कांवड़ियों के लिए मुस्लिम युवकों की पहल : नहीं पूछते डूबते इंसान का मजहब

‘हम डूबते इंसान को बचाते वक्त उसका मजहब नहीं पूछते’, यह कहना है मोहम्मद सूखा का जो गोताखोरी कैंप का हिस्सा बने हैं। वह उन मुस्लिम युवकों में से एक हैं, जो सावन में कांवड़ यात्रा के दौरान गोताखोरी के लिए आगे आए हैं, जिससे किसी भी अनहोनी की स्थिति में श्रद्धालुओं को बचा सकें। ये लोग अपर गंगनहर के किनारे कैंपिंग कर रहे हैं, जहां लाखों कांवड़िए हर साल पूजा करने आते हैं।

सूखा की तरह 20 और मुस्लिम युवक ऐसे हैं, जिन्होंने शिवभक्तों की जान बचाने के लिए गोताखोरी कैंप में हिस्सा लिया है। कैंप में रहने वाले ये युवक हर पल किसी जरूरतमंद की मदद के लिए तैयार और तैनात रहते हैं।

हर साल तेज बहाव और गहरी नदी के चलते कई कांवड़ियों की डूबकर मौत की खबरें सामने आती रही हैं, यात्रा के समय बारिश के चलते यहां कीचड़ जमा हो जाता है। इस वक्त कैंप में 25 गोताखोर तैनात हैं।

एसपी (सिटी) रणविजय सिंह ने कहा, ‘मैं इन गोताखोरों को जानता हूं और पुलिस नहर में लोगों के डूबने की स्थिति में और जरूरत पड़ने पर इनसे मदद लेती रही है। मैंने उनसे पूछा कि क्या वे कैंप का हिस्सा बनना चाहेंगे और वे खुशी से इसके लिए राजी हो गए। हम उनकी सेवाओं के बदले उन्हें इनाम भी देंगे।’ गोताखोर सूखा इसे एक अच्छा काम मानते हैं।

सूखा कहते हैं, ‘हम सभी मुसलमान हैं लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता। मुझे लगता है कि जान बचाने की हमारी जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है और जब हम किसी की जान बचा रहे होते हैं, हम तकलीफ में डूबे इंसान से यह नहीं पूछते कि उसका मजहब क्या है।’

इनमें से ज्यादातर गोताखोर मेरठ के किनारे बसे जुलहेरा औक मेहमाती गांव के हैं। इनमें से कुछ युवक बीते साल भी गोताखोरी कर लोगों की जान बचा चुके हैं।
(साभार : नवभारत टाइम्स)