वस्त एशिया ( Middle East) के मुसलमानों की नाआक़बत अंदेशी

अमीर नसरूल्लाह की सबसे बुरी हरकत ये थी कि इसने ये जानते हुए भी कि रूस अपनी सरहदें वस्त एशिया तक वसीअ करने में मसरूफ़ है और खेवा पर दबाव डाल रहा है (जो इस के रास्ते में हाइल होने वाली पहली मुस्लिम रियासत थी), खेवा पर हमला कर दिया।

फ़लस्तीन में आई टी का उरूज

फ़लस्तीन में इन्फ़ार्मेशन टेक्नोलोजी का शोबा बहुत तेज़ी से तरक़्क़ी कर रहा है। अगर कम्पयूटर के शोबे में ये रुजहान इसी तरह से जारी रहा तो क्या फ़लस्तीन मुस्तक़बिल में इन्फ़ार्मेशन टेक्नोलोजी में तेज़ी से आगे बढ़ने वाली सरज़मीन

अजनबी रास्तों की मुसाफिर- दीप्ती नवल की शायरी

(एफ. एम. सलीम) ऐसी क्या चीज़ है, जो अच्छे ख़ासे आदमी को शायर बना देती है। …आम तौर पर लोग शायर के बारे में यही सोचते हैं, लेकिन दूसरा पहलू भी देखा जा सकता है कि कोई शायर हो कर वो ख़ास बन जाता है। दरअसल शायरी कुछ हट कर सोचने का अमल है।

मिस्र की इक़तिसादी और सियासी मुश्किलात

काहिरा 16 जनवरी – मिस्र में मुसलसल सियासी मुश्किलात और हंगामों का मुल्क की इक़तिसादी हालात पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। मिस्र के सदर मुहम्मद मर्सी को अपने मुल्क की हालत के बारे में बहुत फ़िक्रमंद होना चाहिए क्योंकि मिस्र की इक़तिस

ट्यूनिशिया: बिन अली की बेदख़ली के दो साल

अरब ममालिक में आने वाले इन्क़िलाब का आग़ाज़ ट्यूनीशिया से हुआ था। अवाम ने आज़ादी और तरक़्क़ी के लिए चार हफ़्तों तक मुज़ाहिरे किए, जिस के नतीजे में साबिक़ सदर ज़ैनुल आबेदीन बिन अली को 14 जनवरी 2011 को मुल्क से फ़रार होना था।

गुनाह और उसका कफ़्फ़ारा

अल्लाह तआला का इरशाद है कि (ऐ पैग़ंबर!) ये उन (हिदायतों) में से हैं, जो अल्लाह ने दानाई ( अक्लमंदी) की बातें तेरी तरफ़ वही की हैं और अल्लाह के साथ कोई और माबूद ना बनाना कि (ऐसा करने से) मलामत ज़दा और (बारगाह ए इलाही से) रांदा बनाकर जहन्नुम में

अल्लाह तआला से पाकदामनी और सेहत तलब करो

हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व० ने इरशाद फ़रमाया है कि जो शख़्स निकाह पर क़ुदरत ना रखता हो, उसे रोज़ा रखना चाहीए, क्योंकि रोज़ा इसके लिए वाजेह है। वाजेह् का मतलब शहवत को तोड़ने वाला या ख़त्म करने वाला है। रोज़ा रखने का मक़सूद भूखा रहना यानी पेट ख़ा

अल्लाह तआला पर कामिल भरोसा रखना उम्मते मुहम्मदिया ( स्०अ०व०) का तुर्रहे इम्तियाज़

इस दुनिया में कई कौमें आयी और गयी हैं अल्लाह सुब्हाना व तआला ने हर एक को उस वक़्त के हिसाब से बहुत सारी सहूलतें फ़राहम किया और फ़ज़ीलत भी अता किया है । हम को भी इस दुनिया में भेजा और ख़ैर उम्मत यानी सबसे बेहतर बनाया लेकिन इसके बावजूद हम इस

ज़िना बिलजब्र क़त्ल से बढ़ कर, ज़िना बिलरज़ा ख़ुदकुशी से कम नहीं

इक्कीसवीं सदी इस्लाम की सदी है, इस दौर में बज़ाहिर इस्लाम मग़्लूब और मुसलमान कमज़ोर नज़र आ रहे हैं, इसके बावजूद‌ इस्लाम मज़बूत और वसीअ होता जा रहा है, उसकी शाख़ें फैलती जा रही हैं, इसके घने साय में परेशान दिल सुकून-ओ-इतमीनान पा रहे हैं। इस्

आमाल की असल रूह तक़वा है

अल्लाह तआला का इरशाद है कि ग़ज़वा ए बदर में उसने तुम्हारी मदद की, हालाँकि तुम दुश्मन के मुक़ाबिल में बेहक़ीक़त थे। पस ख़ुदा से डरो और उसकी शुक्रगुज़ारी करो (आल-ए-इमरान।१२३)

नफ्सानी खाहिशात का कुरआनी इलाज

हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शहवत का बेहतरीन ईलाज शादी करना बताया है। हज़रत अबदुल्लाह‌ बिन मसऊद रज़ीय‌ल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: ए नौजवानों की जमाअत!

इस्लाम का निज़ामे अख़‌लाक़ियात

इंसानों को तीन बुनियादी दर्जों में तक़सीम किया जा सकता है:
(१) फ़ित्रतन अच्छे लोग जिन्हें किसी तरग़ीब से गुमराह नहीं किया जा सकता और वजदान ही उन्हें किसी चीज़ के अच्छे या बुरे होने की ख़बर दे देता है |

इस्मतरेज़ि, फ़ांसी और सियासी शोबेदा बाज़ी

दिल्ली में इतना बड़ा इस्मत रेज़ि का वाक़िया पेश आने और पूरी दिल्ली में एहतिजाज-ओ-नारा बाज़ी और पुलिस की चौकसी के बाद नए साल के आग़ाज़ की रात एक 17साला स्कूल तालिबा के साथ दिल्ली के पाश इलाके‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ सफदरजंग एनक्लेव में इस्मत रेज़ि की

नफ़्स पर क़ाबू रखना इस्लाम का तुर्रा ए इमतियाज़ (खासियत)

अल्लाह तआला ने इंसानी फ़ित्रत में चंद तक़ाज़े रखे हैं, मसलन कुछ वक़्त गुज़रने के बाद इंसान को भूख महसूस होती है तो इंसान खाने का बंद-ओ-बस्त करता है, प्यास महसूस होती है तो पानी पीने का इंतेज़ाम करता है, जब काम करके थक जाता है तो नींद क

पड़ोसी के साथ हमदर्दी

हज़रत अब्बू शरी रज़ी० से मर्वी है कि हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० ने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम! वो मोमिन नहीं, ख़ुदा की क़सम! वो मोमिन नहीं, ख़ुदा की क़सम! वो मोमिन नहीं। अर्ज़ किया गया या रसूलुल्लाह ! वो कौन लोग हैं?।

मोबाइल फ़ोन की तबाह कारीयां

(मौलाना रहमत उल्लाह हुसैन क़ासिमी) मोबाइल की ईजाद ने फ़ासलों को यकसर ख़त्म कर दिया है। आज दुनिया के एक किनारे पर खड़ा शख़्स दुनिया के दूसरे किनारे पर मौजूद शख़्स से चंद लम्हों में राबिता क़ायम कर सकता है, जिससे बाहमी गुफ़्त-ओ-शनीद और

ग़ीबत की मुज़म्मत

किसी की शिकायत या बुराई इसके पीठ पीछे करना ग़ीबत है। हज़रत अबूहुरैरा रज़ी० से मर्वी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया तुम्हें मालूम है ग़ीबत क्या है?। लोगों ने अर्ज़ किया अल्लाह-ओ-रसूल ( स०अ०व०) ख़ूब जानते हैं।

ईमान की असल रूह तक़वा है

नुज़ूल ए क़ुरआन का सबसे अहम मक़सद लोगों के अंदर तक़वा की रूह पैदा करना है। इस का इस्तिहकाम पूरी शरीयत का इस्तिहकाम और इसका इन्हिदाम पूरी शरीयत का मिस्मार हो जाना है। इसके बगै़र ना तो अक़ाइद-ओ-कुल्लियात ए दीन में पुख़्तगी आ सकती है और ना ह

नमाज़ बंदा-ए-मोमिन की मेराज है

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुक्र है कि उसने हमें इस्लाम की दौलत से मालामाल किया है। यक़ीनन ये एक ऐसी नेअमत है कि जिस पर जितना ख़ालिक़ का शुक्र अदा किया जाए, उतना ही कम है। क्योंकि ये नेअमत हर इंसान को नहीं मिल सकती। अब हम मुसलमानों पर कुछ

जराइम के ख़िलाफ़ पार्लीमैंट में आवाज़

पार्लीमैंट में अवामी मसाइल पर बातचीत‌ करने केलिए अप्पोज़ीशन को मुकम्मल इख़तियार हासिल है । इस मर्तबा अप्पोज़ीशन के साथ हुकमरान पार्टी और दूसरे हलीफ़ पार्टीयों के अरकान को भी दार-उल-हकूमत दिल्ली में बढ़ते जराइम ख़ासकर ग़लत काम‌ के वाक़