भोपाल एनकाउंटर में मारे गए सिमी सदस्यों नहीं मिल रही कानूनी मदद , जेल में वकीलों को रोका गया

भोपाल एनकाउंटर में मारे गए सिमी सदस्यों के वकील परवेज़ आलम ने जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट के आदेश के बावजूद भोपाल सेंट्रल जेल में वकीलों को कैदियों से नहीं मिलने दिया जाता। कैदी सिर्फ कोर्ट रूम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए ही अपने वकील से बातचीत कर सकते हैं।

आलम ने बताया कि वह अपने क्लाइंट्स (मारे गए सिमी सदस्यों) से साढे तीन साल पहले उस वक्त मिले थे जब वे कोर्ट में सुनवाई के लिए आए थे। उन्होंने बताया कि एडवोकेट ज़ीनत अनवर, जिनके पास सबसे ज़्यादा 15 केस हैं, वह भी अपने क्लाइंट्स से कभी नहीं मिलीं। एडवोकेट साजिद अली, जो कोर्ट में 5 आरोपियों के केस देख रहे हैं, उन्हें भी यही शिकायत है।

जब वे अपने क्लाइंट्स से मिलने की कोशिश करते हैं तो जेल प्रशासन चाहता है कि वे खुद की पहचान विचाराधीन कैदियों के रिश्तेदार के रूप में कराएं। तभी उन्हें मिलने दिया जाएगा।

आलम ने कहा, “जेल के अधिकारियों ने क्लाइंट्स से मिलने के लिए मुझे एक फॉर्म भरने को कहा, जिसमें ‘कैदियों के रिशतेदार’ का विकल्प दिया हुआ था, मैंने फॉर्म में ‘रिश्तेदार’ का विकल्प काटकर इसे ‘क्लाइंट’ के साथ बदलना चाहा, लेकिन उन्होंने मुझे ऐसा नहीं करने दिया और मेरे साथ दुर्व्यवहार किया”।

जिसके बाद आलम ने गांधीनगर पुलिस थाने में जेल प्रशासन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और भोपाल में कोर्ट के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) से संपर्क कर बताया कि वह अपने क्लाइंट्स से नहीं मिल सकते।

पिछले साल नवंबर में सीजेएम ने जेल प्रशासन को आदेश दिया कि 20 मिनट के लिए वकीलों को अपने क्लाइंट्स से मिलने दिया जाए। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने सत्र न्यायालय में एक संशोधन याचिका के ज़रिए आदेश को चुनौती देते हुए यह दलील दी कि यह जेल मैनुअल का उल्लंघन है।

लेकिन अतिरिक्त जिला न्यायाधीश रामकुमार चौबे ने सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जेल मैनुअल के तहत अधिवक्ताओं को अपने ग्राहकों से मिलने से रोका नहीं जा सकता। जिसके बाद अदालत ने 20 मिनट की समय सीमा भी हटा दी।

आलम ने कहा कि लेकिन यह सब व्यर्थ हो गया क्योंकि जेल अधिकारियों ने हमें क्लाइंट्स से मिलने में नहीं दिया। जब मैं अपने क्लाइंट्स से मिलने जेल गया, तो जेलर ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया।

आलम ने कहा कि उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि वे स्वयं अवमानना की कार्यवाही शुरू करे, लेकिन मामला संज्ञान में आने के बावजूद अदालतों ने ऐसा नहीं किया।