हैदराबाद। भगवा पार्टी के लाभ के लिए जेडीएस, एमआईएम और अन्य पार्टियों के बीच धर्मनिरपेक्ष वोटों को विभाजित करने के लिए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने गुप्त समझौते का आरोप लगाया है। बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक में धर्मनिरपेक्ष वोट को विभाजित करने के लिए जेडीएस, एमआईएम, आप, बीएसपी, एमईपी और सैंकड़ों स्वतंत्र उम्मीदवारों पर भारी निवेश किया है।
जेडी (एस) और उसके समर्थकों पर भगवा पार्टी की बी-टीम होने का आरोप लगा है। 2004 के चुनावों के बाद जब कांग्रेस, जेडी (एस) गठबंधन सरकार गिर गई थी तब बीजेपी और जेडी (एस) नई सरकार बनाने के समझौते पर पहुंचे। इस समझौते के अनुसार मुख्यमंत्री पद पर कुमारस्वामी और बीएस येदियुरप्पा के बीच समान अवधि के लिए साझा किया जाना था।
मुख्यमंत्री पद का पहला मौका कुमारस्वामी को दिया गया, जबकि येदियुरप्पा ने उनके डिप्टी के रूप में कार्य किया। समझौते के हिस्से के रूप में, कुमारस्वामी को 3 अक्टूबर 2007 को मुख्यमंत्री पद छोड़ना था लेकिन जब समय आया तो उन्होंने इनकार कर दिया। इसने येदियुरप्पा और उनकी पार्टी के सभी मंत्रियों को इस्तीफा दे दिया और 5 अक्टूबर को भाजपा ने औपचारिक रूप से कुमारस्वामी सरकार को समर्थन वापस ले लिया।
कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में जेएसडी ने असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में ाले अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से गठबंधन किया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के जनता दल (सेक्युलर) को समर्थन घोषित किया जो मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ पूर्व चुनाव गठबंधन में था। कर्नाटक में बड़ी मुस्लिम आबादी है और सत्तारूढ़ कांग्रेस को गैर-बीजेपी वोटों को मजबूत करने का प्रयास किया गया था।
ओवैसी के समर्थन में जेडी (एस) ने इस क्षेत्र में मुस्लिम वोटों का एक बड़ा विभाजन सुनिश्चित किया। सूत्रों के मुताबिक, पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने जेडी (एस) पर पकड़ खो दी है। उनके बेटे, कुमारस्वामी एकतरफा निर्णय ले रहे हैं। जेडी (एस) ने मुस्लिम उम्मीदवारों को उन इलाकों में टिकट दिया है जहां कांग्रेस उम्मीदवारों का मुकाबला करने के लिए बड़ी मुस्लिम आबादी है जो सीधे भाजपा को फायदा पहुंचाती है। राज्य में 12 मई को 70 प्रतिशत रिकार्ड मतदान हुआ। गिनती 15 मई को होगी।