आधार नंबर नहीं था इसलिए JNU प्रशासन ने लौटा दिया मेरा एमफिल का रिसर्च पेपर: शेहला राशिद

जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला राशिद ने आरोप लगाया है कि यूनिवर्सिटी ने उनका रिसर्च पेपर इसीलिए नहीं स्वीकार किया क्योंकि उन्होंने उस पर आधार नंबर नहीं लिखा था ।

शुक्रवार को शेहला ने कहा कि‘‘जेएनयू प्रशासन ने मेरा शोध निबंध मेरे केंद्र को भेज दिया क्योंकि मैंने संबंधित पत्र पर अपने आधार नंबर नहीं लिखा था।’’ उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी पिछले दरवाजे से आधार को आगे बढ़ा रहा है जबकि इसके लिए कोई शासनादेश नहीं है।

शेहला पहली स्टूडेंट नहीं है जिसका शोध निबंध यूनिवर्सिटी ने वापस भेजा हो। इससे पहले कई छात्रों के शोध निबंध वापस किए गए हैं जिन्होंने आधार नंबर का ज़िक्र नहीं किया था । हालांकि जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने कहा कि यूजीसी की 21 मार्च की अधिसूचना के बाद आधार का उल्लेख अनिवार्य कर दिया गया है।

इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक शेहला ने कहा, “मुझे मेरे केंद्र से एक कॉल आई कि विश्वविद्यालय ने मेरे शोध निबंध को वापिस भेज दिया। क्योंकि मैं आवेदन में आधार नंबर नहीं लिखी थी। मेरे पास आधार कार्ड नहीं है, और मुझे लगता है कि शैक्षणिक क्षेत्र में यह अनिवार्य भी नहीं है। यह एक तरह का छात्रों को परेशान करने की कोशिश की जा रही है। ”

विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमल मित्र चेनॉय ने भी शेहला की बात का समर्थन करते हुए कहा कि शोध निबंध को स्वीकार करने के लिए आधार होना जरुरी नहीं है। आधार की ज़रूरत मुख्य रुप से बैंक में लेन-देन के लिए पड़ती है। शैक्षणिक आवश्यकताओं के लिए पहले ही कोर्ट स्पष्ट विवरण दे चुका है।

यूनिवर्सिटी के एक अधिकारी के मुताबिक शोध निबंध वापिस किया गया है, क्योंकि दो दस्तावेज ज़रूरी हैं, एक इंटरनल और दूसरा एक्सटरनल। जोकि मूल्यांकन विभाग को लेटर के साथ भेजा जाता है।

निबंध मुख्य रूप से छात्रा, उनके पर्यवेक्षक और विभाग प्रमुख के बीच है । एम फिल निबंध के लिए पीएचडी के लिए सकारात्मक जवाब नहीं हो सकता है, जबकि वे अंतिम निबंध में और बदलाव कर सकते हैं।

विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि उन्होंने 20 अप्रैल को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें कहा गया है कि विशिष्ट पहचान पत्र / आधार और फोटोग्राफ के साथ प्रमाण पत्र जमा किया जाना चाहिए। यूजीसी ने मार्च में इस पर एक परिपत्र जारी किया था।

हाईकोर्ट ने 1 अगस्त को कहा था कि सार्वजनिक दायरे में लोगों की निजी सूचनाओं की संरक्षा के लिये अतिमहत्वपूर्ण दिशानिर्देशों की आवश्यकता है ताकि इनका इस्तेमाल सिर्फ नियत उद्देश्य के लिये ही किया जाये।