प्रधानमंत्री के जन्मदिन को फेंकू दिवस बोलकर तंज कसना ग़लत: रवीश कुमार

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी की भाषा और पत्रकार मृणाल पांडे का व्यंग्य दोनों बेहद ख़राब लगा। किसी के भी जन्मदिन के मौके पर पहले बधाई देने की उदारता होनी चाहिए, फिर किसी और मौक़े पर मज़ाक का अधिकार तो है ही। मृणाल रूक सकती थीं । सही है कि प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर और लोगों ने लतीफें बनाए और फेंकू दिवस बोलकर तंज किया। ये राजनीति के लोक का हिस्सा हो गया है जो मनमोहन सिंह के मज़ाक उड़ाने के दौर से शुरू होता है। लेकिन इसमें हर कोई शामिल हो जाए , यह और भी दुखद है। कहीं तो मानदंड बचा रहना चाहिए।

मनीष तिवारी ने अफसोस प्रकट करने में बहुत देर कर दी। उनके पास उसी वक्त ऐसा करने का मौका था। जिन लोगों ने गाली गलौज की भाषा को संस्थागत रूप दिया है, उन्हें मौका देकर दोनों ने बड़ी ग़लती की है। गालियों के इस्तमाल में किसी हद तक जाने वालों की जमात अपनी बनाई कीचड़ में नैतिकता का परचम लहरा रही है, मगर उनकी बनाई कीचड़ में आप क्यों नाव चला रहे हैं। थोड़ा रूक जाने में कोई बुराई नहीं है। एक दिन नहीं बोलेंगे, उसी वक्त नहीं टोकेंगे तो नुक़सान नहीं हो जाएगा।

अलग से: ऑन लाइन की दुनिया में हम सब फिसलन के शिकार हुए हैं। इसका इलाज यही है कि प्रायश्चित कीजिए। अफसोस प्रकट कीजिए। वरना ये एक बीमारी की तरह आपको चपेट में लेगी। इसे अपने भीतर सांस्थानिक रूप मत दीजिए। गुस्सा आता है, आएगा लेकिन चेक करते रहिए। उकसाने के लिए पूरी जमात है, एक चूक हुई कि वही जमात ले उड़ेगी। समाज में शांति के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी भाषा को नेताओं की काली करतूतों के संसार में फिसल कर मल मूत्र में बदल जाने से रोक लें। दो दिन पहले मुझे भी गुस्सा आ गया था जब किसी ने फर्जी बात पर उकसा दिया मगर उसी जगह पर वापस गया, डिलिट किया और अफसोस ज़ाहिर की।