अफ़्ग़ानिस्तान की पुलिस फ़ोर्स में ख़्वातीन की शरह महज़ एक फ़ीसद है। इस वजह से जंग से तबाह हाल इस मुल्क में तशद्दुद में मुसलसल इज़ाफे़ के बावजूद ख़्वातीन , पुलिस से इंसाफ़ मांगने में हिचकिचाहट महसूस करती हैं।
इस बारे में बैनुल अक़वामी ऐड एजैंसी Oxfam ने हाल ही में एक रिपोर्ट शाय की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ़्ग़ानिस्तान में हर 10 हज़ार ख़्वातीन के लिए औसतन सिर्फ़ एक ख़ातून पुलिस ऑफीसर पाई जाती है जबकि 2011 और 2012 में अफ़्ग़ानिस्तान में ख़्वातीन के ख़िलाफ़ तशद्दुद के वाक़ियात में 25 फ़ीसद इज़ाफ़ा रिपोर्ट किया गया।
Oxfam की रिपोर्ट में मज़ीद कहा गया है कि पुलिस फ़ोर्स में काम करने वाली अफ़्ग़ान ख़्वातीन को पुलिस महकमे के अंदर और इस के बाहर यानी मुआशरे में बहुत बड़े चैलेंजेज़ का सामना करना पड़ता है। मिसाल के तौर पर उन्हें जिन्सी तौर पर हिरासाँ किया जाता है और उन्हें बहुत ज़्यादा इम्तियाज़ी सुलूक का निशाना बनाया जाता है।
अफ़्ग़ान अवाम अब भी ज़हनी तौर पर ख़्वातीन की पुलिस महकमे में भर्ती को ग़लत तसव्वुर करते हैं। वो ख़्वातीन का ये रूप तस्लीम नहीं कर पाते।