अगर देश में इमर्जेंसी लागू भी हुई तो प्रेस उसे फेल कर देगा : अरुण जेटली

मौजूदा समय में तकनीक प्रेस सेंसरशिप की इजाजत नहीं देती। इसलिए अगर देश में कभी आपातकाल लागू भी हुआ तो वह स्वतंत्र प्रेस के कारण असफल साबित हो जाएगा। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह बात शुक्रवार को नेशनल प्रेस डे पर आयोजित कार्यक्रम में कही।

जेटली ने कहा, वाणी की स्वतंत्रता पर खतरे की कोई गंभीर शिकायत न होना दर्शाता है कि प्रेस स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहा है, लेकिन मीडिया के सामने अपनी प्रतिष्ठा को खुद बनाए रखने की चुनौती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक समाज में जनता की राय का बड़ा महत्व होता है। इसलिए मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह जनता के बीच अपने लिए सकारात्मक राय को कायम रखे।

अगर मीडिया की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है तो उसके लिए वह खुद जिम्मेदार होता है। जेटली ने कहा, हर राजनीतिक विचारधारा को मीडिया में जगह पाने का अधिकार है। अब मीडिया के कई प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं। शायद इसी के चलते आवाज को दबाए जाने की कोई गंभीर शिकायत सामने नहीं आई। ऐसी शिकायत न प्रिंट मीडिया की ओर से आई और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरफ से। सभी के लिए विकल्प मौजूद हैं। जेटली ने कुछ मामलों में शिकायतों का कारण राजनीति या लॉबी या व्यक्ति आधारित होने का जिक्र किया।

सन 1950 में नेहरू सरकार की ओर से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर लाए गए संशोधन का जिक्र करते हुए वित्त मंत्री ने कहा, विदेशों से संबंधों में बाधा डालने की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने का नियम बना। ऐसा जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए एक समझौते के चलते हुए। बाद में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में इसका विरोध किया गया। मीडिया स्वतंत्र रहे, यह हमारी मूलभावना है।

इस मौके पर प्रेस परिषद के अध्यक्ष सीके प्रसाद ने संस्थाओं को मजबूत बनाए जाने पर बल दिया। कार्यक्रम में हिंदू समूह के चेयरमैन एन राम को पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए प्रतिष्ठित राजा राममोहन राय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।