पाकिस्तान की जीत के बाद मुसलमानों के किरदार पर ऊँगली उठाने वाले इसे ज़रूर पढ़ें!

आज एक इंट्रेस्टिंग वाक़या हुआ। हमारे इधर कुछ स्टूडेंट लड़कियां रूम लेकर रहती हैं। मॉर्निंग वॉक के बाद वे थोड़ा सुस्ताने रुकीं। मैं बेटी की बस के इंतज़ार में खड़ी थीं।वे मुझसे मुख़ातिब हुईं।

“अप्पी आपने देखा कल क्या हरकत हुई?”

“क्या हो गया भाई और कहाँ?”

“कल मस्जिद में मिठाई बंटी और बाहर पटाखे छूटे।”

“एक बात बताओ, तुम लोग कबसे तरावीह पढ़ रही हो पूरी?”

“वो अप्पी,मतलब जब जब टाइम मिलता था। मतलब आ जाते थे अगर जल्दी कोचिंग से, जमात से पहली बार पढ़ी है हमारे इधर औरतों की जमात से होती नहीं थी न मतलब….”

“ठीक ठीक। अब अगले साल पढ़ोगी न इंशाल्लाह तब देखना तब भी 23वें रोज़े को मिठाई बटेंगी और पटाखे छूटेंगे। पिछले साल भी बंटी थी। हर साल बंटती है क्योंकि इस मस्जिद में 23वें रोज़े को कुरान पाक मुकम्मल होता है। और भी मस्जिदों में बंटी होगी। पटाखे भी छूटे होंगे। कुछ मस्जिदों में 21 रोज़े को हो जाता है। कुछ में 7 को। कुछ में 3 को भी। और कई मस्जिदों में 27 रोज़े को होगा।
खैर, अब जब ये बात कही ही है तो समझ लो। अपने आंख कान खुले रखो। बिना तस्दीक कोई बात आगे मत बढ़ाओ। बिना पड़ताल किये हर बात को सच मत मान लो। और जिस फॉरवर्ड करो मार्केट में नया है दौर में हम जी रहे हैं, बहुत खतरनाक होता जा रहा है। अफवाहों पर लोग मार डाले जा रहे हैं।
अब तुम देखना। कल ऐसे स्टेटस की भरमार मिलेगी- मैं जा रहा था कि कुछ मियाँ भाइयों की आवाज़ कान में पड़ी। वे खुश हो रहे थे कि….
आप उनसे पूछो, बताओ कौन लोग थे तो कह देंगे रैंडम राहगीर थे हमें क्या मालूम।
कुछ लोग पटाखे फोड़ते का फोटो वीडियो भी डाल देंगे। हालांकि क्या वक्त तारीख और मौका था इनसे उन्हें मतलब नहीं होगा।
कई लोग तो पहले से वीडियो बनाकर बैठे होंगे। हारे तो ये चलाएंगे जीते तो ये। फास्ट ज़माना है भाई। ऐसा भी होता है।
अब तुम मुझे ये बताओ इतनी लंबी चौड़ी कॉलोनी में तुमने किसके घर पटाखे चलते या मिठाई बंटते देखी? एक का नाम बताओ। पूछते हैं उससे भई क्या मामला हो गया। देखा किसी को?”

“नहीं।”

“ऐसा बिल्कुल होगा। चले होंगे कुछ जगह। जहालत पर किसी भी कौम का कॉपीराइट नहीं है। जो लोग चुनचुनकर मुस्लिम बस्तियों में बेहूदी नारेबाज़ी करते हैं, पटाखे फोड़ते हैं गालियां देते हैं टुन्न होकर गाड़ियां लहराते हुए निकलते हैं उनके हीे जाहिल भाई बन्धु इधर भी कम न हैं। कइयों को रियेक्शन देने से मतलब। उसका क्या असर होगा सोच पाते तो ऊपर उठ जाते दिमागी तौर पर।
एक बात याद रखो। तुम सफाइयां देने के लिये पैदा नहीं हुए हो। जो गलत लगे खुल कर प्रोटेस्ट करो। पर किसी को सफाइयां मत दो। जिनको नहीं मानना है उनके सामने आंसुओं के टब भर दोगी तो कहेंगे ये घड़ियाली आँसूं हैं ग्लिसरीन लगाकर रो रही हैं। अंदर से खुश होंगी।
इसलिये अपनी वतनपरस्ती अपने किरदार से दिखाओ अपने स्टेटस से नहीं।
उनको तो भाषण देकर समझा दिया पर यही हाल इधर भी दिखा तो लिखना मुनासिब लगा।

(नोट- ये स्पष्टीकरण नहीं है। उन बेचारे अक्ल के मारे मुस्लिमों के ज्ञानवर्धनार्थ है जो देशभक्ति ‘शो ऑफ’ करने के चक्कर में पोस्ट कर रहे हैं कि कल उनके आसपास की मस्जिदों में पटाखे चले मिठाई बंटी। और दूसरों को भी बदगुमान कर रहे हैं। अगर आपकी कॉलोनी गली मोहल्लों में ये होता है तो आप समझाते हैं किसी को? झगड़ा विवाद मत कीजिये पर क्या आप कभी सवाल भी पूछते हैं? नहीं तो फिर पता नहीं किस मुँह से पोस्ट कर देते हैं आप जानें। टैग करने की खुजली बड़ी मुश्किल से कंट्रोल की है। समझ जाना…)

  • नाज़िया नईम