क्यों हम ही उलझे हुए हैं आपस में?

दो तीन दिन पहले फेसबुक पर एक पोस्ट मेरी नजर से गुजरी, जिसमें भारत के एक बड़े आलिमे दीन की बात दर्ज थी। ” सुन्नी और शिया फिरकों में 90 फीसद बातों पर सहमती है, लेकिन 10 फीसद मामलों में दोनों के दरमियान अंतर है, लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि इन्हीं अंतर वाली बातों को स्टेज से उछाला जाता है”।

Facebook पे हमारे पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करिये

मैं भी मरहूम की बातों से सहमत हूँ, बल्कि मुझे लगता है कि भूतकाल में बादशाहों और सल्तनत के लोभियों ने अपने अपने फायदे के लिए इन अंतरों का इस्तेमाल किया, वहीं आज गैर मुस्लिमों के हितों की खेती के लिए उन्हीं अंतरों को हवा दी जा रही है। हालांकि अगर आप गौर करें तो पाएंगे की फिरके और मसलकें सिर्फ मुसलमानों में ही तो नहीं हैं, दुनियां के जितने भी धर्म हैं सभी धर्म फिरके और मस्लकों में बंटी हैं।

इसाई धर्म में कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, ऐंग्लिकन समुदाय और ओर्थोडोक्स समेत दर्जनों फिरके हैं। यहूदियों में भी 9 फिरके तो ऐसे हैं जिनके बारे में आप विकिपीडिया में पढ़ सकते हैं। हिन्दुवों में सनातन धर्म, आर्य समाज जैसे दो फिरकों के अलावा हर भगवान के मानने वालों के दर्जनों फिरके मौजूद हैं।

बोद्ध, जैन और सिखों में भी कई फिरके हैं। लेकिन आपने यह कभी नहीं देखा होगा कि हिन्दू, सिख, जैनी या बुद्धिस्ट फिरकों के टुकड़ों में से अलग अलग कोई मसलक दुसरे मसलक को जहन्नमी बताने में लगा हो? आप ने कभी नहीं सुना होगा कि आर्य समाजी और सनातन धर्मी एक दुसरे के खिलाफ किताबें लिखने में लगे हों? आप ने दुनियां के किसी भी देश में कभी नहीं देखा होगा कि यहूदियों का कोई फिरका किसी फिरके के खिलाफ काफिर होने का फतवा देता हो? या किसी इसाई को भी आप ने यह कहते नहीं सुना होगा कि प्रोटेस्टेंट को जहन्नम में डाल दिया जाये।

यह ज़िम्मेदारी सिर्फ मुसलमानों ने ले रखी है कि वह अपने दुसरे फिरकों को जहन्नमी कहें या उनके खिलाफ बोलें। खासकर पाकिस्तान में मसलकी अतिवादी ज़ोरों पर है कि वहां के मोलवियों को देखकर लगता है कि जैसे जहन्नम की आग भडकाने का ठेका इन्होने ने ही ले रखा हो।

पूरी दुनियां में इस समय इस्लाम विरोधी प्रोपेगंडा ज़ोरों पर है और कोई दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन इस्लाम और मुसलमानों पर नया हमला न होता हो, लेकिन अफ़सोस कि बात तो यह है कि मुस्लिम दानिश्वर इस्लाम की बचाव के बजाय एक दुसरे के खिलाफ किताबें लिखने में लगे हैं। कई मौलवियों ने तो दुसरे मसलक के लोगों के जज्बातों को ठेस पहुँचाना ही अपना पेशा बना लिया है। जबकि समय की जरूरत है कि इस्लाम का दर्द दिल में रखने वाले लोग सामने आयें और एकता और भाईचारे का दीप जलाएं।

शकील शम्सी