नई दिल्ली: अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम दो साल पहले हिंदुस्तान लौटना चाहता था, लेकिन हुकूमत और पीएमओ उसकी शर्तों पर राज़ी नहीं हुए। दाऊद ने 2013 में दिल्ली के एक कांग्रेस लीडर ने पार्टी लीडरों को बताया था कि 1993 में हुए बलास्ट में मतलूब दाऊद इब्राहिम हिंदुस्तान आने को “तैयार” है। एक अखबार ने दिल्ली के एक वकील और कांग्रेस लीडर के हवाले से यह खबर दी है।
अखबार ने अपने ज़राये के हवाले से कहा कि दाऊद के ऑफर पर कांग्रेस लीडरशिप और हुकूमत के बीच आली सतह पर बहस हुई थी, लेकिन बात नहीं बनी। इस बात की तस्दीक करते हुए साबिक यूपीए हुकूमत में सीनीयर ओहदों पर रहे ओहदेदारान ने कहा है कि इस मुद्दे पर तंज़ीम सतह और हुकूमत के सतर पर भी बहस हुई थी। दो दहा बाद पहली बार दाऊद ने 1993 के बलास्ट कांड में ट्रायल का सामना करने की अपनी “खाहिश” दिखाये थें
ज़राये के मुताबिक इस पेशकश पर उस वक्त के वज़ीर ए आअज़म मनमोहन सिंह और क़ौमी सलामती के सलाहकार शिवशंकर मेनन के बीच गौर व फिक्र किया गया था। अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, कांग्रेस के एक बडे लीडर ने, जो वकील भी हैं, दाऊद के ऑफर को पार्टी और हुकूमत तक पहुंचाया था।
यह वकील और लीदर अदालत में दाऊद के कई केसों से जुडे रहे हैं। ज़राये के मुताबिक, कांग्रेस के दो आली लीडरों से इस बारे में बात की गई थी, लेकिन उन्होंने दाऊद की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया था। दरअसल, दाऊद चाहता था कि हिंदुस्तान में उस पर जो केस चलाए जाएं, वे उसकी शर्तो के हिसाब से हों, लेकिन हुकूमत और कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं थी।
इस लीडर को जवाब दिया गया कि दाऊद का मुद्दा बहुत ही संगीन है और इस पर आगे नहीं बढा जा सकता।
अखबार ने अपने ज़राये के हवाले से कहा है कि यह मुद्दा वज़ीर ए आज़म रहे मनमोहन सिंह और उस वक्त के क़ौमी सलामती सलाहकार शिवशंकर मेनन के बीच भी बातचीत हुई थी , लेकिन कोई खतरा लेने को तैयार नहीं था। इस खबर पर मेनन के तब्सिरे नहीं मिल सके है, लेकिन वज़ीर ए आज़म मनमोहन सिंह की ओर से मिले एक ई-मेल में उन्होंने कहा, “मुझे याद नहीं है कि दाऊद इब्राहिम के हिंदुस्तान लौटने से जुडे किसी मामले पर कोई बातचीत हुई हो।
लेकिन कुछ पुराने अफसरों का कहना है कि इस मामले को कांग्रेस के टॉप लेवल लीडरशिप और फिर पीएमओ तक पहुंचाया गया था। जिस कांग्रेस लिईडर ने यह ऑफर सरकार और कांग्रेस लीडरशिप तक पहुंचाया था, उसके बारे में कहा जाता है कि वह दाऊद और उसके करीबी लोगों के राबिते में रहता है।
ज़राये के मुताबिक इस “आफर” से यह भी खुलासा हुआ है कि दाऊद 2013 में किडनी से मुताल्लिक किसी बडी बीमारी से परेशान था और चाहता था कि वह मुंबई में अपने खानदान के साथ रहे। नवंबर 1993 में दाऊद ने दुबई में एक वकालतनामे पर दस्तखत किए थे। दरअसल, दाऊद चाहता था कि सुप्रीम कोर्ट मुंबई ब्लास्ट की सुनवाई मुंबई से दिल्ली शिफ्ट कर दे। हालांकि यह दरखास्त कभी दायर नहीं की जा सकी।
दाऊद मुंबई पुलिस के रवैये से नाराज़ था। उसका कहना था कि कुछ लोग उसे मुंबई ब्लास्ट में फंसाना चाहते हैं।