श्रीलंका में बौद्ध और मुसलमानों में तनाव बढ़ा!

ईस्टर हमले के बाद श्रीलंका में बौद्ध-मुस्लिम तनाव फिर से बढ़ गया है. साल 2018 में हुए मुस्लिम-बौद्ध दंगों के दौरान देश में इमरजेंसी लगाने पड़ी थी. आखिर क्यों बार-बार मुस्लिमों और बौद्धों में टकराव हो रहा है?

श्रीलंका में 11 मुस्लिम राजनेताओं ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. इनमें नौ कैबिनेट और जूनियर मंत्री और दो राज्यों के गवर्नर शामिल हैं. ये इस्तीफे एक बौद्ध भिक्षु अतुरालिए रतना थिरो के अनशन के बाद हुए हैं.

रतना थिरो ने आरोप लगाया कि ईस्टर के दिन हुए बम धमाकों के आरोपियों से मंत्री रिशाद बाथिउद्दीन और गवर्नर एएलएएम हिज्बुल्लाह और अजत सैली के संबंध थे. इसलिए इन्हें इस्तीफा देना चाहिए.

आरोप लगाने के बाद वो इस्तीफे की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए. दो गवर्नरों और एक मंत्री के अलावा भी सरकार में शामिल सभी मुस्लिम मंत्रियों ने अपने साथियों के समर्थन में इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद रतना ने अपना अनशन खत्म कर दिया.

श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस के नेता रउफ हकीम ने कहा,”हमने सरकार से मांग की है कि हमारे खिलाफ कोई भी जांच करवा लें. हम निर्दोष हैं. ईस्टर के दिन हुए हमलों के बाद श्रीलंका में मुस्लिमों के खिलाफ लगातार हिंसा हो रही है.

उन्हें पुलिस थानों में बंद किया जा रहा है. उनके घर जलाए जा रहे हैं.” उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि होने के नाते वो सरकार में थे लेकिन अब उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया है जिससे निष्पक्ष जांच हो सके. इस जांच का नतीजा जल्दी निकाला जाए और दोषियों को सजा दी जाए.

अतुरालिए रतना थिरो श्रीलंकाई बौद्ध भिक्षु हैं. वो श्रीलंका में सांसद भी हैं. वो श्रीलंका की एक दक्षिणपंथी बौद्ध राष्ट्रवादी पार्टी जकीता हेला उरुमाया के संस्थापक सदस्य रहे हैं. यह पार्टी 2004 में बनी थी. उस समय इसका एजेंडा एलटीटीई का संपूर्ण सफाया और धर्मांतरण को रोकना था.

पहले चुनाव में इस पार्टी के 225 सदस्यों की संसद में नौ सदस्य जीतकर आए. रतना थिरो को फायरब्रांड नेता माना जाता है. 2009 में एलटीटीई का सफाया हो गया. 2015 में जकीता हेला ने महिंदा राजपक्षे का साथ छोड़कर संयुक्त उम्मीदवार रहे मैत्रीपाला सिरिसेना का साथ दिया. खुद थिरो सिरिसेना की पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते.

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी