क्या आप को यक़ीन आएगा कि हमारी रियासत के बैंकों ने जारीया माली साल के दौरान 30 सितंबर 2013 तक अक़लियतों को 13,583.33 करोड़ रुपये के क़र्ज़ा जात तक़सीम करचुके हैं।
अगर वाक़ई इतनी ख़तीर रक़म तक़सीम की जा चुकी होती तो यक़ीनन एक ख़ुश आइंद बात होती मगर हक़ीक़त में एसा कुछ नहीं है। हमारा तो ये इद्दिआ है कि सारी रियासत के बैंकों ने मुसलमानों को 10 करोड़ रुपये के क़र्ज़ा जात फ़राहम नहीं किए हैं चूँकि बेशतर बैंकों ने मुसलमानों को क़र्ज़ा जात फ़राहम ना करने की मख़फ़ी पॉलीसी को इख़तियार कर रखा है।
जो कुछ भी रक़म बतौर क़र्ज़ मुसलमानों को बैंकों के ज़रीये तक़सीम की गई वो यह तो अकलियती मालीयाती कारपोरेशन की बैंक हामिल सकिमात के तहत दी गई यह फिर सोना रहन रखने के इव्ज़ दी गई।
याद रहे कि मर्कज़ी वज़ारत फाइनैंस और रिज़र्व बैंक आफ़ इंडिया के अहकाम की रोशनी में तरजीही शोबा जात के तहत फ़राहम किए जाने वाले क़र्ज़ा जात में अक़लियतों को 15% तक मुख़तस करना है।
रियासत में जारीया माली साल के दौरान 99,894 करोड़ रुपये तरजहयी शोबा के क़र्ज़ा जात का निशाना मुक़र्रर किया गया है, इस लिहाज़ से अक़लितों में माली साल के इखतेताम तक 14,984.1 करोड़ रुपये तक़सीम करना है।
मुसलमानों की सियासी-ओ-मिली क़ियादत के तसाहुल का फ़ायदा उठाकर ना सिर्फ़ हुकूमतें बल्कि बैंकर्स भी मुसलमानों को बेवक़ूफ़ बनारहे हैं।
बैंकर्स अगरचे ये इद्दिआ कररहे हैं कि तरजीही शोबा जात के तहत अक़लियतों को 13,583.33 करोड़ रुपये के क़र्ज़ा जात अदा किए गए हैं मगर इस में कोई हक़ीक़त नहीं है।
आदाद-ओ-शुमार के ज़रीये बैंकर्स और हुकूमत दोनों ही मुसलमानों को बेवक़ूफ़ बनारहे हैं और फ़रेब दे रहे हैं। कहा जाता है कि बैंकों के हिसाबात में एक पैसे की भी कमी-ओ-बेशी नहीं की जाती मगर हमारे बैंकर्स करोड़ों रुपये अक़लियतों में तक़सीम करने का दावा कररहे हैं।
जिस की मिसाल स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी के हालिया मीटिंग में पेश करदा आदाद-ओ-शुमार हैं। बैंकर्स कमेटी के मीटिंग में पेश करदा एजंडा और बैकग्राउंड नोटिस के मुताबिक़ रियासत में तरजीही शोबा के तहत मजमूई क़र्ज़ा जात की फ़राहमी का निशाना 99,894 करोड़ रुपये मुक़र्रर किया गया है।
इस लिहाज़ से अक़लियतों के लिए मुक़र्ररा 15% निशाना के हिसाब से 14,984.1 करोड़ रुपये तक़सीम करना है। एक मुक़ाम (सफ़ा नंबर 38 ) पर ये इद्दिआ किया जाता है कि अक़लियती बिरादरी में 13,583.33 करोड़ रुपये तक़सीम किए गए हैं और इसी सफ़ा पर बताया जाता है कि ये तरजीही शोबा के तहत क़र्ज़ा जात का 6.03% है जबकि मीना निशाना 15% है।
बैंकर्स को ये कौन बताए कि 99894 करोड़ रुपये का 6.03% सिर्फ़ 6023.60 करोड़ रुपये ही होता है ना कि 13,583.33 करोड़। अगर ये मान लिया जाये कि बैंकर्स ने 13,583.33 करोड़ रुपये तक़सीम किए हैं तो वो तरजीही शोबा की मजमूई तख़सीस का 6.03% नहीं बल्कि 13.59% होता है जो मुक़र्ररा निशाना 15% के निहायत ही करीब है।
