भारतीयों के बीच आर्थिक असमानता का आंकलन के लिए शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट इमेजरी का प्रयोग किया

नई दिल्ली : अंतरिक्ष से उपग्रहों द्वारा ली गई इमेज से रात की रोशनी का उपयोग करते हुए दो अर्थशास्त्री द्वारा हालिया एक अध्ययन ने भारत में आर्थिक असमानता को लेकर एक रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है, जो देश विदेश में काफी चर्चित हो रही है। हालांकि शोधकर्ताओं का तर्क है कि यह विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधि को मापने का एक निर्णायक तरीका है, ऐसे कई लोग हैं जो इससे असहमत हैं।

अर्थशास्त्री प्रवीण चक्रवर्ती और विवेक देहेजिया ने अमेरिकी वायुसेना रक्षा मौसम विज्ञान उपग्रह से उपग्रहों द्वारा कैच किए गए चित्रों का अधिग्रहण किया. यह उपग्रह दिन में पृथ्वी के 14 चक्कर लगाता है. और पृथ्वी की लाइट यानी रौशनी की तस्वीरें लेता है.

इस डेटा के आधार पर 12 राज्यों के आंकड़े देखने का दावा किया गया. 640 में से 387 जिलों की जांच की गई. कहा गया कि ये भारत की 85% जनसंख्या का घर हैं और यहीं से देश की 80% जीडीपी आती है. इसी के साथ, इन राज्यों को देखा जाए तो पूरे भारत में कई तरह की असमानताएं हैं. खास तौर पर आर्थिक असमानताएं.

sidelight image

रिसर्च के अनुसार इन दोनों अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जहां कम रौशनी है, उसका मतलब है कि वहां आर्थिक गतिविधियां भी कम हैं. साथ ही, अंतरिक्ष से जो रौशनी दिख रही हैं वो इसका नतीजा है कि इन राज्यों के बीच असमानताएं बढ़ रही हैं.

12 राज्यों की 380 तहसीलों के मुकाबले बेंगलुरु और मुंबई में पांच गुना ज्‍यादा रौशनी है. साथ ही देश की 90% तहसीलें बाकी 10% की तुलना में तीन गुना कम रौशन हैं. और ये आंकड़ा 1992 से लेकर 2013 तक साल दर साल खराब होता चला गया है.

इस स्टडी में ये बात भी सामने लाई गई कि 1991 के पहले ये असमानता कम थी और उसके बाद लगातार बढ़ती गई. देश के तीन अमीर राज्यों (तमिलनाडु, केरल और महाराष्‍ट्र) में एक आम व्यक्ति तीन सबसे गरीब राज्यों (यूपी, बिहार और मध्‍यप्रदेश) की तुलना में तीन गुना ज्यादा अमीर है. डॉक्टर विवेक कहना है कि गरीब उतनी तेज़ी से तरक्की नहीं कर रहे जितनी तेज़ी से अमीर कर रहे हैं. और कम विकसित राज्यों में लोग निचले स्तर का जीवन जी रहे हैं. यानी भारत में काफी असमानता है.