”गौरी लंकेश माफ़ करना, हमें गजनी वाली बीमारी हो गई है”

भूलना, फिर हमेशा के लिए ना भूल जाए इसलिए साल में एक दिन मुक़र्रर कर देना, फिर उस दिन को याद करने के बहाने अपने फायदे की तरकीब सोचना….. फिर भूल जाना.. और फिर किसी मौत या हादसे का इंतज़ार करना ताकि उसके लिए भी एक दिन मुक़र्रर करके अपनी रोटियां सेंकी जा सके..फिर.. कुछ बड़े लोग बंद कमरे में कुटिलता से मुस्कुराते हुए वो कहते हैं हमने उन्हें अमर बना दिया।

आपको याद होगा कि अभी कुछ दिन पहले एक महिला पत्रकार नहीं सिर्फ महिला पत्रकार कहना उनका और पत्रकारिता का अपमान होगा क्योंकि वह उन सबसे ऊपर उठ कर सोचने वाली थी जिन्हें ना तो मौत का खौफ था ना ही किसी बात का डर। उन्होंने सिर्फ सच्चे सवाल उठाये,जवाब बन्दूक ने दिया और मिल गई शहादत जी हां, मैं वरिष्ठ पत्रकार दुर्गा लंकेश की बात कर रहा हूँ जिनकी कुछ अनपढ़ गुंडों ने बेंगलुरु में घर के सामने गोली मार कर हत्या करके ये साबित कर दिया की सच्चाई से पूछा गया सवाल इतना कड़वा था की इससे उनकी क्रूरता का घिनौना चेहरा सामने आ गया।

 

यह इस तरह की पहली हत्या नहीं हैं विचारों, आदर्शों, सच्चाई, ईमानदारी का क़त्ल हमेशा से होता आ रहा हैं।  कुछ अनपढ़ गंवार डरकर इन विचारों और आदर्शो को ख़त्म करने के लिए बन्दूक और हिंसा का सहारा लेकर इंसानों को ख़त्म कर देते हैं और सोचते हैं की इस मौत के साथ आदर्श और सच्चाई को भी मार दिया।  लेकिन वो भूल गए की आदर्शों के लिए दी गई कुर्बानी ज़ाया नहीं होती वो एक आहुति का काम करती हैं। एक नई क्रांति को जन्म देती है जिसे ख़त्म करना आसान नहीं नामुमकिन हैं।

 

जिस तरह गौरी लंकेश की मौत के बाद शोर और हंगामा हुआ, सभाएं हुईं सरकारों से उनके कातिलों को पकड़ने की मांग की गई कुछ ने तो सीबीआई की मांग की। टीवी चैनल पर गौरी लंकेश के बारे में खबर चली और ट्विटर-फेसबुक पर मुहीम छिड़ी तो मुझे ऐसा लगा की बस अब कम से कम इन्हें इंसाफ मिल जाएगा। लेकिन दूसरे ही दिन से टीवी पर इनकी खबर को पुरानी खबर मान लिया गया और फिर सभी चैनल बलात्कारी राम रहीम की गुफा के राज़ दिखाने में मशगूल हो गए धीरे धीरे सोशल मीडिया का ट्रेंड भी ख़त्म हो गया।

 

आज जब मैं ये बात लिख रहा हूं तारीख है 10 सितंबर 2017 सबकुछ मुझे वैसा ही लगने लगा जैसा कर्नाटक के एम.एम, कलबुर्गी, महाराष्ट्र के गोविंद पानसरे और बिहार के राजदेव रंजन जैसे पत्रकारों के मरने पर हुआ था। शुरू में सबने खूब हंगामा मचाया खूब टीआरपी बटोरी गई और फिर इनकी मौतों को भुला दिया गया ।  मैं सिर्फ इतना पूछना चाहता हूँ की क्या उन्हें इंसाफ मिला ऐसा ही होता हैं जब शहादत पर सियासत भारी पड़ जाती है ।

 

माफ़ करिएगा गौरी लंकेश मैं आपकी और इन सब महान पत्रकारों की शहादत को ज़िंदगी भर याद रखना चाहता था पर मुझे लगता हैं की मैं भी अब इन सभी जैसा हूँ गया हूँ कुछ दिनों में भूल जाऊंगा।  क्योंकि अब आपके हिन्दुस्तान के लोग बीमार हो गए हैं। उन्हें वही बीमारी हो गई हैं जो ग़ज़नी फिल्म में आमिर खान को हुई थी ।  जैसा उस फिल्म में किसी याद करने के लिए आमिर खान अपने शरीर तक पर लिखता हैं बिलकुल उसी तरह आपको और इन महान पत्रकारों को याद रखने के लिए सिर्फ मैं यह लेख लिख रहा हूँ ।

 

जब तक आप ज़िंदा थी आपने इन हिंदुस्तानियों को याद दिलाने की कोशिश की और कुछ बीमारों ने आप को ही मार डाला सिर्फ ये सोचकर की जब देखो तब कड़वी सच्चाई का आइना दिखा दिया करती थी ।  जब देश में नई सरकार आई तो उसने भी खूब वादा किया की हम काला धन लायेंगे, विकास करेंगे, गरीबी.. लगातार बढ़ रही बेरोज़गारी करप्शन को ख़त्म करके देश को बेहतर बनायेंगे पर क्या हुआ आज सब भूल गए ना इन मुद्दों को । उन्हें पता था शायद हिंदुस्तान में लोग धीरे धीरे बीमार होते जा रहे हैं । बिलकुल इसी तरह आपकी शहादत को भी भूल जायेंगे।

 

माफ़ करिएगा अब हम सब मीडिया के लोग भी इसी बीमारी का शिकार हैं। आपकी शहादत वाले दिन को एक नाम दे दिया जाएगा ताकि भविष्य में भी ज़रूरत पड़ने पर स्वार्थ की रोटिया सेंकी जा सके। हमारा वादा है हम आपकी शहादत को भूल जायेंगे पर सच्चाई के लिए लिखना नहीं भूलेंगे क्योंकि अब हम सब बीमार हैं और हमें भूलने की बीमारी हो गई हैं

 

(लेखक- प्रशांत तिवारी, टीवी पत्रकार )