अज़रबैज़ान और आंगुल की कहानी
दोस्तों,
दुनिया के 180 देशों में प्रेस की आज़ादी के मामले में अज़रबैज़ान का रैंक है 162 और भारत का है 136 । यानी भारत अज़रबैज़ान से अच्छा है।
अब बी बी सी हिन्दी और वायर हिन्दी की दो अलग-अलग रिपोर्ट की बात।
बीबीसी के अनुसार अज़रबैज़ान की सरकार ने प्रेस दिवस पर पत्रकारों को 200 से अधिक फ्लैट मुफ़्त में दिया है।
वायर हिन्दी के अनुसार उड़ीसा के आंगुल ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को पाँच सौ के नोट दिये गए ! वहाँ के पत्रकार जजाति के अनुसार पत्रकार पाँच सौ का नोट लहराकर विरोध कर रहे थे। मामले की जाँच हो रही है।
बताइये अज़रबैज़ान में गुणगान करने पर मुफ़्त में फ्लैट मिलते हैं और यहाँ पाँच सौ रुपये ! वो भी तब जब डॉलर के मु
क़ाबले भारतीय रुपया मज़बूत हुआ है। शर्म की बात है। विरोध में और ज़ोर से गुणगान करना चाहिए।
ऊपर से लखनऊ विधानसभा की कैंटीन में पत्रकारों के हाथ से थाली छीन ली गई। कई लोग कह रहे हैं कि लखनऊ के पत्रकार चुप हैं। विरोध नहीं कर रहे हैं। अरे भाई यह भी तो हो सकता है कि गुलाब जामुन छिन जाने का सदमा गहरा हो, जिससे उबरने में वक्त लग रहा हो। मैं तो तभी से चिकन के लेग पीस पर अटका हुआ हूँ। नाक तक खुश्बू आकर चली गई होगी।
हर बात में विरोध ज़रूरी है क्या। निस्वार्थ सेवा भी तो कोई चीज़ होती है।
बीबीसी ने अज़रबैज़ान की रिपोर्ट क्यों छापी ? मैंने आइडिया लगाया है। ज़रूर बीबीसी वाले ने उड़ीसा और आंगुल के पत्रकारों को जलाने के लिए ये ख़बर दी है।
जलो मत, रीस करो।
भारत की पत्रकारिता बिकने के लिए अज़रबैज़ान की तरह जनता पर बोझ नहीं डालती है। पाँच सौ के नोट जनता के ही होंगे जिन्हें लौटाकर पत्रकारों ने जनता पर जो अहसान किया है, उस पर किसी की नज़र न लगे वरना अगली बार कोई
लिफ़ाफ़े में ढाई सौ डाल देगा!
आराम से रहिए, वो जो कहें, सो ही कीजिये !
आपका
दीपुआ ।