रोजे का मकसद

रोजे का मकसद नफ्सानी ख्वाहिशात पर रोक लगाना है और गलत कामों को छोड़ देना है जिसको अल्लाह पाक ने छोड़ने का हुक्म दिया है। हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने फरमाया कि इस्लाम की खूबी में से यह भी है कि इंसान लायान

माँ की दुआ जन्नत की हवा होती है

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने शरीयत में माँ को बहुत बड़ा मुक़ाम अता किया है। कहते हैं कि माँ की दुआ जन्नत की हवा होती है। जो मुहब्बत की नज़र अपनी वालिदा के चेहरा पर डालता है, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त एक हज या उमरा का सवाब अता फ़रमाता है। सहाबा किरा

शाबान के रोजे-एहकाम व आदाब

शाबान के महीने को अल्लाह के रसूल (स०अ०व०) ने रोजा जैसी मुकद्दस व मुबारक इबादत से मखसूस करार दिया है। आप (स०अ०व०) का मामूल था कि आप शाबान के महीने में जिस कसरत और पाबंदी से रोजों का एहतमाम फरमाते थे वह रमजानुल मुबारक के सिवा और किसी मह

नमाज मोमिन की मेराज है

मेराज की रात अल्लाह तआला ने अपने महबूब नबी (स०अ०व्०) को आलमे दुनिया, आलमे बरजख, आलमे आखिरत और आलमे मलकूत की सैर कराते हुए अपनी बारगाह में बुलाया और इतना करीब किया और राज व नियाज की ऐसी बाते की कि तमाम अव्वलीन व आखिरीन फरिश्ते व जिन्न

इस्लामी हुकूक व आदाब और अहकाम (हुक्म)

नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद है कि हर हक वाले का हक अदा करो। इस मुबारक इरशाद से यह बात वाजेह हो जाती है कि हुकूक की अदायगी मुसलमानों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। आमतौर पर हुकूक को दो हिस्सों में तकसीम किया जाता है- हुकूकुल्लाह और हुकूकु

वाक़िया मेराज के एतेक़ादी पहलू

वाक़िया मेराज कायनात का एक मुनफ़रद-ओ-बेमिसाल वाक़िया है। इस तरह का वाक़िया ना कभी हुआ था ना कभी होगा। क़ादिर-ए-मुतलक़ अल्लाह तआला ने अपने महबूब बंदा रसूल अकरम स०अ‍०व० को रात के मुख़्तसर से हिस्से में मस्जिद ए हराम से मस्जिद अक्सा, सातों

कलामे नबवी (स०अ०व०) की किरनें

हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने समुन्दरी किनारे की जानिब एक लश्कर भेजा जिसमें सौ मुसलमान शामिल थे। आप ने हजरत अबू उबैदा बिन जराह (रजि0) को उनका अमीर बनाया। मैं भी उनमें शामिल था। हम निकल खड़े हुए। ह

कुरआने मजीद पढ़ना-पढ़ाना और तिलावत में मशगूल रहना

हजरत उस्मान (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि तुम में सबसे बेहतर वह है जो कुरआन सीखे और सिखाए। हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि मेरी उम्मत में शरीफ लोग वह है

आमाल में सबसे बेहतरीन अमल

हजरत इब्ने अब्बास (रजि० ) कहते हैं कि नबी करीम (स०अ‍०व०) से किसी ने पूछा कि बेहतरीन आमाल में से कौन सा अमल अफजल है। आप ने इरशाद फरमाया- ‘‘हाल मरतहल’’। लोगों ने पूछा कि हाल मरतहल क्या चीज है?

नबी करीम (स०अ०व०) की उम्मत को मुख्तलिफ नसीहतें

हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया- सात तबाहकुन गुनाहों से बचो। सहाबा (रजि0) ने दरयाफ्त फरमाया वह सात गुनाह कौन से हैं?

