सीबीआई को ताकतवर बनाने वाले जस्टिस पटनायक करेंगे आलोक वर्मा के खिलाफ जांच की निगरानी

सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए के पटनायक एक बार उस संविधान पीठ के सदस्य थे, जिसने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हेतु एजेंसी के लिए सरकार की अनुमति लेने की जरूरत को खत्म कर दिया था. दूसरे शब्‍दों में कहें तो ‘‘पिजड़े के तोते’’ को नये पंख देने का श्रेय इस पीठ को जाता है. केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ए के पटनायक ही करेंगे.

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान 2003 में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, जो सीबीआई को संचालित करता है, में प्रावधान धारा 6 (ए) शामिल की गई थी. ऐसा होने पर सीबीआई के लिए संयुक्त सचिव या इससे ऊपर की रैंक के अधिकारियों के खिलाफ कोई पूछताछ या जांच शुरू करने के लिए सरकार की अनुमति लेने को अनिवार्य बना दिया था.

न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा, न्यायमूर्ति ए के पटनायक, न्यायमूर्ति एस के मुखोपाध्याय, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति इब्राहिम कलीफुल्ला की संविधान पीठ ने 2014 में इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया था. इससे लगभग एक साल पहले सुप्रीमकोर्ट की एक अन्य पीठ ने कोयला घोटाला मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई की जबर्दस्त खिंचाई करते हुए कहा था कि जांच एजेंसी ‘‘पिजड़े का तोता’’ बन गई है जो अपने राजनीतिक आकाओं की भाषा बोलती है.

 

सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच मचे घमासान के बीच शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को निर्देश दिया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच दो सप्ताह के भीतर पूरी की जाये. अदालत ने न्यायमूर्ति पटनायक पर विश्वास जताते हुए कहा कि यह जांच उनकी निगरानी में होगी.

1949 में ओडिशा में जन्मे न्यायमूर्ति पटनायक 2009 में शीर्ष अदालत में आये थे जहां उन्होंने अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले दिये. न्यायमूर्ति पटनायक उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने अहमदाबाद में 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमला मामले में छह आरोपियों को बरी कर दिया था. वह उस दो सदस्यीय पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 2जी घोटाले से संबंधित सभी मामलों की सुनवाई की थी.