने भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर विश्वास अभिव्यक्त किया था। लेकिन, इसके अलावा, उनके केंद्रीय राज के वर्तमान चार वर्षों की अवधि में, न सिर्फ बार बार मुसलमानों पर व्यक्तिगत रूप से शारीरिक आघात किये गये, बल्कि लगातार देश को यह आभास होता रहा कि मुस्लिम हितों व भावनाओं को नीचा दिखाने और ठेस पहुँचाने की निरंतर कोशिश की जा रही है।

यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अब इस ताज़ातरीन सुखद परिवर्तन के कारण हैं (i) राजस्थान व मध्य प्रदेश के हालिया मध्यावधि चुनावों में पराजय, (ii) साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण नीति के घटते हुए लाभ और (iii) अल्पसंख्यक-विरोधी होने की कलंकित वैश्विक छवि के निस्तारण का प्रयास।

इसमें शामिल कर दीजिए (iv) नोटबंदी की वजह से छोटे निजी व्यवसायों का बड़े पैमाने पर सामान्य नुकसान, (v) अधपके जीएसटी राज का अनियंत्रित नासूर और (vi) विजय माल्या, मेहुल चोकसी और नीरव मोदी की तरह के कई बड़े व्यापारियों द्वारा हज़ारों करोड़ रुपय की लूटमार कर के भारत से चोरी छुपे भाग जाना।

लगता है कि इन प्रतिकूल कारकों की बहुलता के मद्देनज़र, रणनीति के तहेत – भले ही अस्थाई तौर पर – भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने वाले दक़ियानूसी व भद्दे मोर्चे को संयमशील व तनावमुक्त बनाने के लिए उसे निरुत्साह अनुरंजन की चादर से ढक दिया गया है।

फिर भी, भारतीय मुस्लिम की यह तमन्ना है कि ऐसा निष्कर्ष ग़लत हो और सही मायनों में हृदय-परिवर्तन हुआ हो। उस स्थिति में, यह समुदाय उम्मीद करेगा कि प्रधान मंत्री के मिष्ट-भाषण की निरन्तरता के लिए आगे की कारवाई के तौर पर निम्नलिखित आधारभूत गतिविधियाँ की जाएँ गी:

भारत में साम्प्रदायिक घृणा को प्रोत्साहित करने वाले आक्रामक वाद-विवाद व ऐसे अन्य कार्यक्रम दिखाने वाले टेलिविज़न चैनलों की सार्वजनिक रूप से निंदा की जाए, उन्हें रोका जाए व उन्हें कड़ी सज़ा दी जाए।
2014 से चल रहे लिंचिंग के सभी मामलों की स्टेटस रिपोर्ट प्रकाशित की जाए।
उत्तर प्रदेश में मदरसों के साथ दुर्व्यवहार बंद किया जाए।
वास्तविक प्रेमियों के ख़िलाफ एनआईए को प्रवर्तित या उन्मुक्त न किया जाए।
अल्पसंख्यकों को अपमानित करने के लिए गढ़े गये ‘लव-जिहाद’ व ‘घर-वापसी’ जैसे वाक्यांशों को सार्वजनिक रूप से अस्वीकृत किया जाए।
आज़ादी के बाद से अब तक भारत में विभिन्न धर्मों की महिलाओं पर हुए सभी अत्याचारों के आँकड़े प्रकाशित किए जाएँ, जिसमें दहेज के लिए जलाना व मारना और तीन तलाक़ भी शामिल हों। आँकड़ों के आधार पर, ज़रूरत पड़े तो इन अपराधों के ख़िलाफ विशेष कानून बनाये जाएँ।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय व जामिया मिलिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक चरित्र को स्वीकार किया जाए और निराधार कारणों से इनका विरोध बंद किया जाए।
आरएसएस, उसके सहयोगी संगठनों व अन्य समरूपी संगठनों से संवैधानिक रूप से अनिवार्य दूरी रखी जाए और उनकी अल्पसंख्यक-विरोधी बयानबाजी और तेवर को सार्वजनिक रूप से अस्वीकार किया जाए उन्हें बढ़ावा न दिया जाए।
सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया जाए कि सूर्य नमस्कार एक हिंदू प्रार्थना है और इसे हर किसी पर जबरन लागू न किया जाए।
योग और नमाज़ दोनों का रूह को सुकून पहुँचाने और शरीर को चुस्त बनाने में बहुत अच्छा असर होता है। अत: दोनों को साथ-साथ व बराबर से प्रोत्साहित किया जाए।

संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता (Constitutional Secularism) को सार्वजनिक रूप से अपनाया जाए तथा इस की प्रतिष्ठा के ख़िलाफ अपमानजनक बयानबाजी बंद की जाए।
कुछ युवा ऐसे हैं जो आतंकी सम्बंधों के आरोपों के कारण जेल में सज़ा काटते हैं लेकिन अंतत: अदालत द्वारा निर्दोष घोषित कर दिये जाते हैं। उनके कष्टों व पीड़ा की वित्तीय क्षतिपूर्ति की जाए, उन्हें हरजाना अदा किया जाए और जिन व्यक्तियों ने ग़लत मंशा के साथ ऐसा षडयंत्र रचा, उनसे जुर्माना भरवाया जाए और उन्हें सज़ा दी जाए।
साम्प्रदायिक अशांति के कारण विस्थापित लोगों को उनके घर, चूल्हे, कृषि क्षेत्रों और व्यवसायों में पुन: स्थापित किया जाए।
“वक़्फ प्रॉपर्टीज़ (अनधिकृत क़ब्ज़ा धारकों का निष्कासन) बिल 2014” पर संसद की स्टैंडिंग कमिटी के तीस सदस्यों में से सिर्फ सात मुस्लिम थे। उसकी रिपोर्ट जल्दबाज़ी में बनायी गयी थी और ये असत्यापित दावों पर आधारित है। इसमें मंत्रालय की प्रबल आपत्तियों को अनदेखा-अनसुना किया गया था और उन आपत्तियों का कोई जवाब भी नहीं दिया गया था। अत: इस स्टैंडिंग कमिटी का पुनर्निर्माण किया जाए, जिसमें यह सुनिश्चित हो कि कम-से-कम तीन-चौथाई सदस्य मुस्लिम हों। बिल के विभिन्न खंडों का पुनर्परीक्षण और उन पर पुनर्विचार किया जाए। मूल बिल को पुनर्स्थापित करके इसे पारित किया जाए।

भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) के नियंत्रण वाली वक़्फ सम्पत्तियों की व्यवस्था के लिए भारत के पुरातत्त्व सर्वेक्षण और केद्रीय वक़्फ परिषद के संयुक्त तंत्र को पुनर्जीवित किया जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि इस तंत्र की त्रैमासिक बैठकें और अनुवर्ती कार्यवाही अनिवार्य हों।
जो वक़्फ सम्पत्तियाँ अनधिकृत सरकारी क़ब्ज़े में हैं, उन्हें खाली किया जाए और उन्हें वक़्फ बोर्ड को सौंप दिया जाए।
हज सब्सिडी और भारत व सऊदी अरब के बीच समुद्री तीर्थ यात्रा पर एक श्वेत पत्र जारी किया जाए। इससे कई मसलों का समाधान भी निकलेगा और सरकार व मुस्लिम समुदाय को सटीक मार्गदर्शन भी मिलेगा।
मदरसा स्नातकों को राष्ट्रीय शैक्षिक मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हुए ब्रिज कोर्स विकल्प प्रदान किया जाए जिसकी व्यवस्था न सिर्फ 3-4 मुस्लिम-प्रमुख विश्वविद्यालयों में हो बल्कि देश के अन्य विभिन्न कालेजों व विश्वविद्यालयों में भी हो।
पूर्व-स्नातक दाखिलों के लिए वैकल्पिक प्रवेश मानदंड (Alternate Admission Criteria for Undergraduate Admissions) की सचर कमिटी की सिफारिश को लागू किया जाए।
बैंकों में बिना ब्याज बैंकिंग विंडोज़ खोलने की अनुमति प्रदान करने की आरबीआई की सिफारिश पर सकारात्मक रूप से पुनर्विचार किया जाए।
संसद व विधानसभओं के वह निर्वाचन क्षेत्र और स्थानीय निकाय वार्ड अनारक्षित कर दिये जाएँ जहाँ अनुसूचित जाति के लोग कम प्रतिशत में है, और उन के स्थान पर, कानून के मुताबिक, जहाँ अनुसूचित जाति के लोग अधिकतम प्रतिशत में हैं, उन निर्वाचन क्षेत्रों और स्थानीय निकायों को आरक्षित किया जाए।

संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 से पैरा (3) को हटा दिया जाए और जस्टिस मिश्रा आयोग द्वारा सिफारिश के अनुसार ‘अनुसूचित जाति’ की परिभाषा को धर्म-निर्पेक्ष बना दिया जाए।
यह सुनिश्चित किया जाए कि यूपीएससी सिविल सर्विसेज़ साक्षात्कार के हर पैनल और अन्य सभी राष्ट्रीय व अन्य स्तर के सरकारी चयन पैनलों में कम-से-कम एक सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय का अवश्य हो।
कश्मीर, असम और अन्य राज्यों के मुस्लिम-प्रमुख जिलों में बेकार घूमते हुए बच्चों को शिक्षित बनाने व बेरोजगार युवाओं का रोजगार से लगाने के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाएँ। सरकारी व निजी साझेदारी को प्रोत्साहित किया जाए और उपर्युक्त क्षेत्रों में निजी शैक्षिक उपक्रमों को आर्थिक सहायता दी जाए। उनके लिए स्कूल व कॉलेज खोलने के लिए भूमि के न्यूनतम आवश्यक क्षेत्रफल में छूट दे दी जाए। वहाँ स्थानीय भाषाओं में सरकारी नौकरियों के विज्ञापन प्रकाशित किये जाएँ। रोजगार ब्यूरो से बात करके वहाँ विशेष भर्ती की पूर्व संध्या पर शिविर लगवाए जाएं।
1 मार्च 2018 के प्रधान मंत्री के भाषण के फलस्वरूप अगर उपर्लिखित और इसी प्रकार की अन्य कार्यवाही की जाए तो वह सहयोग की उम्मीद कर सकते हैं मुस्लिम समुदाय से जो निश्चित रूप से किसी विशिष्ट राजनीतिक समूह की धरोहर नहीं है।

By- Dr Syed Zafar Mahmood, Zakat Foundation of India
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