दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के वोट का महत्व!

इक़बाल रज़ा, कोलकाता। भारत में पिछले दिनों हुए कुछ अप्रत्याशित घटनाओं से अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता चाहे वह सोनभद्र का लिंचिंग हो या गुरुग्राम की घटना! इन घटनाओं का विपरीत प्रभाव होता है जो समाज में असुरक्षा की भावना को जन्म देता है! ऐसे में उन्हें अब एक बार फिर आत्ममंथन कर एक ऐसे विकल्प को चुनना होगा जो राष्ट्र और उनके हितों की रक्षा कर सके!

राजनेताओं द्वारा मीडिया में लगातार अमर्यादित भाषा का प्रचलन जोरों पर है! इसके पीछे कुछ निहित स्वार्थ होते हैं जैसे कि असल मुद्दों से भटकाना या भ्रमित करना आदि! फलस्वरूप एक वर्ग विशेष का लोकतंत्र के इस महापर्व में भागीदारी कम होती है जिसका फायदा उन दलों को विशेष रूप से होता है जो सार्वजनिक नीति के मुद्दों पर एक साथ नहीं आ सकते हैं या आ पाते हैं! यही कारण है कि करीब 100 सीटों पर प्रभाव रखने व 18% होने के बावजूद भी उनकी अपनी कोई आवाज़ नहीं है! बेशक, सभी दल इसमें शामिल नहीं हैं।

मेरा मानना है कि समस्याओं को हल करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसे अंदर से किया जाए। दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र के इस महापर्व में आप अवश्य भागीदार बनें और परिवर्तन को बल दें! समस्या से भागना या मतदान का नजरअंदाज करना आदि – एक तरह से चुनाव के बहिष्कार के सामान है, इसका अर्थ होगा – अपने लिए और कठिन परिस्तिथियों को आने देना।!

मतदान लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें उनके पसंद के प्रतिनिधि चुनने का अवसर प्रदान करता है, जिनमे वे विश्वास करते हैं!

अंततः आतंकवाद, नस्लवाद, जातिवाद के खिलाफ खड़े होकर अवश्य ही लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में भागीदार बनें! संविधान द्वारा दिए गए अपने इस अनमोल अधिकार का उपयोग अवश्य करें!

लेखक- इक़बाल रज़ा, (राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ)