ULFA ने हिंदू बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता देने वाले बिल का किया विरोध, बातचीत बंद करने की धमकी दी!

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के वरिष्ठ नेता अरविंद राजखोवा ने बताया कि (अल्फा वार्ता गुट) और केंद्र सरकार के बीच दिल्ली में हुई एक बैठक में शांति वार्ता अपने अंतिम चरण में और सही दिशा में है । उन्होंने कहा कि इस वार्ता का जल्द ही एक निष्कर्ष निकल कर आने वाला हैं।

हालांकि नागरिकता संसोधन विधेयक पर केंद्र सरकार से अलग रुख अपनाने हूए अल्फा ने विधेयक का विरोध करते हए इसे वापस लेने की मांग की है। केंद्र और अल्फा के बीच मध्यस्थता करने वाले वार्ताकार एबी माथुर के साथ इस बैठक में अल्फा महासचिव अनूप चेतिया भी मोजूद रहे।

मंगलवार को बैठक के बाद आयोजित एक प्रेस वार्ता में राजखोवा ने कहा कि केंद्र के साथ चल रही वर्तमान शांति वार्ता अपने अंतिम चरण में है और दोनों पक्ष हमारी मांगों के चार्टर पर सहमत हो चूक हैं।

हाल के दिनों में अल्फ़ा और परेश बरुवा द्वारा संचालित अल्फ़ा (स्वाधीन ) के बीच मतभेद होने के सवालों पर राजखोवा ने जबाव देने हुए कहा कि अल्फ़ा (स्वाधीन ) एक अलग इकाई है, इसलिए हमारी मांगो के चार्टर से सहमत नहीं होने का विचार उनका निजी निर्णय है। लेकिन शांति वार्ता में शामिल होने और उनके मन में किसी तरह के बदलाव का हम हमेशा स्वागत करते हैं।

भविष्य की चिंताओं को जाहिर करते हुए राजखोवा ने काष्टा कि बैठक में हमने संवैधानिक और राजनितिक सुरक्षा की संभावनाओं पर भी चर्चा की है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति में भविष्य के बारे में ये अनिश्चित हैं। अल्फा नेता ने कहा कि असम के लोग फैसला करेंगे कि हमें राजनीति मेंशामिल होने की जरुरत है या नहीं।

अल्फा ने हिंदू बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता देने वाली नागरिकता संशोधन विधेयक- 2016 का विरोध करते हुए इसे जल्द से जल्द खत्म करने की मांग की है। इस बारे में अल्फा नेता ने कहा कि हालांकि यह मांग हमारे चार्टर में शामिल नहीं है, लेकिन असम के भविष्य के लिए हमने केंद्र सरकार से यह मांग की है।

अल्फा ने यह भी कहा है कि वे एमआरसी के अंतिम मसौदे के प्रकाशन तक इंतजार करेंगे, क्योंकि बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की पहचान और निर्वासन अल्फा की शीर्ष मांगों में से एक है। गौरतलब है कि इसमे पहले भी अल्फा संसद द्वारा पारित इस विधेयक पर शांति वार्ता से बाहर होने की धमकी दे चुका है। हालांकि तब तक विधेयक पारित हो चुका था ।