पाॅपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की अपील : कर्नाटक की जनता हिंदुत्व की राजनीति को मात दे

पाॅपुलर फ्रंट की केंद्रीय सचिवालय की बैठक ने कर्नाटक की जनता से विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व राजनीति को शिकस्त देने और भाजपा को धूल चटाने के लिए सेक्युलर उम्मीदवारों और लोक-राजनीति की नुमाइंदगी करने वालों को वोट देने की अपील की है।

‘अच्छे दिन’ का वादा करके मोदी सरकार चार साल पहले सत्ता में तो आ गई लेकिन उसने हर तरीके से लोगों की बड़ी आबादी का जीना मुश्किल कर दिया है। साम्पदायिक ध्रुवीकरण और दलितों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत भरी आपराधिक घटनाओं की दर आसमान छू रही है।

उनकी नफरत की राजनीति इस हद तक पहुँच चुकी है कि वे अब रेप की राजनीति करने लगे हैं, जिसे हम उन्नाव और कठुआ जैसी हालिया घटनाओं से समझ सकते हैं। लोगों की जानें सुरक्षित नहीं हैं। विरोध की आवाज़ों को बड़ी बेरहमी से कुचला जा रहा है और संघ परिवार के खिलाफ बात करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों की गोली मारकर हत्या की जा रही है।

इसलिए कर्नाटक की जनता राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में ऐसी ताकतों को विजयी बनाकर यहाँ भी वही हालात पैदा करने का उन्हें हरगिज़ मौका न दें। केंद्रीय सचिवालय ने राज्य की जनता से अपील की है कि वह इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए कर्नाटक में मौजूद साम्प्रदायिक ताकतों और केंद्र में बैठी जन-विरोधी सरकार को यह खुला संदेश दे कि भारत देश लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के साथ खड़ा है।

बैठक ने यह भी कहा कि वक़्त की ज़रूरत है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों और पीड़ित वर्गों की आवाज़ भी विधानसभा में सुनी जाए, इसलिए जनता राज्य के तीन चुनाव क्षेत्रों में भाग ले रहे एसडीपीआई के उम्मीदवारों को विधानसभा चुनाव में विजयी बनाकर उन्हें जनता की नुमाइंदगी का अवसर प्रदान करे।

बैठक ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में माओवादी आतंकवादियों के एंकाउंटर के नाम पर लोगों के क़त्ले आम को लेकर चिंता जताई। यह बड़ी चैंका देने वाली बात है कि तथाकथित माओवादियों की सड़ी गली लाशें महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर इंद्रोली नदी में तैरती पाई गईं।

अब तक कथित रूप से एक महिला सहित लगभग चालीस लाशें वहाँ पाई गई हैं। पुलिस यह सफाई दे रही है कि उन्हें ‘एंकाउंटर’ में मार गिराया गया है लेकिन आतंकवाद के मुकाबले के नाम पर एंकाउंटर के लंबे इतिहास को देखते हुए पुलिस की सफाई को हज़म कर पाना मुश्किल हो रहा है।

एंकाउंटर में किसी भी सिपाही के ज़ख़्मी न होने की ख़बर भी यह बताती है कि संभवतः एकतरफा तौर पर क़त्ले आम को अंजाम दिया गया है और इस तरह मानवाधिकार का उल्लंघन किया गया है। किसी भी प्रगतिशील लोकतांत्रिक समाज के लिए इस प्रकार के कत्ले आम और सेना के अत्याचार को बिना कोई सवाल उठाए मान लेना बड़ी ही शर्म की बात है। बैठक ने ज़िम्मेदार पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ तत्काल कार्यवाही और इन घटनाओं की अदालती जाँच की मांग की।

पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया की केंद्रीय सचिवालय की बैठक ने एक प्रस्ताव में उत्तराखण्ड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के.एम. जोसफ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने में केंद्रीय सरकार की हिचकिचाहट को राजनीतिक फैसला करार दिया है। बैठक ने कहा कि इस सिलसिले में बीजेपी सरकार द्वारा स्थानीय और एससी/एसटी की नुमाइंदगी जैसे पेश किये गए कारणों का कोई महत्व नहीं है।

के.एम. जोसफ और बीजेपी के बीच रिश्तों की खटास का कारण जोसफ के वह फैसले हैं जो दाएं बाज़ू की राजनीति के खिलाफ दिये गए थे, विशेषकर 2016 में उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन खत्म करने के फैसले ने इस खटास को और बढ़ाने का काम किया। न्यायपालिका में राजनैतिक हस्तक्षेप के इस खुले प्रदर्शन से सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर आँच आएगी और न्यायपालिका पर से जनता का भरोसा उठ जाएगा। बैठक ने सुप्रीम कोर्ट के काॅलीजियम से जस्टिस के.एम. जोसफ के पक्ष में अपनी सिफारिश के साथ खड़े होने की अपील की।

बैठक ने ट्रायल कोर्ट के एक फैसले का स्वागत किया है जिसमें झारखण्ड के बोकारो जिले में शमसुद्दीन अंसारी लिंचिंग केस के 10 आरोपियों को उम्रकै़द की सज़ा सुनाई गई है। शमसुद्दीन अंसारी को बच्चा चोरी के झूटे आरोप में पीट पीट कर मार दिया गया था, जो कि राज्य में सिलसिलेवार हुई लिंचिंग की घटनाओं में से एक थी।

इस फैसले ने नस्लवादी व कट्टरवादी तत्वों को खुली चेतावनी दी है, जो बेगुनाह मुस्लिम मजदूरों और पशु व्यापारियों के खिलाफ देश भर में भीड़तंत्र की हिंसा के कल्चर को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह के फैसले पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण साबित होंगे जिनसे उन्हें इंसाफ के लिए लड़ने का हौसला मिलेगा। बैठक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद डाॅ॰ कफील ख़ान को गोरखपुर जेल में 8 महीने की लम्बी क़ैद से मिली रिहाई पर इत्मीनान का इज़हार किया है।

योगी सरकार ने डाॅ॰ कफील खान के साथ जो बर्ताव किया वह सरासर अमानवीय और अन्यायपूर्ण है। डाॅ॰ कफील ने गरीब परिवारों के नवजात शिशुओं का जीवन बचाने के लिए न सिर्फ हर संभव प्रयास किया, बल्कि एक मिसाली रोल अदा किया। लेकिन जिस प्रकार भ्रष्ट सरकार की प्रशासनिक नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए डाॅ॰ कफील को बली का बकरा बनाया गया।

अब जबकि सबूतों की कमी की वजह से इलाहाबाद हाई कोर्ट ने डाॅ॰ कफील खान को ज़मानत दे दी है, तो योगी सरकार को चाहिए कि वह उनके खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस ले और जेल में बिताए गए समय और उसकी वजह से उनकी और उनके परिवार की हुई बदनामी पर उनसे माफी मांगे और उन्हें मुआवज़ा दे। चेयरमैन ई. अबूबकर ने बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में एम. मुहम्मद अली जिन्ना, ई.एम. अब्दुर्रहमान, के.एम. शरीफ, ओ.एम.ए. सलाम और अब्दुल वाहिद सेठ ने भाग लिया।