सांप्रदायिक दंगों में विकलांग हुए ‘याकूब शरीफ’ को सरकार से अब तक नहीं मिला इंसाफ

बेंगलुरु। वर्ष 1994 में बेंगलुरु में दूरदर्शन के उर्दू समाचार के प्रसारण को लेकर हुए सांप्रदायिक दंगों के शिकार याकूब शरीफ को आज तक न्याय नहीं मिला है

दो अक्टूबर 1994 को यानी गांधी जयंती के अवसर पर भारत सरकार ने दस मिनट उर्दू समाचार बुलेटिन शुरू करने का फैसला किया था इसका विरोध करते हुए बेंगलुरु की सांप्रदायिक संगठनों ने इसे सांप्रदायिक रंग देकर फसाद बरपा कर दिया था तथाकथित कनड़ा संगठनों ने उर्दू समाचार के विरोध के हिंसक तरीके में इस दंगे में लगभग 23 लोगों की जानें गईं और अनंत लोग घायल हो गए थे उन्में एक याकूब शरीफ भी हैं याकूब शरीफ के पैरों में गोली लगी थी और वह विकलांग हो गए उन्हें मुआवजा के नाम पर केवल 250 रुपये मासिक मिलता है जो यह राशि अपर्याप्त है.

याकूब शरीफ दंगों को याद करते हुए आज भी सहम जाते हैं उनका कहना है कि उनके दोनों पैरों में गोली लगी हुई है जिससे उनके जीवन बुरी तरह प्रभावित हुई है उन्हें अब तक सिर्फ 15 हजार रुपये मुआवजा के रूप में दिए गए और पांच साल तक लगातार प्रयास करने के बाद ढाई सौ रुपये मासिक पेंशन मिल रही है उनकी मांग है कि राज्य सरकार उन्हें उचित मुआवजा दे.

याकूब शरीफ की आवाज सरकार कब सुनेगी यह देखने वाली बात होगी लेकिन इस तरह के दंगों के पीड़ित न केवल मुआवजे के हकदार हैं बल्कि सामाजिक सहानुभूति भी उनके जीवन में मददगार साबित होगी