‘गोरखपुर नरसंहार पर पर्दा डालने के लिए घटिया राजनीति का हिस्सा है नमाज़-जन्माष्टमी पर योगी का बयान’

कल बड़ा गजब का बयान दिया योगी जी आपने!

अभी तो गोरखपुर में बच्चों की लगातार मौत होने की खबरे आनी भी कम नही हुई है और आप फिर से अपने हिन्दू मुस्लिम एजेंडा पर तन कर खड़े हो गए।

आपने कल कहा कि अगर मैं सड़क पर ईद के दिन नमाज पढ़ने पर रोक नहीं लगा सकता, तो थानों में जन्माष्टमी का उत्सव रोकने का मुझे कोई अधिकार नहीं है।

आज यह बयान देने का मतलब क्या है जबकि जन्माष्टमी दो दिन पहले मनाई जा चुकी हैं ?…

आपने आगे कांवड़ यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि कांवड़ यात्रा में बाजे नहीं बजेंगे, डमरू नहीं बजेगा, माइक नहीं बजेगा, तो कांवड़ यात्रा कैसे होगी? यह कांवड़ यात्रा है, कोई शव यात्रा नहीं, जो बाजे नहीं बजेंगे।

यह बात आप महीने भर पहले करते योगी जी तो, बात कुछ समझ आती लेकिन अब यह यात्रा उतार पर है अब आप यह बात उभार कर कौन सी बात को दबाने की कोशिश कर रहे हो सब सीधे सीधे नजर आ रहा है।

यदि आपको बात करनी ही थी तो उत्तर प्रदेश की बदहाल होती स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने की बात करनी चाहिए थी।

पिछले महीने आपके स्वास्थ्य मंत्री सिदार्थनाथ सिंह कह रहे थे कि प्रदेश में 7 हज़ार डॉक्टरों की कमी हैं, वे बता रहे थे कि , प्रदेश में डब्ल्यूएचओ के मानदंडों के अनुरूप प्रति हजार लोगों पर एक भी डॉक्टर नहीं है। प्रति हजार लोगों पर बमुश्किल 0.63 सरकारी और निजी डॉक्टर हैं।

स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की ओर कराए जाने वाले स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार यूपी में 0 से 5 साल तक की आयु वर्ग के 46.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं।

उत्तर प्रदेश में पांच साल तक के 46 फीसदी बच्चे ठिगनेपन का शिकार हैं। कुपोषण का एक दूसरा प्रकार उम्र के हिसाब से वजन न बढ़ना है, इसमें भी उत्तर प्रदेश के 39.5 प्रतिशत बच्चे सामने आए हैं, जबकि भारत में अभी 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं। यानी उत्तर प्रदेश में स्थिति राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा है।

यह पिछले महीने सामने आये आंकड़े हैं योगी जी, तब आप की सरकार राज्य के धार्मिक स्थलों पर अगली नवरात्रि से गाय के दूध से बनी मिठाइयों का प्रसाद उपलब्ध कराने पर विचार कर रही थी आपके प्रदेश में गरीब जनता को इलाज की मूलभूत सुविधाए उपलब्ध नही है और आप नवरात्रि में दूध की मिठाइयां बॉटने की बात कर रहे हैं !

यह ईद जन्माष्टमी छोड़िए पहले यह देखिए कि एक साल तक के बच्चों की मौतों के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में टॉप पर है।
ग्रामीण स्वास्थ्य सांखियिकी 2016 के अनुसार, आपके उत्तर प्रदेश के सीएचसी में 84 फीसदी विशेषज्ञों की कमी है। यदि पीएचसी और सीएचसी, दोनों को एक साथ लिया जाए तो उनकी जरुरतों की तुलना में मात्र पचास फीसदी स्टाफ हैं ये ऐसे कारण हैं जिनके चलते यहाँ शिशु म्रत्यु दर भी अपेक्षाकृत अन्य राज्यों से अधिक है।

ओर जो आपके स्वास्थ्य विभाग का स्टाफ है , डॉक्टर है नर्स है उन्हें भी आप ठीक से वेतन नही दे पा रहे हो , लखनऊ के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल में आप मरीजो को दवा नही दे पा रहे हो।

यूपी में कई अस्पतालों में तो कर्मचारियों और नर्सिंग स्टाफ को जून का वेतन नहीं मिला है। इससे नाराज मेडिकल कॉलेज कर्मचारी एसोसिएशन, आंदोलन की चेतावनी दे रहा है।

लखनऊ के केजीएमयू समेत दूसरे अस्पतालों में मरीजों का दबाव बढ़ने के बावजूद बजट घट गया है आपके अधिकारियों का कहना है कि कंटिन्जेंसी फंड पिछले साल करीब 99 करोड़ रुपये मिला था। इस साल 69 करोड़ रुपये मिले हैं। बलरामपुर अस्पताल का भी यही हाल है। 2015-16 में दवाओं के मद में 19 करोड़ रुपये मिले थे। जो 2016-17 में घट कर 17 करोड़ रुपये रह गया है।

ओर अंत मे आपका ध्यान मै ,आज से लगभग 25 दिन पहले वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट की आकृष्ट करना चाहूंगा जिसमे साफ साफ कहा गया था कि ‘गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस मरीजों के इलाज से जुड़े 378 चिकित्सकों, स्टाफ नर्सों, वार्ड व्वाय व अन्य कर्मचारियों को चार माह से वेतन और पिछले 12 महीने का एरियर नहीं मिला है।”

  • गिरीश मालवीय