इन दिनों खौफ का माहौल आतंकवादियों ने नहीं, सिस्टम ने बनाया हैं: प्रशांत तिवारी

देश लगातार विकास कर रहा हैं… FDI, GST, Demonetization.. जैसी कई ऐसी नीतियाँ आई हैं जिनका सरोकार सीधे जनता से था… लाइन में खड़े होकर विकास का इंतज़ार किया गया… और लोगों की माने तो विकास हो रहा हैं… मैं किसी विशेषज्ञ की तरह अपनी राय या आकडा देकर ये साबित करने की कोशिश नहीं करूँगा की देश ने तरक्की की हैं की नहीं…

मैं सिर्फ कुछ बुनियादी सवालों को आपके सामने रखना चाहूँगा… जो शायद पत्रकारिता का पहला धर्म हैं…. उन सवालों पर अगर जवाब मिले तो बहुत अच्छा हैं अगर न मिले तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता मैं और बेहतर तरीके से अपने सवालों को रखने की कोशिश करता रहूँगा कभी न कभी तो जवाब देना ही पड़ेगा. आज हिंदुस्तान को आज़ाद हुए सत्तर साल पूरे हो गए हैं … देश की सबसे बड़ी समस्या साम्प्रदायिकता , जातिवाद, मंदिर , मस्जिद जैसे मुद्दे सामने लाये जा रहे हैं.. किसने वन्दे मातरम् गाया , किसने राष्ट्रगान का सम्मान नहीं किया.. कौन देशभक्त हैं और कौन देशद्रोही.

इन मुद्दों पर धरना देने के लिए हज़ारों लोग तैयार खड़े रहते हैं क्योंकि इन मुद्दों से देश की सत्ता तय होतीं हैं. और बुनियादी मुद्दे लाशों की तरह दफ़न कर दिए जाते हैं पर हमारे देश की राजनीति दफ़न किये बुनियादी मुद्दों की बरसी मनाना कभी नहीं भूलती क्यूंकि बीच बीच में भी चुनाव होते रहते हैं ना.

बात करने को तो बहुत से मुद्दे हैं पर मैं देश के हालात की एक छोटी सी झलक दिखने कि कोशिश करूँगा जो कि हिंदुस्तान का सबसे बुनियादी मुद्दा हैं चिकित्सा व्यवस्था , शिक्षा ,और भी बहुत हैं.. जिसे पूरा करने में आज तक की सभी सरकारे विफल होती आई हैं.. और इस विफलता का ज़िम्मेदार कौन हैं ये आप खुद ही तय कर ले तो बेहतर हैं.

अभी अगस्त के महीने में अगर नेताओं की मानी जाए तो इस मौत के महीने में करीब 200 से भी ज्यादा बच्चों की मौत गोरखपुर के BRD अस्पताल में हुई… मैं ये नहीं पूछूँगा की कौन ज़िम्मेदार है?.. इन मासूम बच्चों का जिन्होंने पैदा होने के बाद अभी ठीक से आँखे तक नहीं खोली थी उन्हें बड़ी बेरहमी से सुला दिया गया मौत की नींद में.. कितना दर्द सहा होगा उन मासूमों ने ये तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते.. रो कर बताना भी नहीं सीख पाए थे की हमने उन्हें पहले ही चुप करा दिया.. उस माँ-बाप पर क्या गुज़री होगी जिन्होंने ख्वाब संजोया था पालने में अपने लाल को पालने का पर ताबूत में बंद करके दफन करना पडा..

कौन ज़िम्मेदार हैं? मैं फिर भी नहीं पूछूंगा …बस ज़िक्र कर रहा हूँ, क्यूंकि इस घटना के बाद आज भी बच्चों की लापरवाही से मौते हो रही हैं…और हर मौत के ज़िम्मेदार आप और हम…हम सभी लोग हैं.. जो किसी भी घटना के बाद पांच दिन तक सोशल मीडिया पर दुःख प्रकट करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर लेते हैं.. और भूल जाते हैं.. इंतज़ार करते हैं और मासूम बच्चों की मौत का.

अरे जो देश खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताता हैं और कहता हैं की आतंकवादी हमले का ज़िम्मेदार ये हैं वो हैं.. हमें सर्जिकल स्ट्राइक करने की ज़रूरत हैं ताकि आतंकवाद को पूरी तरह ख़त्म किया जा सके.. मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूँ जिस देश के मासूम बच्चे अस्पताल में बिना इलाज, लापरवाही से दम तोड़ देते हैं…. क्या इससे भी बड़ी कोई आतंकी घटना घट सकती हैं क्या?.

लोग जीना तो चाहते हैं पर इलाज कराने अस्पाताल नहीं जाना चाहते ये होता हैं आतंक और इसे आतंकवादियों ने नही हमारी सरकार और प्रशासन के निकम्मेपन ने दिया हैं .सर हिंदुस्तान की स्वास्थ्य समस्या एक आतंकवाद की समस्या से बढ़कर हैं…आतंकवादी को समझाने और रोकने के लिए रोज़ हमारे जवान अपनी ज़िन्दगी इस देश के नाम कुर्बान करके मुस्कुराते हुए चले जाते हैं… ताकि उनका हिंदुस्तान आतंकवादियों के आतंक से सुरक्षित रहे पर देश के अन्दर जिन मासूमों को हम बचा सकते थे या हैं उनका भी क़त्ल हो रहा हैं… घटनाओं से हम नहीं सीख रहे हैं.

पर हाँ हर घटनाओं को राजनितिक मुद्दा बनाना ज़रूर सीख गए हैं.. आज देश की चिकित्सा व्यवस्था इतनी लाचार हो चुकी हैं की खौफ के लिए हॉस्पिटल्स का नाम ही काफी हैं.. सर अगर आप सर्जिकल स्ट्राइक करना चाहते हैं तो देश की चिकित्सा व्यस्था को सुधरने में करिये दवाईया और इलाज को बेहतर और सस्ता करने की ज़रूरत हैं…. हमें गोरखपुर हादसे से सिखने की ज़रूरत हैं हम कातिल की मांग नहीं करते हम बस ये चाहते हैं की फिर कोई मासूम बच्चा इस तरह की घटना का शिकार ना हों..

दूसरा सबसे बुनियादी सवाल बच्चो की शिक्षा व्यवस्था.

आखिर क्यों देश के प्राथमिक विद्यालयों की हालात दिन पर दिन बद से बदतर होते जा रहे हैं .. कही इसकी वज़ह ये तो नही की वहा हिन्दुस्तान के सबसे गरीब परिवार के बच्चे पढने जाते हैं तो उनके पास कुर्सी मेज पर भी बैठ कर या ज़मीं पर ही बैठ कर अच्छी शिक्षा पाने का भी हक नहीं हैं…. कहने को तो कई योजनाये हैं बच्चो के विकास के लिए वजीफा, स्कूल ड्रेस, मिड डे मिल और भी कई… योजनाये हैं पर उनका वास्तविकता में कितना असर दिख रहा हैं ये तो पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों से बेहतर कौन जान सकता हैं ..

दरअसल ‘मिड-डे-मिल’ से याद आया ना जाने कितने मासूम बच्चे स्कूल का खाना खा कर दम तोड़ चुके हैं. कभी उन मासूम बच्चों के खाने में यूरिया पाया जाता हैं तो कभी छिपकली.. आकडे पर बात करूंगा तो शायद आप या आपके मंत्री उसे भी मौत का महिना बताने से पीछे नहीं हटेंगे …

देश के बड़े महंगे स्कूल में भी बच्चे सुरक्षित नहीं हैं क़त्ल कर दिए जाते हैं RYAN INTERNATIONAL SCHOOL के प्रद्युमन को अभी आप भूले नहीं होंगे और ये पहली बार नहीं हैं हमेशा से ऐसा होता आ रहा हैं.. मौत होती है हम हल्ला मचाते हैं और आगे ऐसा ना हो कुछ दिन तक सतर्क रहते हैं फिर भूल जाते हैं… और किसी ने कहा भी हैं कि इतिहास खुद को दोहराता हैं और इसकी वजह हम सबकी लापरवाही हैं.. लोगो के अन्दर खौफ हैं वो अपने मासूम बच्चों को स्कूल तक नहीं भेजना चाहते….

अब लोग ट्रेनों में भी बैठने से डरने लगते हैं.. की क्या पता कौन सा हादसा उनकी ज़िन्दगी छीन ले . हिंदुस्तान को बुलेट ट्रेन से ज्यादा एक सुरक्षित यात्रा की ज़रूरत हैं… ऐसा नहीं कि मैं बुलेट ट्रैन के आने से खुश नहीं हूँ मैं और पूरा हिंदुस्तान खुश हैं . पर दरअसल लोग डरने लगे हैं ट्रेनों में.बैठने से पर ज़रूरते मज़बूर करती हैं ……….

और ये खौफ का माहौल आतंकवादियों ने नहीं सिस्टम ने बनाया हैं…. मैं ये नहीं पूछ रहा हूँ की इसका ज़िम्मेदार कौन हैं बस मैं इतना जानना चाहता हूँ की कब हम वास्तविकता में , राजनीत, वोट बैंक की पॉलिटिक्स, लाभ- हानि को भूल कर इन हादसों से कुछ सीख लेंगे ताकि फिर भविष्य में कभी गोरखपुर BRD हॉस्पिटल ट्रेजेडी, मिड डे मील से बच्चों कि मौत, प्रद्युम्न मर्डर केस, रेल हादसे जैसी घटनाएं फिर खुद को ना दोहरा पायें.. क्योंकि जो चले गए उन्हें तो हम वापस नहीं ला सकते पर.. हमारा फ़र्ज़ बनता हैं कि आने वाले वक़्त में किसी को भी इस तरह कि घटनाओं कि वजह से अपनों से ना बिछड़ना पड़े…

मैं सिर्फ इतना पूछना चाहता हूँ कि क्या हमने इन घटनाओं से कुछ सीखा हैं?

वक़्त मिले तो सोचियेगा

प्रशांत तिवारी