दिल्ली सिग्नेचर ब्रिज: जानिए, खास विशेषताएं, देखिए फैटो!

दिल्ली की नई पहचान सिग्नेचर ब्रिज 100 साल की उम्र के हिसाब से डिजाइन किया गया है। मगर रख-रखाव ठीक रहा तो 200 साल तक इस ब्रिज को कोई नुकसान नहीं होगा।

विश्वस्तरीय तकनीक के साथ तैयार किया गया ये ब्रिज देश के सबसे हाइटेक पुलों में से एक है। लिहाजा इसकी साफ-सफाई से लेकर इसके स्वास्थ्य की निगरानी के लिए भी विश्वस्तरीय तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।

दिल्ली का प्रदूषण केवल जीवित लोगों को ही प्रभावित नहीं कर रहा। इसका दुष्प्रभाव मजबूत से मजबूत स्ट्रक्चर पर भी पड़ता है। ऐसे में सिग्नेचर ब्रिज को दिल्ली के प्रदूषण से बचाने के लिए भी खास इंतजाम किए गए हैं। इसके लिए ब्रिज में प्रयोग किए गए कंक्रीट के भाग में खास तरह का एंटी कारबोनेशन पेंट किया गया है। इस पेंट से कंक्रीट के अंदर प्रदूषित हवा प्रवेश नहीं कर पाएगी।

इससे कंक्रीट का स्ट्रक्चर कमजोर नहीं होगा। इससे कंक्रीट के अंदर उपयोग की गई स्टील भी खराब नहीं होगी। इसके अलावा स्टील के भाग पर भी खास तरह का एपोक्सी पेंट किया गया है, जो उसे प्रदूषण से बचा कर और मजबूती प्रदान करेगा। इन दोनों पेंट का असर पांच साल रहेगा। इसके बाद फिर से इस पर पेंट कराया जाएगा।

ब्रिज के परियोजना प्रबंधक शिशिर बंसल कहते हैं कि परियोजना को 100 साल की उम्र के हिसाब से डिजाइन किया गया है। इसका रखरखाव ठीक रखना होगा। रखरखाव ठीक होने पर 200 साल तक भी ब्रिज में कुछ कमी नहीं आएगी।

जिन केबल्स के माध्यम से ब्रिज का 251 मीटर का हिस्सा मुख्य पिलर पर रोका गया है। इन केबल को 20 से 25 साल में बदला जाएगा। केबल व पिलर में उपयोग किए गए बेयरिंग भी समय-समय पर बदले जाते रहेंगे।

ब्रिज के रखरखाव के लिए ब्रिज हेल्थ मॉनिटरिंग सिस्टम तैयार किया गया है। 575 मीटर लंबे इस ब्रिज की सफाई भी यूरोप से आई हाईटेक मशीनें करेंगी। ब्रिज में 104 सेंसर लगाए जाएंगे। इनमें से 10 ब्रिज की केबल में और 5 सेंसर फाउंडेशन में लगाए जा चुके हैं। ब्रिज के अन्य हिस्सों में भी सेंसर लगाए जाने हैं।

ये सेंसर ब्रिज के हर हिस्से की 24 घंटे निगरानी करेंगे। ब्रिज में कहीं भी कोई क्षति दिखेगी, तो सेंसर इसकी जानकारी तुरंत कंट्रोल रूम को देगा। ये भूकंप के असर, हवा का दबाव, गुजरने वाले वाहनों के दबाव सहित विभिन्न गतिविधियों पर भी नजर रखेंगे। इसके लिए एक कंट्रोल रूम भी बनाया जाएगा।