नजरिया : भारत-पाक रिश्तों में सुधार के लिए इमरान खान की पहल

आखिर पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक ऐसी पहलकदमी की, जिसे भारत-पाक रिश्तों में सुधार के लिए उनकी ओर से उठाया गया पहला कदम कहा जा सकता है।

उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर दोनों देशों के बीच बातचीत की प्रक्रिया फिर से शुरू करने की जरूरत बताई है। हालांकि यह पत्र प्रधानमंत्री मोदी के उस पत्र के जवाब के तौर पर आया है, जिसमें उन्होंने इमरान के पीएम बनने पर उन्हें बधाई दी थी।

बधाई पत्र का जवाब देने की औपचारिकता निभाने में भी एक महीने से ज्यादा का वक्त लग जाना खुद में एक अटपटी बात है, लेकिन भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में अभी जितनी जटिलता आ चुकी है, उसे ध्यान में रखते हुए यह भी जरूरी है कि एक-एक कदम पूरी समझदारी से और हर पहलू पर सोच-विचार करके उठाया जाए।

इमरान खान ने वक्त भले ही ज्यादा लिया हो, लेकिन जो प्रस्ताव उन्होंने किया है, वह काफी ठोस है। इसमें न केवल दोनों देशों के बीच बातचीत दोबारा शुरू करने की बात कही गई है बल्कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की जल्दी मुलाकात का सुझाव भी दिया गया है, जो पत्र के मुताबिक अगले सप्ताह होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान भी संभव हो सकती है।

पत्र में यह संकेत भी दिया गया है कि यह मुलाकात सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की आगामी अनौपचारिक बैठक से पहले हो जाए तो सार्क बैठक का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सकता है। साफ है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इस पत्र के जरिए दोनों देशों के बीच न केवल बातचीत का टूटा हुआ धागा जोड़ने की कोशिश की है, बल्कि दोनों के आपसी संबंधों में सुधार का एक पूरा रोडमैप भी पेश कर दिया है।

बेशक, भारत-पाक रिश्तों की कहानी बातों, वादों, दावों, छल-प्रपंच और विश्वासघात से इस कदर भरी हुई है कि मजबूत इरादे के बिना बोले या लिखे गए शब्द इसे शायद ही कोई महत्वपूर्ण मोड़ दे सकें। लेकिन जैसी कहावत है, हम दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं।

इसलिए अविश्वास की चाहे जितनी भी वजहें मौजूद हों, रिश्तों में एक नई शुरुआत करने का मौका हमें पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री को भी देना चाहिए। इस पृष्ठभूमि में देखें तो भारत सरकार की शुरुआती प्रतिक्रिया काफी सधी हुई रही है। भारत ने साफ किया है कि औपचारिक बातचीत की तो अभी कोई संभावना नहीं है, लेकिन दोनों विदेश मंत्रियों की मुलाकात संभव हो सकती है।

अगर यह मुलाकात होती है और रिश्ते सुधारने की दिशा में बात कुछ आगे बढ़ती है तो पाकिस्तान सरकार को बेहतर ढंग से समझाया जा सकता है कि सीमा पार से आतंकी गतिविधियों को प्रोत्साहन और बॉर्डर पर भारतीय सैनिकों की हत्या जैसी घटनाएं इन रिश्तों की जड़ों में हमेशा के लिए मट्ठा डाल देती हैं।

(साभार : नवभारत टाइम्स)