10 साल नौकरी करने के बाद भी मुस्लिम पुलिस कांस्टेबल से कहा- भारतीय होने का सबूत दो

असम पुलिस में मुस्लिम पुलिस कांस्टेबल अबू ताहिर को नागरिकता साबित करने को कहा गया है। अबू ताहिर अहमद असम के धुबरी जिले में दक्षिण साल्मार पुलिस स्टेशन में कांस्टेबल के रूप में सेवारत हैं। सेवा के 10 साल बाद अहमद को विदेशियों के लिए ट्रिब्यूनल (एफटी) से मार्च के दौरान नोटिस जारी किया गया कि वह अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अदालत में पेश हों।

 

 

 

गुवाहाटी में मानवाधिकार के वकील अमन वदूद और टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर अब्दुल गनी की एक रिपोर्ट उनके बचाव में आई है। टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए अहमद ने कहा, मैं चौंक गया और पता नहीं था कि नोटिस मिलने पर मरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए। अहमद को 8 अगस्त को अदालत में नागरिकता साबित करने के लिए सभी प्रासंगिक दस्तावेजों के साथ उपस्थित होना है।

 

 

 

उन्होंने कहा अदालत ने जो कहा है, मैं इसका पालन करूँगा। मैं एक आम आदमी हूं, मुझे उम्मीद है कि जल्द ही मामला खत्म हो जायेगा। यह अजीब है कि पुलिसकर्मी के तौर पर पिछले दस साल से सेवा कर रहा हूं इसके बावजूद उसकी नागरिकता पूछी गई है। पुलिस में शामिल होने से पहले विभिन्न कागजात जमा करना पड़ते हैं, जो आसानी से उनकी नागरिकता साबित कर सकते हैं।

 

 

 

दरअसल यह मामला ‘संदिग्ध मतदाता’ का है, जो एक ऐसा मामला है जिसका उत्तर-पूर्व राज्यों में बहुत से लोग सामना कर रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट द्वारा मामले पर संज्ञान लेते हुए असम के पुलिस महानिदेशक ने इस मामले को दक्षिण सल्मारा पुलिस स्टेशन के एसपी को बताया।

 

 

 

इसके बाद एसपी अमृत भूयान ने कांस्टेबल अबू ताहिर अहमद को फोन किया और इस मामले में उन्हें हरसंभव मदद की बात कही। मामले पर टिप्पणी करते हुए अधिवक्ता अमन वदूद ने बताया कि यह मामला अभी तक हल नहीं हुआ है लेकिन यह सुनिश्चित है कि पुलिस विभाग ने उसे समर्थन दिया है। इस मामले में अंतिम निर्णय विदेशियों के लिए ट्रिब्यूनल के साथ होता है।

 

 

 

अहमद का मामला एक और परिप्रेक्ष्य में अजीब है कि अहमद को असम पुलिस में तैनात किया गया है लेकिन यह सूचना असम सीमा पुलिस द्वारा की जाती है। यहां तक ​​कि पुलिस विभाग ने उन्हें सभी तरह से मदद करने के लिए पेशकश की है। अमान ने कहा कि अहमद के लिए यह बहुत संतोषजनक बात है कि उनका अपना विभाग उनकी मदद कर रहा है।

 

 

 

 

संदिग्ध मतदाताओं के मामले में अमान कहा कि असम में बहुत से लोग ऐसे मामलों का सामना कर रहे हैं। हालांकि, यह मामला नया नहीं हो सकता है लेकिन असम सीमा पुलिस के बीच समन्वय की कमी है, जो इस तरह के नोटिस थमने के लिए कुख्यात है। टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्टर अब्दुल गनी ने कहा कि यह मामला नया नहीं है।

 

 

 

2014 में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जहां एक स्कूल शिक्षक जो चुनाव ड्यूटी में था, को संदेहास्पद मतदाता होने के संदेह पर मतदान करने से रोक दिया गया था। गनी शाहजहां काजी का वह मामला था जिन्होंने आठ चुनावों में मतदान अधिकारी के तौर पर काम किया लेकिन उन्हें मतदान करने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि वह एक डी-मतदाता हैं।