आज़ादी दिवस के दिन लाल किले से झूठ बोलने वाले पहले PM बने नरेंद्र मोदी: रवीश कुमार

अर्थव्यवस्था में गिरावट किसी के लिए अच्छी ख़बर नहीं है। इसका नुकसान सभी को उठाना पड़ता है। मज़बूत सरकार से भयभीत उद्योगपति बोल नहीं पा रहे हैं। उनकी बेचैनी सरकार को दिये जाने वाले प्रीति सुझावों में नज़र आती है। सुझाव के सुर ऐसे होते हैं जैसे कोई हुज़ूर को किनारे से पान बढ़ा रहा हो कि लिया जाए न। हुज़ूर ने पान उठाया तो धीरे से सुपारी भी बढ़ा दी कि ये भी ले लिया जाता। भयभीत होना आजकल राष्ट्रीय कर्तव्य बन गया है। आख़िर इतने लोग डरे क्यों हुए हैं?

कस्बा और फेसबुक पेज @RavishKaPage पर यहां वहां से जुटा कर आर्थिक ख़बरों को पेश करता रहता हूं। ट्रोल पाठकों को लगता है कि ये मेरी राय है। नहीं भाई,ये तो आंकड़े हैं जो ख़ुद बोल रहे हैं। आज कल ये आंकड़े कई लोगों को चुभने लगे हैं। वे सरकार से नहीं कहते कि ऐसा क्यों हैं। मुझसे कहते हैं कि मैं ही नकारात्मक हो गया है। मुझे हंसी आती है। नकारात्मकता मुझमें नहीं, अर्थव्यवस्था के आंकड़ों में हैं। मैंने नोटबंदी पर जो शो किया उसमें एक ही पहलू नहीं था। उसमें दो पहलू थे। एक ज़ोर ज़ोर से बोले जाने वाले झूठ और दूसरा झूठ को चुनौती देने वाले आंकड़े। फिर भी कुछ को लगता है कि एक ही पहलू है। मैं जिन आर्थिक ख़बरों का संकलन कर रहा हूं, वो सब जीडीपी के आंकड़ों से सही साबित होते हैं। वैसे ये जीडीपी की बीमारी भी बोगस है लेकिन अब जब सब इसे ही पैमाना मानते हैं तो इसी में उतार चढ़ाव को देख लेता हूं वर्ना मनमोहन सिंह के समय में 9 फीसदी जीडीपी होने के बाद भी नौकरियां नहीं बढ़ी थीं। क्या आप जीडीपी के घटते आंकड़ों को नकार सकते हैं? ठीक है कि आप आजीवन ट्रोल बने रहने का फैसला कर चुके हैं लेकिन नोटबंदी के झूठ को स्वीकार करने के बाद भी तो ट्रोल रहा जा सकता है। किसने कहा कि फर्ज़ी आंकड़ों और दावों का भ्रम टूट जाने के बाद आप अंध भक्ति ख़त्म हो जाएगी।

इस देश में बहुत से नेता हुए हैं जो बिना कुछ किए कई चुनाव जीत गए हैं। नेता झूठ बोलते हैं। क्योंकि उनकी ज़िंदगी झूठ से ही बेहतर होती है। इसमें कोई अपवाद नहीं है। इसलिए हर बात में चुनावी जीत का तर्क मत ले आइये। मेरी चिंता वो है ही नहीं। बोगस नारों और झूठे आंकड़ों के पोस्टर फटने लगे हैं। फिक्स डिपाज़िट पर ब्याज़ कम हो गई है, बैंक आपसे ही सुविधा शुल्क ले रहे हैं। रिटायर लोगों की आमदनी चरमरा रही है। बैंकों की हालत ख़राब है। अच्छी बात है कि अब लोग 75 और 78 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल ख़रीदकर भी ख़ुश हैं। सरकार इनदिनों आयकर वसूली के आंकड़ों का भी ख़ूब प्रचार करती है। एम के वेणु ने कहा कि 56 लाख नए करदाता नहीं बढ़े हैं बल्कि इतने लोग ई-फाइलिंग में शिफ्ट हुए हैं, जो कि पहले से चली आ रही है प्रक्रिया के तहत हो रहा है। अगर यह बात सही है तो आप सोच कर देखिये कि क्या भारत के प्रधानमंत्री को लाल क़िले से झूठ बोलना चाहिए था? जब आपके अनुसार जनता उन्हें 2019 में वोट देने के लिए अभी से तैयार बैठी है तो फिर झूठ बोलने की ज़रूरत क्या है?

नोटबंदी के कारण ख़ुद भारतीय रिज़र्व बैंक की कमाई आधी हो गई है। राजनीतिक फायदे के लिए इस बैंक की साख को दांव पर लगाया गया। आज उर्जित पटेल किसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जैसे लगते हैं। लगता ही नहीं कि वे स्वायत्त संस्था के प्रमुख हैं। जब 13 दिसंबर को भारतीय रिज़र्व बैंक ने 80 फीसदी नोट गिन लिए थे तो उसके बाद बाकी के तीन लाख गिनने में ढाई सौ से अधिक दिन क्यों लगे।

रोज़ बताया जा रहा है कि जीएसटी से वसूली उम्मीद से ज़्यादा बढ़ी है। 92 हज़ार करोड़ हो गई है। इसका मतलब जीएसटी का फायदा हो रहा है और इसका फायदा होगा भी। फिर जब जीडीपी की दर गिर जाती है तो जीएसटी को क्यों ज़िम्मेदार बताते हैं? ये जो 92 हज़ार करोड़ की वसूली हुई है, तो इसका असर जीडीपी के आंकड़ों पर क्यों नहीं दिखता है? मैं इसका जवाब देने में सक्षम नहीं हूं।