इस सफ़ा पर जहां ये बताया गया कि अक़लियतों में 13,583.33 करोड़ रुपये क़र्ज़ दिया गया वहीं सफ़ा नंबर 183-184 पर अक़लियतों को बैंक वारी पेशगियों की तफ़सीलात पेश करते हुए इसी रक़म यानी 13,583.33 करोड़ रुपये को अक़लियतों से वसूल तलब रक़म के तौर पर पेश किया गया है।
अब बैंकर्स और हुकूमत ही बताए कि आया बैंकर्स ने 13,583.33 करोड़ रुपये तक़सीम किए हैं यह अक़लियतों की वाजिबात हैं। दरहक़ीक़त बैंकर्स पेशगियों, वाजिबात और क़र्ज़ तक़सीम की इस्तिलाहात से खेलते हुए धोका दे रहे हैं।
बैंकर्स की तरफ से आदाद-ओ-शुमार के फ़रेब को समझने के लिए पिछले बरसों का भी जायज़ा लेना होगा। इस दस्तावेज़ के सफ़ा नंबर 38 पर पेश करदा दुसरे तफ़सीलात में बताया गया कि मार्च 2011 के इख़तेतामी बरस में अक़लियतों की वाजिबात 11,727.52 करोड़ रुपये, मार्च 2012 के इख़तेतामी बरस में 12,124.31 करोड़ रुपये मार्च 2013 के इख़तेतामी बरस में 13,746.01 करोड़ रुपये रहे हैं और सितंबर 2013 तक ये वाजिबात 13,583.33 करोड़ रुपये के हैं। अगर ये मान लिया जाये कि मार्च 2013 तक अक़लियतों के वाजिबात 13,746.01 करोड़ रुपये हैं तो सितंबर 2013 में ये घट कर 13,583.33 करोड़ रुपये होगए हैं। 13,746.01 करोड़ रुपये पर मुरक्कब सूद को शामिल करलिया जाये तो वाजिबात ज़ियदा बढ़ जाते हैं।
क़र्ज़ ना दहिंदगान की भी एक बड़ी तादाद है जिन के क़र्ज़ा जात पर हर साल मुरक्कब सूद का इज़ाफ़ा होता जा रहा है। अब अगर अक़सात की अदाई और सूद की शमूलीयत के साथ साथ जैसा कि एक मुक़ाम पर ये इद्दिआ किया गया कि सितंबर 2013 तक यानी 6 माह में 13,583.33 करोड़ रुपये के मज़ीद क़र्ज़ दीए गए तो सितंबर 2013 तक सूद की शमूलीयत और अक़सात की अदाई के शुमार के बाद ये वाजिबात 26,000 करोड़ रूपये से ज़ाइद होजाने चाहीए मगर एसा नहीं है।
इस का मतलब ये हुआ कि मार्च ता सितंबर बैंकों से मुसलमानों को हक़ीर क़र्ज़ दिया गया जो 10 करोड़ से मुतजाविज़ नहीं होगा मगर मुसलमानों ने अपनी अक़सात के ज़रीये बैंकों को 162.68 करोड़ रुपये अदा किए हैं।
इसी लिए वाजिबात में कमी आई है। ज़रूरत है कि बैंकर्स के इन दावओं का एक आला सतही कमेटी के ज़रीये तहकीकात की जाये ताकि ये हक़ीक़त आशकार होसके कि हक़ीक़तन बैंकर्स ने अक़लियतों में कितने करोड़ रुपये बतौर क़र्ज़ तक़सीम किए हैं।
हम जो 10 करोड़ रुपये क़र्ज़ा जात का अंदाज़ा कररहे हैं इस में भी अक़लियती मालीयाती कारपोरेशन स्कीम के तहत फ़राहम करदा 4.71 करोड़ रुपये सब्सीडी के हामिल क़र्ज़ा जात और कुछ सोना रहन रखने के इव्ज़ दीए गए क़र्ज़ा जात होंगे।
यहां ये बात काबिल-ए-ज़िकर है कि क़ानून हक़ आगही के तहत तलब करदा मालूमात में रियासत के लीड बैंक ने तफ़सीलात की अदमे मौजूदगी का इक़रार किया है जिस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि ये आदाद-ओ-शुमार सिर्फ़ काग़ज़ी हैं।