मोहन भागवत का गोलवलकर पर बयान काफी सोच विचार के बाद : देवधर

मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत का हिन्दू-मुस्लिमों पर बयान, कि हम एक देश की संतान हैं इसलिए संघ का अल्पसंख्यक शब्द को लेकर रिज़र्वेशन है।

संघ इसको नहीं मानता, सब अपने हैं, दूर गए तो जोड़ना है। संगठन ने अपने पूर्व प्रमुख एमएस गोलवलकर के भाषणों के संकलन के कुछ हिस्सों को नहीं माना जो संगठन के भीतर गहन चर्चा के बाद आया।

आरएसएस के शोधकर्ता और लेखक दिलीप देवधर ने बताया कि भागवत ने संघ के हालिया तीन दिवसीय कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने समावेशी विचारधारा को लेकर बड़ा नीतिगत ऐलान किया जो काफी सोच विचार कर दिया गया बयान है। उन्होंने कहा था कि संघ के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर की किताब बंच ऑफ थॉट्स शाश्वत नहीं है।

उन्होंने कहा कि एक बात यह है कि गुरुजी (गोलवलकर) के जो शाश्वत विचार हैं, उनका एक संकलन प्रसिद्ध हुआ है- ‘श्री गुरुजी विजन और मिशन,’ उसमें तात्कालिक सन्दर्भ वाली सारी बातें हमने हटाकर उनके जो सदा काल के लिए उपयुक्त विचार हैं उन्हें हमने लिया है।

संघ बंद संगठन नहीं है कि हेडगेवर जी ने कुछ वाक्य बोल दिए, हम उन्हीं को लेकर चलने वाले हैं। समय के साथ चीज़ें बदलती हैं।

देवधर, जो आरएसएस के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं और संगठन पर कई किताबें लिखी हैं, ने कहा कि इस मुद्दे पर सोमनाथ में जुलाई में आयोजित अखिल भारतीय बैठक में चर्चा हुई थी।

उन्होंने कहा कि सभा ने चर्चा की कि हिंदुत्व के दर्शन का यह अर्थ यह नहीं था कि भारतीय समाज मुसलमानों या अन्य समुदायों से रहित होगा और हिंदू उनके साथ सह-अस्तित्व में नहीं रह सके।