पिछले साल अप्रैल-जून 2016-17 में जीडीपी 7.9 फीसदी थी, इस साल 5.7 हो गई। मनमोहन सिंह ने ठीक कहा था कि एक से दो फीसदी जीडीपी कम हो जाएगी। नोटबंदी के जब इतने फायदे हो रहे हैं, जीएसटी के इतने फायदे हो रहे हैं तो क्या कोई बता सकता है कि जीडीपी क्यों गिरती जा रही है। वित्त मंत्री जेटली ने कहा है कि यह चिंता की बात है। हमें नीतियों और निवेश के मोर्चे पर काम करने की ज़रूरत है। अभी तक इन दोनों मोर्चे पर क्या हो रहा था? तीन साल निकल गए हुज़ूर। चुनाव 2019 में है। हिसाब कोई 2019 में न मांग ले इसलिए अभी से 2022 का नया नारा आ गया है। एक दिन ये स्लोगन भी थक जाएंगे।

मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में भी ग्रोथ 1.2 फीसदी कम हो गया है, जनवरी से मार्च के बीच यह 5.2 प्रतिशत था। 2016 के अप्रैल से जून के बीच यह 10.7 फीसदी था। मेक इन इंडिया का स्लोगन हवा में उड़ चुका है। अब कोई इसका नाम भी नहीं ले रहा है ।स्किल इंडिया भी पोस्टर बैनर के लिए रचा गया था। आप इसकी हालत ज़मीन पर खुद जाकर चेक कीजिए। धांधलियों की दास्तान से आपको शर्म आएगी। हम कहेंगे तो आपको लगेगा कि नकारात्मक हो गए हैं। शायद इसीलिए इसके मंत्री की विदाई हो रही है। जब स्किल इंडिया का भांडा फूटा तो सच्चाई का सामना कर व्यवस्था को ठीक करने के बजाए ख़बरों को मैनेज किया जाने लगा था। वो सब कर लीजिए, बताइये तो रोज़गार कहां है, आमदनी क्यों नहीं बढ़ रही है।

अगर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर एक साल में 10 फीसदी के ग्रोथ से 1.2 फीसदी के ग्रोथ से आ गया है तो आप खुद समझ सकते हैं कि नौकरियों पर क्या असर पड़ा होगा। टेलिकाम सेक्टर जो नौकरियां देता था, चरमरा गया है। इस सेक्टर में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चालीस लाख लोग जुड़े हैं। इस सेक्टर पर साढ़े लाख करोड़ का कर्ज़ा हो गया है। जो खेल हुआ है उसके बारे में कोई खुलकर बोलेगा नहीं, सब दूसरे तीसरे कारणों का ही ज़िक्र कर रहे हैं। डर के कारण टेलिकाम सेक्टर के लीडर भी चुप हैं। वे अपने साम्राज्य को भरभराते हुए देख रहे हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड में राजन एस मैथ्यू ने लिखा है कि अगले 12 से 18 महीने के भीतर 10 लाख नौकरियां समाप्त हो जाएंगी। 2017-18 में बेरोज़गारी की दर 3 से 4 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। 10 लाख लोगों की नौकरियां जाने वाली हैं, नई भर्तियां नहीं हो रही हैं तो आप बताइये कि इसमें पोज़िटिव क्या लिखूं। ये किसने कहा है कि ये सब पढ़कर आप नकारात्मक हो जाते हैं। क्या आप सही बात नहीं जानना चाहेंगे।

नोटबंदी के झूठ पर पर्दा डालने के लिए मंत्री और ट्रोल एक ही मेसेज टाइप कर ट्वीट कर रहे हैं। वायर ने एक स्टोरी की है कि किस तरह कई ट्वीटर हैंडल से एक ही मेसेज को ट्वीट किया गया है। साफ है यह सब किसी कारखाने से हो रहा है। The malicious campaign against Demonitisation is exposed here. Chidambaram may have been lied! Do read. अवधेश, प्रिया,दुष्यंत,अवंतिका नाम के हैंडल से ट्वीट किया है। MEDIAVIGIL ने भी अख़बारों का विश्लेषण कर बताया है कि किस तरह आपके हिन्दी के अखबारों ने नोटबंदी की नाकामी को किनारे लगा दिया। किसी बात को कह देने से इतनी दिक्कत क्यों हो रही है, क्या वाकई आपको झूठ की ज़्यादा चिंता है? किसी गुप्त कारख़ाने से हर दिन एक प्रोपेगैंडा ठेल दिया जा रहा है। एक ईवेंट के बाद दूसरा ईवेंट। उसे हाई-स्केल पर कवर किया जाता है, विश्लेषण होता है, ताकि कुछ भी आपकी स्मृतियों में न ठहरें। लगातार एक ही धारणा बनी रहे तभी जब ऐसे आंकड़े सामने रख दिए जाते हैं तो आपको धक्का लगता है। आप यह भी तो सोचिए कि आपकी सच्चाई इतनी खोखली और कमज़ोर क्यों है कि हर बार उसे सामने लाने के लिए सत्ता की ताकत, ट्रोल के झुंड का सहारा लेना पड़ता है। क्या आप इस देश से प्यार नहीं करते हैं, मेरी राय में आप बिल्कुल प्यार नहीं करते हैं वरना आप इसकी हकीकत को देखने और सहने की शक्ति रखते। गनीमत है कि मीडिया का अधिकांश मैनेज हो गया है वरना इन्हीं आंकड़ों पर जमकर चर्चा होती तो आप ख़ुद को ही गो