मोमिन सच्चा होता है

ईमान का लफ्जी मायनी तस्दीक है और सिद्क इसका एक शोबा है। यह वह फजीलत और अखलाक है जो आदमी को हर बुरे और नामुनासिब काम से रोकता है। किताबे सुन्नत और अक्ल व फितरत बंदो में सच को जिंदा करने की तरगीब देते हैं। इसीलिए मुसलमान हमेशा सच्चा ह

रब की रज़ा, माँ बाप की रज़ा में है

(क़ारी मुहम्मद याक़ूब अली ख़ां नक़्शबंदी) वालदैन की नाफ़रमानी अल्लाह तआला की नाफ़रमानी है और उनकी नाराज़गी अल्लाह तआला की नाराज़गी है। आदमी वालदैन को ख़ुश रखे क्योंकि माँ के पैर के नीचे जन्नत है। अगर हम वालदैन को नाराज़ रखेंगे तो हम दु

अल्लाह तआला को राज़ी रखना बंदे पर फ़र्ज़ है

फ़ज़ाइल ला इलाहा इल्लल्लाह : अर्श से फ़र्श तक सब कुछ जिस के क़ब्ज़ा क़ुदरत में है और जिस ने हज़ा रहा अजाइब से ज़मीन को आरास्ता किया और हर ज़र्रा में अपनी क़ुदरत ज़ाहिर की, जिस को बनाया और पैदा किया, वो सिर्फ़ हमारे ही फ़ायदा के लिए हैं। वही हर

मुहम्मद अरबी (स०अ०व०) का अदालती निजाम व बराबरी

नबी करीम (स०अ०व०) अल्लाह के आखरी नबी है। रिसालत का सिलसिला आप की ज़ात पर खत्म होता है। आप (स०अ०व०) के बाद कोई नबी आने वाला नहीं है। पूरी दुनिया के मुसलमानों का यह अकीदा है। वह शख्स बड़ा ही बदनसीब है जो इस अकीदे से बचे या इस पर ईमान न रखता

गुजरात में फिर मुस्लिमकश फसादात की तैयारी?

(इमरान आकिफ खान) 28-02‍-2002 में गुजरात में हुए रियासत गीर, मुस्लिमकश फसादात की यादें, जख्म, टीसें महरूमियां और अफसोसनाकी अभी तक ताजा है कि हालिया दिनों में फिर ऐसा लगने लगा है कि एक बार फिर मुस्लिमकश फसादात भड़कने वाले हैं।

हर गुनाह पर तौबा वाजिब है

(आमिना बेगम) हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व० का इरशाद है कि हर आदमी ख़ताकार है और ख़ताकारों में सब से अच्छा वो है, जो मुख़लिसाना तौबा करे और अल्लाह की तरफ़ रुजू हो (इब्ने माजा, किताब अल ज़हद) ख़ता, गुनाह और लग़्ज़िश इंसानी फ़ित्रत है, कोई भी इस से मसतसनी न

आखिरी जमाने का सबसे बड़ा फितना

(मौलाना मोहम्मद यूसुफ) हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद (रजि0) नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद नकल करते हैं कि इस उम्मत में खास किस्म के चार फितने होंगे उनमें आखिरी और सबसे बड़ा फितना राग व रंग और गाना-बजाना होगा।

बेशक तुम्हारा मुझ पर दुरूद भेजना तुम्हारी ज़कात है

बेशक तुम्हारा क़ाबिल एहतिराम क़ारईन : ख़ालिक़े कायनात , मालिके कुल अल्लासुब्हाना व तआला ने हम सब को इस दुनियाए फ़ानी में बज़रीया मुस्तफ़ा स०अ०व० को भेजा है ।यक़ीनन ये एक एसी बेहतरीन अता है कि जिस पर जितना शुक्र बजा लाएंगे उतना ही कम है। ये

सय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० के दौर में नोमौलूदों का वज़ीफा

सय्यदना उमर फ़ारूक़ रज़ी० के आज़ाद करदा ग़ुलाम असलम बयान करते हैं कि एक दफ़ा मदीना मुनव्वरा में कुछ ताजिर आए। उन्होंने ईदगाह में पड़ाव डाला। सय्यदना फ़ारूक़ आज़म ने हज़रत अबदुर्रहमान बिन औफ़ रज़ी० से फ़रमाया क्यों ना आज हम उन लोगों की चौकी