रमज़ान करीम: रहमत का अशरा खत्म, मग़फिरत का अशरा शुरू

रमजान का पावन महीना अपने शबाब पर है, रमजान के पहले 10 दिन को रहमत का अशरा कहा जाता है। रमजान शरीफ का दूसरा अशरा मगफिरत का है। इन 10 दिनों में कुर्आन शरीफ की तिलावत करने के साथ-साथ अपने गुनाहों की माफी मांगते हुए तौबा अस्तगफार करते रहें। और रात की तन्हाई में खुदा की बारगाह से अपने गुनाहों की बख्शीश की दुआ मांगें,साथ ही अपने वालिदैन रिश्तेदार और आम इमान वालों की बख्शीश और मगफिरत की भी दुआ करें।

एक हदीस शरीफ में नबी ए रहमत ने इरशाद फरमाया कि दुआ इबादत की रूह है,मोमिन का हथियार है। इसलिए अधिक से अधिक दुआ मांगने का हर संभव प्रयास करें।

एक मर्तबा सरकारे मदीना सल्लल्लाहो अलैेहि वसल्लम मस्जिद-ए-नबवी में तशरीफ़ लाए,और संबोधन के लिए मेंबर पर चढ़ने लगे,मेंबर की पहली सीढ़ी पर जब आपने कदम रखा तो आमीन कहा, और दूसरी सीढ़ी पर कदम रखा तो भी आमीन कहा, फिर जब तीसरी सीढ़ी पर कदम रखा तो भी आमीन कहा,संबोधन और नमाज समाप्त होने के बाद आपके असहाब ने प्रश्न किया ए अल्लाह के रसूल हमारे मां बाप आप पर कुर्बान हों,आज तीनों सीढ़ियों पर कदम रखते हुए आपने आमीन कहा, जो मामूल के खिलाफ था।

सरकारे मदीना सल्लल्लाहो अलैेहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया ए मेरे प्यारे सहाबा जब मैं मेंबर पर चढ़ रहा था, तो हज़रत ए जिब्राइल तशरीफ़ लाए और उन्होंने कहा कि ए अल्लाह के रसूल आप पर दुरुद व सलाम हो, अल्लाह ताला का फरमान है कि तबाही और बर्बादी उस शख्स के लिए है जो रमज़ान शरीफ का महीना पाए और उसकी कद्र करके जन्नत में अपना घर ना बनाए,तो मैंने उस पर आमीन कहा।

फिर हज़रत ए जिब्रील ने कहा कि तबाही और हलाकत है उस शख्स के लिए जो अपने माता पिता में से दोनों को या किसी एक को बुढ़ापा और कमज़ोरी के दिनों में पाए और उन की खिदमत करके जन्नत में अपना घर न बनाए,तो मैंने उस पर भी आमीन कहा। तीसरी मर्तबा हजरत जिब्राइल ने फरमाया कि तबाही और बर्बादी है उस शख्स के लिए जो आपका नाम सुने और आप पर दरूद शरीफ न भेजे, मैंने उस पर भी आमीन कहा।

इस हदीस शरीफ से रमज़ान की अहमियत और फज़ीलत को निहायत आसानी के साथ समझा जा सकता है। इसलिए हम सब का दीनी फरीज़ा है कि रमज़ान शरीफ के बाकी दिनों की कद्र करें,और सोशल मीडिया पर समय व्यर्थ करने से परहेज़ करें, और ज्यादा से ज्यादा तिलावत, इबादत,दुआ, तस्बीह और जिक्र करने में अपना समय गुजारें।और जिनके वालिदैन जिंदा हों वह अपने वालिदैन की खूब-खूब खिदमत गुजारी करें,या जिनके वालिदैन पर्दा कर चुके हों तो वह अपने वालिदैन के लिए इसाले सवाब करें।और नबीए रहमत पर खूब-खूब दरूद और सलाम पढ़ते रहें।

खुशनसीब हैं वो लोग जिन्होंने रोज़ा और तरावीह की पाबन्दी किया। और अपने इफ्तार में ग़रीब, बेसहारा रोज़ेदारों को भी शामिल किया।अगर किसी रोज़ादार को एक गिलास पानी भी नेक नीयती के साथ पेश किया जाए तो रोज़ा का सवाब मिलता है। जबकि हर नमाज़ के बाद देश और दुनिया की अमन व सलामती की दुआ मांगें।